छतीस करोड की नुकसान होने की संभावना के मद्देनजर रेलवे मंजूरी नहीं दे रहा लोहरदगा- गुमला- सिमडेगा को रेलवे परियोजना का
सरकार अब व्यवसाय करने लगी है अर्थात बनिया बन गई है।सरकार अब लोगों के कल्याण की बात नहीं सोचकर किसी कार्य से लाभ होगा अथवा हानि होगी इस पर विचार कर योजनाएं बनाने लगी है। रेलवे को लोहरदगा से गुमला होकर सिमडेगा पहुँचाने में सिर्फ छतीस करोड की नुकसान होने की संभावना के मद्देनजर इस रेलवे परियोजना को हरी झंडी नहीं दिखला रही है । उल्लेखनीय है कि दशकों से इस आदिवासी बहुल क्षेत्र की जनता रेल लाइन की माँग करती रही है और लाइन बिछाने के लिए सर्वेक्षण भी हुआ है। लेकिन रेलवे बोर्ड सिमडेगा तक रेल लाइन लाने को घाटे का सौदा मानते हुए इसे टालता रहा है। इस बीच खबर है कि केवल छतीस करोड़ रूपयों के नूकसान होने की संभावना रेलवे को होने के कारण लोहरदगा से गुमला होते हुए सिमडेगा जिला मुख्यालय को रेल लाइन से जोड़े जाने की परियोजना को मंजूरी नहीं दे रही है । इस बात का खुलासा सूचना अधिकार अधिनियम - २००५ के तहत रेलवे द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी से हुआ है।
उपलब्ध सुचना के अनुसार सूचना अधिकार अधिनियम – २००५ के तहत आवेदन देकर सिमडेगा जिले के सूचनाधिकार कार्यकर्ता दीपेश कुमार निराला द्वारा भारतीय रेलवे से सिमडेगा जिला मुख्यालय को रेलवे से जोड़ने हेतु लोहरदगा से गुमला होते हुए सिमडेगा तक रेल लाइन के बारे जानकारी माँगी गई थी। रेलवे बोर्ड से उपलब्ध कराई गई सूचना के अनुसार वर्ष २००८-०९ में रेल लाइन बिछाने का सर्वे हुआ था और चौवन किलोमीटर लम्बी रेलवे लाइन के लिए करीब सात सौ करोड़ रूपए खर्च का अनुमान लगाया गया था। सूचनाधिकार कार्यकर्ता दीपेश कुमार निराला द्वारा माँगी गई सूचना के जवाब में रेलवे बोर्ड के डिप्टी डायरेक्टर वर्क्स टू ने सर्वे में आरओआर यानि रेट ऑफ रिटर्न को माइनस ५.२४ प्रतिशत बताया था और इस कारण इसे रेलवे के लिए घाटे का सौदा होने की बात कही थी। सात सौ करोड़ रूपए के प्राक्कलन में आरओआर के ५.२४ प्रतिशत के आधार पर यह घाटा छतीस करोड़ अरसठ लाख रूपए होता है। क्षेत्र के लोगों का कहना है कि सरकार को जन कल्याण के बारे में सोचना चाहिए ,उसे जन कल्याण के लिए लाभ-हानि का गणित त्याग कर योजनाओं की मंजूरी देने की नीति बनानी चाहिए । सरकार को बनिया की तरह वर्ताव कदापि नहीं करना चाहिए ।
No comments:
Post a Comment