Sunday, 29 March 2015

जंगल में लगाई जा रही आग से पेड़-पौधों सहित जीव-जन्तु , पशु-पक्षियों को क्षति

जंगल में लगाई जा रही आग से पेड़-पौधों सहित जीव-जन्तु , पशु-पक्षियों को क्षति


गुमला । यह सर्वविदित है कि जंगल में आग लगने से पेड़-पौधों सहित जीव-जन्तु , पशु-पक्षियों को क्षति होती है ,फिर भी गुमला जिले व आस-पास के जिलों के जंगलों में महुआ चुनने और अन्य उद्देश्यों को ले जंगल में लगाई जा रही है ।महुआ चुनने को लेकर जंगल में लगाई जा रही आग से पेड़-पौधों सहित जीव-जन्तु , पशु-पक्षियों को क्षति हो रही है।और ऐसा नहीं है कि जंगलों मे यह आग पहली बार लग रही है, जंगलों में यह आग प्रतिवर्ष वसन्त काल में महुआ चुनने और विभिन्न अन्य उद्देश्यों के लिए लगाई जाती है जिससे जंगलों में नए-नए पनप रहे नवीन पादप आग से जल अथवा झुलस कर मर जाते हैं।इन पादपों में जंगली ब्रिक्षों के साथ ही विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियाँ भी शामिल होती हैं।गुमला जिले के जंगलों में आग लगने वाले क्षेत्रों में पालकोट हाथी आश्रयणी के क्षेत्र से लेकर सिमडेगा जिले से होते हुए उडीसा राज्य के सीमान्त क्षेत्र तक , रायडीह , चैनपुर , डुमरी ,जारी प्रखण्ड क्षेत्रों से लेकर सरगुजा के जंगल तक का वन्य प्रान्त , घाघरा , बिशुनपुर प्रखण्ड सहित लोहरदगा जिले से लेकर लातेहार , पलामू ,चतरा आदि के जंगल क्षेत्र तथा बसिया, कामडारा से लेकर राँची , खूंटी , बानो कोलेबिरा, जलडेगा आदि के जंगल प्रमुख हैं । झारखण्ड के प्रायः सभी क्षेत्रों के जंगलों की तरह ही गुमला के जंगलों में भी आग लगती नहीं बल्कि लगाई जाती है ।वह भी आसानी से महुआ के फल चुनने के लिए।लेकिन सिर्फ महुआ चुनने के उद्देश्य से लगायी गई इस आग से महत्वपूर्ण जंगली पादप प्रतिवर्ष जल जाने से इन पादपों के प्रजातियों के नष्ट हो जाने की संकट आन खड़ी हो रही है ।
खबर है कि इस वर्ष भी अभी –अभी पालकोट प्रखण्ड के कोंजाली गाँव के समीप के जंगलों में महुआ चुनने वालों द्वारा आग लगा दिया जा रहा है। गत पन्द्रह मार्च रविवार को पूरे जंगल में आग की लपटे फैलने लगी। जिससे जंगलों में रहने वाले पेड़-पौधों,जीव जंतु, पशु-पक्षियों को हानि पहुंच रही है। बताया जा रहा है कि आज- कल महुआ चुनने को लेकर पालकोट के आसपास के जंगलों में बराबर ही आग लगाई जा रही है। एक ओर वन विभाग द्वारा वन बचाओ का नारा दिया जा रहा है, और इस कार्य पर लाखों रूपये खर्च किए जा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर ग्रामीणों द्वारा जंगलों में आग लगा दिए जाने से अमूल्य धरोहरों को क्षति हो रही है। उधर इस बाबत पूछे जाने पर वन विभाग के वनकर्मियो और वन क्षेत्र पदाधिकारी कामाख्या नारायण ने कहा कि वन कर्मियों को आग बुझाने के लिए जंगलों में भेजा जा चुका है। आग लगाए जाने वाले लोगों की पहचान होने पर उनके उपर प्राथमिकी दर्ज की जाएगी। खबर यह भी मिल रही है कि जंगलों में आग लगाये जाने का यह सिलसिला जिले के अन्य वन्य क्षेत्रों में भी शुरू हो चुका है, परन्तु विशेष क्षति अभी तक नहीं होने के कारण यह समाचार नहीं बन रहा हैजिसके कारण वन्य कर्मी राहत महसूस कर रहे हैं।परन्तु यह राहत कब तक ? जिले के अनेक क्षेत्र जंगलों में आग के लिए प्रतिवर्ष चर्चित रहे हैं
विगत वर्ष १२ १३ मार्च को जिले के रायडीह प्रखण्ड कार्यालय के ठीक सामने अवस्थित रानी मुंडी पहाड़ के जंगल में शरारती तत्वों द्वारा आग लगा दिए जाने के कारण जंगल पिछले तीन दिनों आग की लपट में जल रहा था ।उस अगलगी घटना में आग लगने से जहां छोटे पौधे व कीमती लकड़ियां जलकर नष्ट हो गये थे वहीँ जंगलों में रहने वाले जीव जंतु भी आग की चपेट में आ रहे थे । तब वनरक्षी कमलेश प्रसाद सिन्हा व नवागढ़ वन सुरक्षा प्रबंधन समिति के अध्यक्ष जीतू खड़िया के नेतृत्व में भंडारटोली व खीराखांड के पचास की संख्या में लोगों ने आग पर काबू कराने का प्रयास किया लेकिन असफल रहे थे । सूखी पत्तियों के कारण आग तेजी से फै ल रहा था । कई दिनों के अथक प्रयास के पश्चात आग पर काबू पाया जा सका था
 इसके पूर्व २७-२८ मार्च २०१२ को भी रायडीह प्रखंड के रानी मुंडी एवं केराडीह जंगल में दो दिनों से आग लगी हुई थी । आग की लपटें लगातार तेज होते जाने से जंगल के पेड़, मूल्यवान पौधे और जड़ी-बूटी नष्ट हुई थी, वन्य प्राणियों का जीवन भी संकट में आ गया था ।
३१ मार्च २०१४ को रायडीह प्रखंड अंतर्गत मांझाटोली स्थित कुड़ो पहाड़ के जंगल में पिछले दो दिनों से आग लगने की खबर अखबारों में सुर्खियाँ बनने के बाद वनविभाग हरक्कत में आई थी । कहने का अर्थ है जिले के रायडीह ,पालकोट, चैनपुर सहित वन क्षेत्र वाले सभी प्रखण्डों में जंगलों में आग लगाये जाने की खबरें प्रतिवर्ष आम हो चली हैं, परन्तु वन विभाग इस समस्या का समुचित समाधान कर पाने अब तक असफल रहा है ।प्रतिवर्ष की भान्ति इस वर्ष भी जिले के जंगलों में आग लगाये का सिलसिला वसन्त ऋतु के आगमन के साथ ही शुरु हो चला है। आग लगने से पेड़-पौधों,वन्य जीवों पर खतरा उत्पन्न हो गया है। वहीं वन को भी काफी नुकसान हो रहा है। बताया जाता है कि जंगलों को आग से सुरक्षा के लिए गांवों में ग्राम वन सुरक्षा प्रबंधन समिति का गठन किया गया है। परन्तु इनके कोशिशों के बावजूद प्रत्येक वर्ष महुआ के फल लगने के दौरान महुआ चुनने वालों द्वारा जंगल में आग लगा दिया जाता है। पतझड़ के मौसम में सूखी पत्तों में चिंगारी लगने से पूरे जंगल में आग की लपटें फैल जाती है। वन विभाग द्वारा भी आग बुझाने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता है।जानकर लोग कहते हैं,वन सुरक्षा समिति  सर्फ दिखावे के लिए है,इसका उद्देश्य वनों की रक्षा करना नहीं बल्कि इनके सहयोग, मिलीभगत और हस्ताक्षर से sarkarinidhiसरकारी निधि की सुरक्षित हेराफेरी की जाती है।
वन सुरक्षा समिति के सदस्य भी जंगलों में आग लगने की ओर कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं, बल्कि कई तो स्वयं महुआ चुनने और अपने स्वार्थी इरादों की पूर्ति इसकी आड़ में कर रहे हैं । नतीजतन जंगल में आग की लपटें तेज होती जा रही है। जानकारी के अनुसार गांव के ग्रामीणों का मानना है कि जंगल में गिरे पत्ते में आग लगाने से रुगड़ा का उत्पादन अधिक होता है और इसी अंधविश्वास के कारण कुछ लोग जंगल में आग लगा देते हैं, जिससे भारी नुकसान होता है।
जंगल में लगाई जा रही आग का दिन में तो पता नहीं चलता लेकिन रात होते ही जंगलों में ऊंची लपटे उठते देखी जा रही है। पतझड़ में पेडों से पत्ते सूख कर गिर जाने से लोगों को शिकार करने व महुआ चुनने में काफी परेशानी होती है। इन परेशानियों से बचने के लिए लोग सूखे पत्तों को एकत्र कर आग लगा देते है। लेकिन यही आग देखते ही देखते भयंकर रूप धारण कर पूरे जंगल को अपनी चपेट में ले लेती है। वनों में आग लगने से करोड़ों की वन संपदा जलकर राख हो जाती है। स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वन विभाग की पूरी सक्रियता के बावजूद हर बार आग नियंत्रण कार्य असफल हो जाता है।

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