Sunday, 29 March 2015

गुमला में भूगर्भ जल संरक्षण सरकार व प्रशासन के लिए चुनौती

गुमला में भूगर्भ जल संरक्षण सरकार व प्रशासन के लिए चुनौती


गुमला । चतुर्दिक जंगलों-पहाड़ों, नदी-नालों से घिरे गुमला जिला में कुछ वर्षों से जलस्तर तीव्र गति से नीचे जा रहा है ।गुमला ऐसा जिला है जहाँ बड़ी नदियां नहीं हैं, और अगर दक्षिणी कोयल नदी , शंख , कारों , पारस आदि बरसाती नदियों को बड़ी नदी माना भी जाए तो भी यहाँ के जलस्तर में अब इन नदियों का कोई बड़ा योगदान नहीं रह गया है। गुमला की सम्पूर्ण खेती वर्षा जल अर्थात मानसून पर आधारित है। पिछले कुछ वर्षों में जिले में सामान्य वर्षा तक नहीं हो पाने के कारण यहाँ का भूगर्भ जलस्तर तेजी से नीचे गया है। ऐसे में भूगर्भ जल संरक्षण सरकार व प्रशासन के लिए चुनौती बनी हुई है। दशकों पूर्व यहाँ कोयल- कारो आदि कई वृहत व लघु जलाशय परियोजना को मंजूरी मिली थी। लेकिन विस्थापन की राजनीती करने वालों की यह परियोजनाएं भेंट चढ गईं और सरकारों के लाख प्रयासों के बावजूद कोयल-कारो सरीखी बहुमुखी विकास की परियोजनाएं शुरू होने के पहले ही दम तोड़ गई। जिले में पारस, कंस, दतली , धनसिंह डेम (आदि) आदि कई परियोजनाएं पूर्ण हुईं भी परन्तु कईयों में पूर्ण रूप से सिंचाई नाली ,केनाल आदि का काम बाकी है। कई जगह इसे पूरा होने में बीस-तीस वर्ष तक लग गया। कोयल-कारो जलाशय परियोजना में तो अरबों रूपये खर्च करने के बावजूद अब तक काम भी शुरू नहीं हो सका है। अगर कोयल-कारो परियोजना पूरी हो जाती तो काफी हद तक जिले और अस-पास के प्रमंडल का जल संकट व विद्युत संकट दूर हो सकता था।
जहाँ तक गुमला जिला में जल संरक्षण के लिए महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना अर्थात मनरेगा व लघु सिंचाई परियोजना के तहत काम किया जा रहा है। पिछले नौ वर्षों में यहाँ पचास  हजार कुआँ की स्वीकृति मिली है । उसमें से करीब छतीस हजार कुआँ बनकर तैयार हो गया है। वहीं तालाब व चेक डैम भी हजारों की संख्या में बनाया जाना था। इसमें से करीब साठ प्रतिशत काम पूरा किया जा चुका है। परन्तु इनमें से अधिकाँश  काम तय मानकों पर खरा नहीं उतर रहे।कुंओं, तालाब और चेकडैम में पानी नहीं रहते , नहीं ठहरते ।यही हाल स्वाधीनता प्राप्ति के बाद से निर्मित कुओं, तालाबों व अन्य जलाशयों की पुनर्मरम्मती के अभाव में अब हो चुकी है ।
गुमला शहरी क्षेत्र में कई तालाब का जीर्णोद्धार नहीं किये जाने का भी असर यहां के जल स्तर पर पड़ा है। दो वर्ष पूर्व यहाँ के वन तालाब , करमटोली तालाब , भट्ठी मुहल्ला तालाब ,जवाहर नगर स्थित तालाब का आकार तो नहीं बढ़ाया गया लेकिन खुदाई किये जाने लाभ भी मिल रहा है। परन्तु शहर की इन तालाबों की खुदाई और चौडीकरण का कार्य किए जाने से इन क्षेत्रों के भूगर्भ जलस्तर में वृद्धि की उम्मीद बढ़ सकती थी। जिला मुख्यालय से होकर बहने वाली पुगु नदी कभी गुमला की जल भण्डार की मुख्य स्रोत हुआ करती थी आज शहर से निकली नालियों की पानी पर जीवित है । नदी के स्रोत स्थल पर अतिक्रमण की चोट और शहर की गन्दगी के फेंके जाने से इसका जल उपयोग के योग्य नहीं रह गया है। गुमला जिला मुख्यालय के करमटोली के समीप से निकलकर शहरी क्षेत्र से होकर बहते हुए कई गाँवों से होकर दक्षिणी कोयल नदी में मिलने वाली पुगु नदी जो कभी लबालब भारी होती थी , अतिक्रमण व कूड़ा-कचरा फेंके जाने के कारण आज नाला में तब्दील हो चुकी है। शहर के निकट की नदी के क्षतिग्रस्त और गन्दगी का पर्याय बन जाने का दुष्प्रभाव यहाँ के जलस्तर पर पड़ा है ।पुगु नदी के जीर्णोद्धार से गुमला शहर व आस- पास के क्षेत्र के भूगर्भ जलस्तर में व्यापक बढ़ोतरी की आशा बलवती हो सकती है ।







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