राँची , झारखण्ड से प्रकाशित बिरसा भूमि साप्ताहिक पत्र के दिनांक - ०९ फरवरी - १५ फरवरी २०१५ के अंक में रणधीर निधि का आलेख
बन्दिस्तान के रूप में अब तक प्रसिद्ध गुमला अब अफवाहों के शहर के रूप में तब्दील
-रणधीर निधि
ये गुमला शहर अफवाहों का शहर है !
यहाँ रोज - रोज हर मोड़ - मोड़ पे , फैलता है कोई न कोई अफवाह , अफवाह !!
जी हाँ मित्रों ! गुमला अब तक बन्दिस्तान अर्थात बन्दी के शहर के रूप में प्रसिद्ध हो रहा था , परन्तु अब गुमला अफवाहों के शहर के रूप में जाना जाने लगा है , कारण यह है कि यहाँ सदैव ही अफवाह फैलती है और उन अफवाहों के कारण आम जन सहित पुलिस - प्रशासनिक पदाधिकारी और पत्र-पत्रिकाओं एवं खबरिया चैनलों के नुमाइन्दे तक घंटों नहीं कई - कई दिनों तक हैरान , परेशान , हलकान रहते हैं और ऐसा कोई एक बार नहीं बल्कि अक्सरहा या यूं कहिये बार - बार होता है और फिर अंततः सारा भागादौड़ी सम्पूर्ण आपाधापी का परिणाम खोदा पहाड़ निकली चुहिया भी नहीं अपितु टांय – टांय फीस साबित होता है l अफवाहों के शहर के रूप में लोकख्यात हो रहे गुमला की ताज़ी अफवाह की घटना में एक विक्षिप्त ग्रामीण के द्वारा गत तीन फरवरी मंगलवार को उड़ाई गई अर्थात फैलाई गई सामूहिक हत्याकांड की अफवाह के कारण पुलिस - प्रशासन के अधिकारियों की नींद उड़ गई और पूरी रात अधिकारियों सहित जिले के पत्रकारगण व आम जनता सभी परेशान रहे और छह घंटे तक चले सघन तलाशी अभियान में भी पुलिस को कुछ हाथ नहीं लगा ।
गौरतलब है कि मंगलवार को यह खबर उड़ी थी कि गुमला जिला के घाघरा थाना क्षेत्र के बरांग गाँव के समीप पतरा अर्थात जंगल में सात लोगों की नक्सलियों ने सामूहिक हत्या कर दी है ,परन्तु उक्त घटना की पुष्टि कोई नहीं कर रहा था। बुधवार सुबह जब गुमला के पुलिस अधीक्षक भीमसेन टुटी के नेतृत्व में घाघरा थाना क्षेत्र के बर्रांग, चटमदाग, गोरियाडीह, तुरियाडीह, बरटोली, सेहल जैसे गाँवों में सघन तलाशी अभियान चलाया गया तो कहीं से भी क्षेत्र में हत्या होने का कोई सुराग नहीं मिला और सामूहिक हत्याकांड की बात झूठी और बिलकुल निराधार साबित हुई।
घंटों तक करीब छः – सात किलोमीटर के दायरे में चलाये गये सघन तलाशी अभियान के दौरान पुलिस को पता चला कि एक विक्षिप्त किसान गोपी महतो ने यह अफवाह फैलायी थी कि घाघरा थाना क्षेत्र के बरांग गाँव के समीप पतरा अर्थात जंगल में सात लोगों की नक्सलियों ने सामूहिक हत्या कर दी है । ग्रामीणों ने बताया कि गोपी विक्षिप्त होने के साथ ही शराबी भी है । यह जान पुलिस अधीक्षक भीमसेन टूटी ने गोपी महतो से पुछताछ की तो उसने बताया कि मंगलवार को सुबह जब वह अपने खेत कि जुताई कर रहा था ,तभी उसे गोली चलने की आवाज सुनाई दी थी । सेना की वर्दी पहने हुए करीब एक सौ हथियारबन्द लोग यहां आये थे। उसने उनलोगों को अपना खाना भी खिला दिया। उनलोगों ने पांच लोगों को गोली मार दी। ग्रामीणों ने बतलाया कि
शादी में हुई आतिशबाजी से फायरिंग का भ्रम हुआ होगा । गांव के ही कुछ लोगों ने बताया कि गोपी महतो पहले भी इस तरह की हरकतें कर चुका है तथा वह मानसिक रूप से बीमार है। गाँव वालो ने बताया कि गोरियाडीह गांव में किसी परिवार में शादी थी। वहां हुई आतिशबाजी के कारण ही गोपी को गोली चलने का भ्रम हुआ और उसने यह बात फैला दी । बात यहीं खतम हो जाती तो बात और थी परन्तु गोपी महतो यहाँ के बाद बगल के सेहल गांव पहुंच गया, जहां साप्ताहिक बाजार लगा हुआ था , गोपी ने सरेबाजार गोली चलने और लोगों के मारे जाने की बात ग्रामीणों को भी बतला दी। इसके बाद देखते ही देखते जंगल में आग की भान्ति बर्रांग में सात लोगों की सामूहिक हत्या की अफवाह इलाके में फैल गयी। इस सन्दर्भ में गुमला के पुलिस अधीक्षक भीमसेन टूटी ने पत्रकारों को दिए वयान में इस पर क्षोभ व्यक्त करते हुए बताया कि सच्चाई जानने के लिए जब इलाके में सघन तलाशी अभियान चलाया गया तो यह बात निराधार साबित हुई। यह अलग बात है कि इस झूठी घटना को कई खबरिया चैनल पहले लिये गए विजुअल के साथ परोसते रहे। प्रिंट मीडिया में भी इस अफवाह को अच्छी खासी जगह मिल गई थी। इधर कुछ लोगों ने इस बात की भी आशंका जतायी है कि एक सोची समझी चाल की तहत उग्रवादियों ने यह अफवाह फैलायी थी, ताकि खोजबीन के लिए आये पुलिस बल को निशाना बनाया जा सके। खैर जो भी हो अंततः मामला शून्य साबित हुआ और पुलिस-प्रशासन के अधिकारी , पत्रकार और ग्रामीण दिन - रात व्यर्थ परेशान होकर अपनी ऊर्जा नष्ट करते रहे ।
ऐसी ही एक अफवाह की घटना में गत २३ जनवरी २०१५ दिन शुक्रवार की सुबह अचानक यह सूचना फैली कि गुमला व जसपुर जिले के सीमावर्ती रायडीह क्षेत्र में माओवादियों द्वारा कुछ स्कूली बच्चों का अपहरण कर उन्हें बंधक बना लिया है। इस सूचना पर रायडीह, गुमला , सिमडेगा और जशपुर (छतीसगढ़) की पुलिस भी सक्रिय हुई और अपने-अपने क्षेत्र में जंगलों व पहाड़ों में बच्चों की खोज एवं अपहरण की सूचना की पुष्टि के लिए दर –बदर भटकती रही। बाद में यह सूचना महज अफवाह निकली एवं दोनों राज्य के पुलिस के अधिकारियों ने राहत की सांस ली। बाद में एक पुलिस पदाधिकारी ने बताया कि सिमडेगा जिला के कुरडेग में एक स्कूल में कुछ नक्सली शिक्षक से लेवी वसूली करने आए थे एवं इस कारण बच्चों के अपहरण की अफवाह फैल गई। इस सम्बन्ध में गुमला के पुलिस अधीक्षक भीमसेन टूटी ने बताया कि इस तरह की लिखित रूप से सूचना कोई नहीं मिली है यदि कोई लिखित सूचना मिलती है तो इस पर कार्रवाई की जाएगी। तो इस तरह स्कूली बच्चों के अपहरण हो जाने की सूचना गुमला की हवा में फैली जिस खबर पर घंटों जंगलों - पहाड़ों में भटकती रही पुलिस और फिर अंततः झूठी साबित हुई यह खबर । एक दशहरे की शाम रावण दहन के पश्चात गुमला में मेलेरूपी भीड़ में अत्यधिक वोल्ट वाले विद्युत तार के टूट कर गिर जाने की खबर फैली और फिर शीघ्र ही लोग दौड़ने लगे , लेकिन समीप ही उपस्थित पुलिसकर्मियों द्वारा लोगों को समझाने और इसे अफवाह की बात कहे जाने पर धीरे - धीरे भीड़ की दौड़ा - दौड़ी अर्थात धावकता काम हुई । इस प्रकार की दर्जनों उल्लेखनीय अफवाह की घटनाएं जिले में घट चुकी हैं जिससे अधिकारी से लेकर आम जन तक हलकान हो चुके हैं ।
गुमला जिला नक्सली बन्दी के लिये प्रसिद्ध है । बन्दी का यह सिलसिला यहाँ पूर्ववर्ती बिहार राज्य के समय से ही यदा - कदा हों प्रारंभ हुआ था , परन्तु झारखण्ड राज्य पुनर्गठन के पश्चात इसमें अकस्मात वृद्धि हुई । यहाँ अक्सर ही बन्दी बुलाई जाती है । कभी राजनीतिक पार्टियों के द्वारा , कभी सामाजिक संगठनों के द्वारा ,कभी छात्र संघों के द्वारा तो कभी नक्सलियों के द्वारा । कभी - कभी तो यहाँ के लोगों ने पूरे सप्ताह भर तक बन्दी का सामना करते हुए अथाह दुःख झेला है , परन्तु वाह रे गुमला के लोगों की दरियादिल्ली लाख दुःख के बावजूद उफ़ तक नहीं कि गुमला वासियों ने और बन्दी में सब प्रकार के दुःख हंस कर झेले । गुमला वासियों आपको स्मरण होगा आपने ऐसी बन्दी अलग राज्य हेतु और विभिन्न नक्सली संगठनों के द्वारा अपनी मांगों के समर्थन में बुलाये गये बन्दी के समर्थन में झेली है । खैर कहने की बात यह है कि गुमला में बन्दी आम बात है और यहाँ बन्दी की बात, बन्दी का नाम सुनते ही लोग अपना दूकान - दौरी बन्द कर अपने घरों में दुबक जाते हैं ,कारण यह है कि कई बार बन्दी के दिनों में लोगों के मारे जाने , सवारी और माल दोने वाले वाहनों के जलाये जाने की घटनाएँ जिले में घट चुकी हैं । इस बन्दी की अफवाह की सुचना पर भी जिले में कई महत्वपूर्ण बन्दियाँ हो चुकी हैं । एकाध वर्ष पूर्व की बात है कि गुमला में एक रविवार को खबर फैली कि कल नक्सली बन्दी है । लोगों ने पूछा कि किसने यह बन्दी बुलाई है ? उत्तर नदारद , फिर भी सोमवार को बन्दी पूर्ण सफल ।बन्द अभूतपूर्व रहा। नक्सलियों के भय से चौबीस घंटे तक गुमला की जिंदगी थमी रही। वैसे कहीं से अप्रिय घटना की सूचना नहीं मिली , परन्तु दिनभर नक्सली घटना की अफवाह हवा में उड़ती रही। केवल अफवाह में फैली बन्दी की इस पर नक्सलियों के डर से शहर से गांव तक सन्नाटा पसरा रहा। वाहनों का परिचालन पूर्णतः ठप रहा। चाय, पान तक की दुकान नहीं खुली। सड़कों पर सन्नाटा पसरा रहा। बन्द से दिहाड़ी श्रमिकों पर व्यापक असर पड़ा । बंद के कारण जिले में दो करोड़ रुपए का व्यवसाय प्रभावित हुआ। नक्सलियों की भय से करीब हजार बॉक्साइट ट्रकों के पहिए रुके रहे। इससे बीस हजार लोग प्रभावित हुए हैं। ट्रकों के पहिए रुकने से मजदूर, खलासी, चालक व पठारी इलाकों में छोटे मोटे होटल करने वाले गरीब लोग सीधे नुकसान में रहे। बॉक्साइट का लोडिंग व अनलोडिंग नहीं होने से लगभग एक करोड़ रुपए का व्यवसाय प्रभावित हुआ है। बिशुनपुर व घाघरा प्रखंड में दर्जनाधिक संचालित सभी माइंस पर ताला लटका रहा। नक्सलियों की बन्दी ने गुमला जिले की अर्थव्यवस्था को भी बुरी तरह प्रभावित किया । गुमला जिले की पुलिस दिन भर परेशान परन्तु पत्ता करने पर मालूम हुआ कि बन्दी बुलाने वाला कोई नहीं ।अब पुलिस यह मालूम करने में जुटी कि आखिर बन्दी की यह अफवाह कहाँ से उड़ी ? दो दिनों की मश्शक्कत के बाद पुलिस को यह सुराग हाथ लगी कि बन्दी का यह शिगूफा बस पड़ाव से छोड़ी गई । यह भी पत्ता चला कि कुछ पियक्कड बसएजेंटों बसकर्मियों ने बस पड़ाव में पीकर यह अफवाह फ़ैलाने उद्देश्य से आपस में बातें की जो अन्य लोगों ने भी सुनी और फिर बन्दी की खबर पूरे शहर में फ़ैल गई । खबर का यह प्रभाव हुआ कि दूसरे दिन किसी भी उग्रवादी संगठन के बिना बुलाये ही नक्सली बन्दी की अफवाह मात्र से गुमला और जिले के समीपस्थ शहर पूर्णतः बन्द , ठप्प हो गये । तो यह है गुमला में बन्दी की कथा । यहाँ अफवाह मात्र से बन्दी सफल हो जाती है , इसी कारण गुमला को बन्दिस्तान के नाम से जाना जाता है परन्तु अब अफवाहों के शहर के रूप में गुमला तेजी से अपना कदम बढ़ाने लगा है , जहाँ अक्सर ही अफवाह फैलती है और आम जन के साथ पुलिस प्रशासनिक अधिकारी और पत्रकार व्यर्थ ही हैरान , परेशान और हलकान होते हैं । गुमलावासियों ! चरवाहे की भेड़िया आया , भेड़िया आया कथा आपने अवश्य सुनी होगी । कथा में अफवाह फ़ैलाने वाले चरवाहे की अंततः हुई दुर्गति के समान ही अफवाह और अफवाह फैलाने वालों का अर्थात असत्य का अन्त होना सुनिश्चित है । अफवाह से लाभ नहीं वरन स्वयं का हानि , अहित , दुर्गति और सदैव ही बुरा होना निश्चित है इसलिए गुमलावासियों ! अफवाह और अफवाह फैलाने वालों अर्थात असत्यता से बचो और व्यर्थ सरकारी अधिकारियों , पत्रकारों और भोले - भाले ग्रामीणों , शहरियों और कस्बाइयों को कठिनाई अर्थात परेशानी में मत डालो । आपका सदैव कल्याण होगा ।
बन्दिस्तान के रूप में अब तक प्रसिद्ध गुमला अब अफवाहों के शहर के रूप में तब्दील
-रणधीर निधि
ये गुमला शहर अफवाहों का शहर है !
यहाँ रोज - रोज हर मोड़ - मोड़ पे , फैलता है कोई न कोई अफवाह , अफवाह !!
जी हाँ मित्रों ! गुमला अब तक बन्दिस्तान अर्थात बन्दी के शहर के रूप में प्रसिद्ध हो रहा था , परन्तु अब गुमला अफवाहों के शहर के रूप में जाना जाने लगा है , कारण यह है कि यहाँ सदैव ही अफवाह फैलती है और उन अफवाहों के कारण आम जन सहित पुलिस - प्रशासनिक पदाधिकारी और पत्र-पत्रिकाओं एवं खबरिया चैनलों के नुमाइन्दे तक घंटों नहीं कई - कई दिनों तक हैरान , परेशान , हलकान रहते हैं और ऐसा कोई एक बार नहीं बल्कि अक्सरहा या यूं कहिये बार - बार होता है और फिर अंततः सारा भागादौड़ी सम्पूर्ण आपाधापी का परिणाम खोदा पहाड़ निकली चुहिया भी नहीं अपितु टांय – टांय फीस साबित होता है l अफवाहों के शहर के रूप में लोकख्यात हो रहे गुमला की ताज़ी अफवाह की घटना में एक विक्षिप्त ग्रामीण के द्वारा गत तीन फरवरी मंगलवार को उड़ाई गई अर्थात फैलाई गई सामूहिक हत्याकांड की अफवाह के कारण पुलिस - प्रशासन के अधिकारियों की नींद उड़ गई और पूरी रात अधिकारियों सहित जिले के पत्रकारगण व आम जनता सभी परेशान रहे और छह घंटे तक चले सघन तलाशी अभियान में भी पुलिस को कुछ हाथ नहीं लगा ।
गौरतलब है कि मंगलवार को यह खबर उड़ी थी कि गुमला जिला के घाघरा थाना क्षेत्र के बरांग गाँव के समीप पतरा अर्थात जंगल में सात लोगों की नक्सलियों ने सामूहिक हत्या कर दी है ,परन्तु उक्त घटना की पुष्टि कोई नहीं कर रहा था। बुधवार सुबह जब गुमला के पुलिस अधीक्षक भीमसेन टुटी के नेतृत्व में घाघरा थाना क्षेत्र के बर्रांग, चटमदाग, गोरियाडीह, तुरियाडीह, बरटोली, सेहल जैसे गाँवों में सघन तलाशी अभियान चलाया गया तो कहीं से भी क्षेत्र में हत्या होने का कोई सुराग नहीं मिला और सामूहिक हत्याकांड की बात झूठी और बिलकुल निराधार साबित हुई।
घंटों तक करीब छः – सात किलोमीटर के दायरे में चलाये गये सघन तलाशी अभियान के दौरान पुलिस को पता चला कि एक विक्षिप्त किसान गोपी महतो ने यह अफवाह फैलायी थी कि घाघरा थाना क्षेत्र के बरांग गाँव के समीप पतरा अर्थात जंगल में सात लोगों की नक्सलियों ने सामूहिक हत्या कर दी है । ग्रामीणों ने बताया कि गोपी विक्षिप्त होने के साथ ही शराबी भी है । यह जान पुलिस अधीक्षक भीमसेन टूटी ने गोपी महतो से पुछताछ की तो उसने बताया कि मंगलवार को सुबह जब वह अपने खेत कि जुताई कर रहा था ,तभी उसे गोली चलने की आवाज सुनाई दी थी । सेना की वर्दी पहने हुए करीब एक सौ हथियारबन्द लोग यहां आये थे। उसने उनलोगों को अपना खाना भी खिला दिया। उनलोगों ने पांच लोगों को गोली मार दी। ग्रामीणों ने बतलाया कि
शादी में हुई आतिशबाजी से फायरिंग का भ्रम हुआ होगा । गांव के ही कुछ लोगों ने बताया कि गोपी महतो पहले भी इस तरह की हरकतें कर चुका है तथा वह मानसिक रूप से बीमार है। गाँव वालो ने बताया कि गोरियाडीह गांव में किसी परिवार में शादी थी। वहां हुई आतिशबाजी के कारण ही गोपी को गोली चलने का भ्रम हुआ और उसने यह बात फैला दी । बात यहीं खतम हो जाती तो बात और थी परन्तु गोपी महतो यहाँ के बाद बगल के सेहल गांव पहुंच गया, जहां साप्ताहिक बाजार लगा हुआ था , गोपी ने सरेबाजार गोली चलने और लोगों के मारे जाने की बात ग्रामीणों को भी बतला दी। इसके बाद देखते ही देखते जंगल में आग की भान्ति बर्रांग में सात लोगों की सामूहिक हत्या की अफवाह इलाके में फैल गयी। इस सन्दर्भ में गुमला के पुलिस अधीक्षक भीमसेन टूटी ने पत्रकारों को दिए वयान में इस पर क्षोभ व्यक्त करते हुए बताया कि सच्चाई जानने के लिए जब इलाके में सघन तलाशी अभियान चलाया गया तो यह बात निराधार साबित हुई। यह अलग बात है कि इस झूठी घटना को कई खबरिया चैनल पहले लिये गए विजुअल के साथ परोसते रहे। प्रिंट मीडिया में भी इस अफवाह को अच्छी खासी जगह मिल गई थी। इधर कुछ लोगों ने इस बात की भी आशंका जतायी है कि एक सोची समझी चाल की तहत उग्रवादियों ने यह अफवाह फैलायी थी, ताकि खोजबीन के लिए आये पुलिस बल को निशाना बनाया जा सके। खैर जो भी हो अंततः मामला शून्य साबित हुआ और पुलिस-प्रशासन के अधिकारी , पत्रकार और ग्रामीण दिन - रात व्यर्थ परेशान होकर अपनी ऊर्जा नष्ट करते रहे ।
ऐसी ही एक अफवाह की घटना में गत २३ जनवरी २०१५ दिन शुक्रवार की सुबह अचानक यह सूचना फैली कि गुमला व जसपुर जिले के सीमावर्ती रायडीह क्षेत्र में माओवादियों द्वारा कुछ स्कूली बच्चों का अपहरण कर उन्हें बंधक बना लिया है। इस सूचना पर रायडीह, गुमला , सिमडेगा और जशपुर (छतीसगढ़) की पुलिस भी सक्रिय हुई और अपने-अपने क्षेत्र में जंगलों व पहाड़ों में बच्चों की खोज एवं अपहरण की सूचना की पुष्टि के लिए दर –बदर भटकती रही। बाद में यह सूचना महज अफवाह निकली एवं दोनों राज्य के पुलिस के अधिकारियों ने राहत की सांस ली। बाद में एक पुलिस पदाधिकारी ने बताया कि सिमडेगा जिला के कुरडेग में एक स्कूल में कुछ नक्सली शिक्षक से लेवी वसूली करने आए थे एवं इस कारण बच्चों के अपहरण की अफवाह फैल गई। इस सम्बन्ध में गुमला के पुलिस अधीक्षक भीमसेन टूटी ने बताया कि इस तरह की लिखित रूप से सूचना कोई नहीं मिली है यदि कोई लिखित सूचना मिलती है तो इस पर कार्रवाई की जाएगी। तो इस तरह स्कूली बच्चों के अपहरण हो जाने की सूचना गुमला की हवा में फैली जिस खबर पर घंटों जंगलों - पहाड़ों में भटकती रही पुलिस और फिर अंततः झूठी साबित हुई यह खबर । एक दशहरे की शाम रावण दहन के पश्चात गुमला में मेलेरूपी भीड़ में अत्यधिक वोल्ट वाले विद्युत तार के टूट कर गिर जाने की खबर फैली और फिर शीघ्र ही लोग दौड़ने लगे , लेकिन समीप ही उपस्थित पुलिसकर्मियों द्वारा लोगों को समझाने और इसे अफवाह की बात कहे जाने पर धीरे - धीरे भीड़ की दौड़ा - दौड़ी अर्थात धावकता काम हुई । इस प्रकार की दर्जनों उल्लेखनीय अफवाह की घटनाएं जिले में घट चुकी हैं जिससे अधिकारी से लेकर आम जन तक हलकान हो चुके हैं ।
गुमला जिला नक्सली बन्दी के लिये प्रसिद्ध है । बन्दी का यह सिलसिला यहाँ पूर्ववर्ती बिहार राज्य के समय से ही यदा - कदा हों प्रारंभ हुआ था , परन्तु झारखण्ड राज्य पुनर्गठन के पश्चात इसमें अकस्मात वृद्धि हुई । यहाँ अक्सर ही बन्दी बुलाई जाती है । कभी राजनीतिक पार्टियों के द्वारा , कभी सामाजिक संगठनों के द्वारा ,कभी छात्र संघों के द्वारा तो कभी नक्सलियों के द्वारा । कभी - कभी तो यहाँ के लोगों ने पूरे सप्ताह भर तक बन्दी का सामना करते हुए अथाह दुःख झेला है , परन्तु वाह रे गुमला के लोगों की दरियादिल्ली लाख दुःख के बावजूद उफ़ तक नहीं कि गुमला वासियों ने और बन्दी में सब प्रकार के दुःख हंस कर झेले । गुमला वासियों आपको स्मरण होगा आपने ऐसी बन्दी अलग राज्य हेतु और विभिन्न नक्सली संगठनों के द्वारा अपनी मांगों के समर्थन में बुलाये गये बन्दी के समर्थन में झेली है । खैर कहने की बात यह है कि गुमला में बन्दी आम बात है और यहाँ बन्दी की बात, बन्दी का नाम सुनते ही लोग अपना दूकान - दौरी बन्द कर अपने घरों में दुबक जाते हैं ,कारण यह है कि कई बार बन्दी के दिनों में लोगों के मारे जाने , सवारी और माल दोने वाले वाहनों के जलाये जाने की घटनाएँ जिले में घट चुकी हैं । इस बन्दी की अफवाह की सुचना पर भी जिले में कई महत्वपूर्ण बन्दियाँ हो चुकी हैं । एकाध वर्ष पूर्व की बात है कि गुमला में एक रविवार को खबर फैली कि कल नक्सली बन्दी है । लोगों ने पूछा कि किसने यह बन्दी बुलाई है ? उत्तर नदारद , फिर भी सोमवार को बन्दी पूर्ण सफल ।बन्द अभूतपूर्व रहा। नक्सलियों के भय से चौबीस घंटे तक गुमला की जिंदगी थमी रही। वैसे कहीं से अप्रिय घटना की सूचना नहीं मिली , परन्तु दिनभर नक्सली घटना की अफवाह हवा में उड़ती रही। केवल अफवाह में फैली बन्दी की इस पर नक्सलियों के डर से शहर से गांव तक सन्नाटा पसरा रहा। वाहनों का परिचालन पूर्णतः ठप रहा। चाय, पान तक की दुकान नहीं खुली। सड़कों पर सन्नाटा पसरा रहा। बन्द से दिहाड़ी श्रमिकों पर व्यापक असर पड़ा । बंद के कारण जिले में दो करोड़ रुपए का व्यवसाय प्रभावित हुआ। नक्सलियों की भय से करीब हजार बॉक्साइट ट्रकों के पहिए रुके रहे। इससे बीस हजार लोग प्रभावित हुए हैं। ट्रकों के पहिए रुकने से मजदूर, खलासी, चालक व पठारी इलाकों में छोटे मोटे होटल करने वाले गरीब लोग सीधे नुकसान में रहे। बॉक्साइट का लोडिंग व अनलोडिंग नहीं होने से लगभग एक करोड़ रुपए का व्यवसाय प्रभावित हुआ है। बिशुनपुर व घाघरा प्रखंड में दर्जनाधिक संचालित सभी माइंस पर ताला लटका रहा। नक्सलियों की बन्दी ने गुमला जिले की अर्थव्यवस्था को भी बुरी तरह प्रभावित किया । गुमला जिले की पुलिस दिन भर परेशान परन्तु पत्ता करने पर मालूम हुआ कि बन्दी बुलाने वाला कोई नहीं ।अब पुलिस यह मालूम करने में जुटी कि आखिर बन्दी की यह अफवाह कहाँ से उड़ी ? दो दिनों की मश्शक्कत के बाद पुलिस को यह सुराग हाथ लगी कि बन्दी का यह शिगूफा बस पड़ाव से छोड़ी गई । यह भी पत्ता चला कि कुछ पियक्कड बसएजेंटों बसकर्मियों ने बस पड़ाव में पीकर यह अफवाह फ़ैलाने उद्देश्य से आपस में बातें की जो अन्य लोगों ने भी सुनी और फिर बन्दी की खबर पूरे शहर में फ़ैल गई । खबर का यह प्रभाव हुआ कि दूसरे दिन किसी भी उग्रवादी संगठन के बिना बुलाये ही नक्सली बन्दी की अफवाह मात्र से गुमला और जिले के समीपस्थ शहर पूर्णतः बन्द , ठप्प हो गये । तो यह है गुमला में बन्दी की कथा । यहाँ अफवाह मात्र से बन्दी सफल हो जाती है , इसी कारण गुमला को बन्दिस्तान के नाम से जाना जाता है परन्तु अब अफवाहों के शहर के रूप में गुमला तेजी से अपना कदम बढ़ाने लगा है , जहाँ अक्सर ही अफवाह फैलती है और आम जन के साथ पुलिस प्रशासनिक अधिकारी और पत्रकार व्यर्थ ही हैरान , परेशान और हलकान होते हैं । गुमलावासियों ! चरवाहे की भेड़िया आया , भेड़िया आया कथा आपने अवश्य सुनी होगी । कथा में अफवाह फ़ैलाने वाले चरवाहे की अंततः हुई दुर्गति के समान ही अफवाह और अफवाह फैलाने वालों का अर्थात असत्य का अन्त होना सुनिश्चित है । अफवाह से लाभ नहीं वरन स्वयं का हानि , अहित , दुर्गति और सदैव ही बुरा होना निश्चित है इसलिए गुमलावासियों ! अफवाह और अफवाह फैलाने वालों अर्थात असत्यता से बचो और व्यर्थ सरकारी अधिकारियों , पत्रकारों और भोले - भाले ग्रामीणों , शहरियों और कस्बाइयों को कठिनाई अर्थात परेशानी में मत डालो । आपका सदैव कल्याण होगा ।




