Sunday, 14 December 2014

मतदान के बाद अब हो रही जीत-हार पर चर्चा

मतदान के बाद अब हो रही जीत-हार पर चर्चा 


पहले और दूसरे चरण में सम्पन्न मतदान के बाद अब गुमला , लोहरदगा , सिमडेगा, खूंटी, राँची आदि जिलों के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में प्रत्याशियों की हारजीत पर जमकर चर्चा हो रही है। गली-मोहल्लों से लेकर चौपालों, बाजारों में यही चर्चा है कि कौन सा प्रत्याशी किसे हरा कर जीत रहा है। यह भी चर्चा हो रही है कि तीसरे नंबर पर कौन राजनितिक पार्टी अथवा प्रत्याशी रहने वाला है ।इन जिलों मे विधान सभा चुनाव हो जाने के बाद शहर , कस्बा से लेकर गांव तक हर चौक - चौराहों , नुक्कड़ो में अब प्रत्याशियों के जीत के दावे करते लोग नहीं थक रहें हैं। मतदान के बाद मतगणना की तिथि लंबी होने के कारण लोग तरह-तरह के कयास लगाने लगे है। विधान सभा चुनाव में जिस तरह गांव से लेकर शहर तक वोटरों का रुझान खुलकर सामने नहीं आया, उसके बाद लगने लगा है कि जिन दो प्रत्याषियों में कांटे की टक्कर होगी , वह मतगणना के दिन ही स्पष्ट हो पाएगा कि किसके पाले में कितना वोट गया है?

राष्ट्रीय पार्टियों और क्षेत्रीय दलों के साथ ही निर्दलीय प्रत्याशियों के समर्थक अपने-अपने हिसाब से और अपने परिचितों व सुदूर गाँव - देहात जंगली - पहाड़वर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों से बातचीत के आधार पर हाथ में कागज -कलम लेकर प्रत्याशी विशेष की हार-जीत का गणित बैठा रहे हैं। जिन लोगों की राजनीति में थोड़ी सी भी रुचि है, वे अपने घर देहात क्षेत्र से दूध देने आने वाले दूधिया, अखबार देने आने वाले हॉकर, घर में साफ-सफाई के लिए आने वाली धंगरीन अर्थात बाई, गली के सफाई कर्मी तथा यार दोस्तों से यह जानने का प्रयास करते नजर आए कि तेरे यहां से कौन जीत रहा है और किसको सर्वाधिक वोट मिलने की संभावना है । दिन भर प्रशासनिक गलियारों, बसों व रेलगाड़ियों में प्रतिदिन कामडारा - राँची , बानो - राँची , लोहरदगा - राँची तक का सफर तय करने वाले यात्रियों के बीच भी यही चर्चा होती रही। लोगों की रुचि इस बात को लेकर ज्यादा थी कि गांवों में किस प्रत्याशी के पक्ष में कितनी वोट पड़ी ? इधर कई बार प्रत्याशी विशेष के समर्थक को जब अपनी आशानुरूप मतदान न होने की खबर मिलती, तो वह मायूस हो जाता। सवारी बस और बस पड़ाव में ग्रामीण मतदाताओं के बीच तो बातचीत के दौरान तनातनी भी बनी रही।गुमला शहर के लोगों के बीच भाजपा प्रत्याशी शिव शंकर उराँव , झामुमो प्रत्याशी भूषण तिर्की , कांग्रेस प्रत्याशी विनोद किस्पोट्टा को केंद्र में रखते हुए इस बात पर चर्चा होती रही कि विधानसभा क्षेत्र के प्रमुख गांवों में किस प्रत्याशी ने कितने प्रतिशत मत हासिल किए हैं ? इसी तरह सिसई विधानसभा क्षेत्र के प्रत्याशियों भाजपा के दिनेश उराँव ,  कांग्रेस की कार्तिक उराँव ब्रांड गीताश्री उराँव , झामुमो के जिग्गा सुशारण होरो को केंद्र में रखते हुए सनातन सरना - हिन्दू वअल्पसंख्यक ईसाई -मुस्लिम बाहुल्य गांवों से कितनी वोट मिली, इसी पर चर्चा होती रही और समर्थन उन्हें आंकड़ों के आधार पर हार-जीत के पैमाने पर तोलते रहे और भाजपा प्रत्याशी दिनेश उराँव के समर्थकों ने कुछ स्थान पर मिठाई बाँट और आतिशबाजी कर खुशियाँ भी मना डाली ।
इधर बिशुनपुर  सुरक्षित सीट पर एक बार फिर टक्कर भाजपा के समीर उराँव और आदिवासी छात्र संघ छोड़ झामुमो के टिकट पर लड़ने वाले चमरा लिंडा  के बीच में ही नजर आ रही है। बिशुनपुर के कस्बाई इलाकों , ग्रामीणों व वनाँचली  मतदाताओं के बीच चर्चा के केंद्र में भी मुख्य रूप से यही प्रत्याशी रहे। हालांकि भाजपा प्रत्याशी समीर उराँव के समर्थकों ने दावा किया कि परिणाम चौंकाने वाले होंगे तथा उनके पक्ष में होंगे। लोहरदगा शहर और कस्बाई इलाकों के लोगों के बीच भाजपा - आजसू के संयुक्त प्रत्याशी कमलकिशोर भगत और  कांग्रेस प्रत्याशी कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत को केंद्र में रखते हुए इस बात पर चर्चा होती रही कि विधानसभा क्षेत्र के प्रमुख गांवों में किस प्रत्याशी ने कितने प्रतिशत मत हासिल किए हैं ? सिमडेगा में क्रमशः भाजपा प्रत्याशी श्रीमती बिमला प्रधान , झापा (एनोस गुट) की प्रत्याशी मेनोन एक्का और कांग्रेस के विलियम लुगुन के मध्य त्रिकोणीय मुकाबला है वहीँ कोलेबिरा विस क्षेत्र में भाजपा के मनोज प्रधान ,
झापा के एनोस एक्का के मध्य ही मुख्य चुनावी मुकाबला होने की चर्चा है ? इसी प्रकार खूंटी और राँची जिला के विधानसभा क्षेत्रों में भी भाजपा के मुख्य चुनावी समर में होने की चर्चा जोरों पर है ।


इन जिलों के  विधान सभा क्षेत्र में जिसमें भाजपा, झापा ,कांग्रेस, आजसू और दल बदलू निर्दलीय विधायक है। इसलिए कहाँ पर किस दल के प्रत्याशी के पक्ष में लोगों ने मतदान कर मजबूत करने का काम किया है। इसका आकलन भी लोग लगाते नहीं थक रहें है। फिर भी लोगों में चर्चा है कि तेईस दिसंबर को स्पष्ट हो जाएगा।

Sunday, 7 December 2014

गुमला में धड़ल्ले से जारी है गैरकानूनी अवैध रूप से पत्थर खनन कार्य

गुमला में धड़ल्ले से जारी है गैरकानूनी अवैध रूप से पत्थर खनन कार्य

झारखण्ड प्रान्त के गुमला जिला के सभी प्रखंड क्षेत्रों के जंगली -
पहाड़वर्ती गाँवों में सरकारी परती , चरागाह भूमि , वन्य क्षेत्रों और आम
रास्ते के आस - पास अवैध  पत्थर खनन कार्य में लिप्त लोगो ने गैरकानूनी
अवैध रुप से पत्थरो की खदान चालू कर अपनी जेबे भरने का काम व्यापक पैमाने
पर चला रखा है, जबकि उच्चतम न्यायालय व झारखण्ड सरकार ने अवैध पत्थरो की
खदानो पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा रखा है लेकिन खनन माफियां उच्च न्यायालय
व राज्य सरकार के आदेश को धत्ता बताकर अवैध खनन करने से बाज नही आ रहे
हैl ऐसा जिला के प्रायः सभी प्रखण्ड क्षेत्रों में हो रहा है , परन्तु
सरकारी अमला चुप - चाप अपना हित साधने में लगा है lइधर जिले में कई ऐसे
सरकारी पक्के कार्य भी चल रहे है जंहा अवैध पत्थरो की खदानो से प्राप्त
चोरी का पत्थर भी बेख़ौफ़ धड़ल्ले पंहुच रहा है और योजनाओं के संपादन में
अवैध रूप से खनन से प्राप्त पत्थरों का प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है
lखनन माफिया के साथ साथ सरकारी सेवक  भी न्यायालय व प्रदेश सरकार के आदेश
को धत्ता बताने से बाज नही आ रहे है जबकि जिला एव अंचल - प्रखण्ड
प्रशासन, खनन विभाग व पुलिस मूक दर्शक बन चुप चाप तमाशा देखती नजर आ रही
है इतना ही नही जिले के प्रायः सभी प्रखण्ड क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्रो
में भी अवैध पत्थरो की खदानो का बङे पैमाने पर धन्धा जोरों से फल - फूल
रहा हैl जिले के वन्य क्षेत्रों में अवस्थित पहाड़ - चट्टानों एवं नदियों
के चट्टानों के खाना पर वन विभाग द्वारा रोक लगाने की बात भी सरकारी स्तर
पर की जाती है, परन्तु जिले में वन अधिकारीयों की मिलीभगत से वन्य
क्षेत्रों में भी स्थित चट्टानों का खनन व्यापक पैमाने में जारी हैl हाथी
संरक्षण व हाथियों के आप्रवासन व बेहतर देख - भाल के लिये पालकोट
प्रखण्ड क्षेत्र में अवस्थित वन्य क्षेत्र को हाथी आश्रयणी क्षेत्र घोषित
करते हुए वन्य क्षेत्र से किसी भी प्रकार के खनन और ब्रिक्ष कटाई पर रोक
है , परन्तु हाथी आश्रयणी क्षेत्र के दर्जनों गाँवों में पत्थर का अवैध
उत्खनन कार्य बड़े पैमाने पर हो रही है l इस बात की खबर अंचल - प्रखण्ड
प्रशासन से लेकर वन व खनन अधिकारी से लेकर जिला उपायुक्त पुलिस अधीक्षक ,
मुख्य सचिव व सरकार तक को है परन्तु इस पर अंकुश लगाने की बजाय इस
गैरकानूनी अवैध पत्थर खनन कार्य को बढ़ावा दिया जा रहा है l इसी प्रकार
हाथी आश्रयणी क्षेत्र से वन्य ब्रिक्षों की कटाई भी व्यापक स्तर पर होने
की घटनाओं पर भी वन विभाग के द्वारा अंकुश नहीं लगाया जा रहा है l
पत्थरों की अवैध खनन में प्रयुक्त होने वाली विस्फोटकों से उत्पन्न होने
वाली भयंकर आवाजों  व छेना - हथौड़ों की चित - फट - फाट की आवाजों तथा
ब्रिक्षों की कटाई हेतु लोगों के आवाजाही से हाथी परेशान हो रहे हैं और
अपने निवास क्षेत्र से बाहर निकल मानव बस्तियों की ओर रूख करने लगे हैं
और मनुष्यों के साथ ही घर - बारी , खेत - खलिहान और फसलों कू क्षति
पहुँचा रहे हैं l वन्य क्षेत्रों मे तो पत्थरों के खनन हेतु लीज का
नवीनीकरण कार्य भी नहीं हो रहा परन्तु वन क्षेत्रों में भी यह खनन कार्य
अभी भी बदस्तूर जारी है l
जिले के कई इलाकों के पहाड़ों में पिछले कई वर्षों से अवैध खनन के भरोसे
क्रेशर चल रहे हैं। क्रेशर लगाने के लिए क्रेशर मालिकों ने लीज ले रखी
है। क्रेशर मालिक इन लीज से ही खनन कर सकते हैं, लेकिन क्रेशर मालिक
निर्घारित लीज के अलावा लीज के बाहर के पहाड़ों से , चट्टानों से अवैध
रूप से खनन कर रहे हैं। कई क्रेशर मालिकों की लीज खत्म हुए कई साल बीत
चुके हैं। जिले के चट्टानों , पहाड़ों से बड़े-बड़े पत्थर खनन कर क्रेशर
में पिसाई कर कंक्रीट व गिट्टी बनाने का कार्य चल रहा है। यह गिट्टी
ट्रकों में भरकर सड़कों व अन्य निर्माण कार्यो के लिए सप्लाई की जा रही
है। कई के्रशर मालिक बिना लीज के ही पहाड़ों में अवैध रूप से खनन कर रहे
हैं। वन विभाग के अधिकारियों को जिले के पहाड़ों में अवैध खनन की जानकारी
के बावजूद वे क्रेशर मालिकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।
जिले में करीब पाँच दर्जन क्रेशर लगे हुए हैं। जहां पत्थरों की पिसाई कर
गिट्टी व कंक्रीट बनाई जा रही है।
दरअसल, क्रेशर मालिकों ने जो अपने नाम से लीज करा रखी है। उसमें योजनाओं
में प्रयुक्त की जाने योग्य पत्थर नहीं हैं अथवा कम हैं । योजनाओं में
प्रयुक्त की जाने योग्य पत्थर लीज क्षेत्र के बह्हर के चट्टानी क्षेत्रों
व पहाड़ों में ही है। सड़क ठेकेदार उत्तम जिन्दा पत्थर की गिट्टी व
कंक्रीट की डिमाण्ड करते हैं। मृत भुरभुरा हो चुके पत्थर की गिट्टी व
कंक्रीट की माँग डिमांड कम है। इस कारण क्रेशर माफिया जिले के जीवित
चट्टानों व पहाड़ों से बेहतर प्रकार के पत्थर का खनन कर रहे हैं और इन
पत्थरों की गिट्टी व कंक्रीट बेच रहे हैं।

Friday, 5 December 2014

नक्सलियों की चेतावनी के बावजूद जमकर हुआ मतदान

नक्सलियों की चेतावनी के बावजूद जमकर हुआ मतदान 

गत दिनों सम्पन्न झारखंड विधानसभा चुनाव में गुमला , लोहरदगा और सिमडेगा जिला के अंतर्गत पड़ने वाले सिसई , गुमला , बिशुनपुर , लोहरदगा , सिमडेगा , कोलेबिरा , तोरपा के सुदूरवर्ती नक्सल प्रभावित दूरगामी , दुरूह इलाकों में नक्सलियों के वोट बहिष्कार किये जाने के बावजूद मतदाताओं में खौफ नहीं देखा गया। नक्सलियों ने गुमला , लोहरदगा और सिमडेगा जिले के  अंतर्गत आने वाली सभी विधानसभा क्षेत्रों के सैंकडों गांवों में वोट बहिष्कार से संबंधित दीवार-लेखन कर वोट नहीं देने की चेतावनी दी थी। मगर ग्रामीणों ने इसकी परवाह किए बगैर उत्साह के साथ जमकर अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए वोट डाला।

बिशुनपुर विधानसभा क्षेत्र के बिशुनपुर प्रखंड के बनारी , बनालत , बेती , हापुड़ , घाघरा प्रखंड के बिमरला , दारदाग आदि क्षेत्र नक्सलियों के सर्वाधिक सुरक्षित और पुलिस से मुठभेड़ वाला क्षेत्र माना जाता है , परन्तु इन घनघोर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के मतदान केन्द्रों पर भी वहाँ के मतदाताओं ने नक्सलियों के वोट बहिष्कार  की घोषणा को अनसुना कर निर्भय होकर अपने मताधिकार का प्रयोग किया । गुमला , सिसई ,लोहरदगा , सिमडेगा , कोलेबिरा और तोरपा विधानसभा क्षेत्रो के जंगली , पहाड़ी इलाकों के अधिकांश मतदान केन्द्रों के दीवारों पर नक्सलियों ने वोट बहिष्कार करने अन्यथा दण्डित किये जाने की घोषणा करते हुए नारे , श्लोगन लिख रखे थे  , पोस्टर चिपका रखे थे जिन्हें पुलिस , प्रशासनिक पदाधिकारियों और मतदान कर्मियों ने मिटने की हिमाकत नहीं की , लेकिन मतदान कर्मियों के मतदान केन्द्रों पर पहुँचने के साथ ही मतदाताओं का मतदान के लिए मतदान केन्द्रों पर पहुंचना आरम्भ हो गया , जो दिन ढाले तीन बजे तक जारी रहा। सभी जगहों से मिल रही सूचनाओं के आधार पर गत चुनावों से इस बार नक्सल प्रभेइत क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत भी अच्छा है।      गुमला , लोहरदगा और सिमडेगा जिलों के सभी विधानसभा क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाली सभी प्रखंडों के दर्जनों गांव के मतदान केंद्रों के दीवारों पर माओवादियों ने वोट बहिष्कार की घोषणा की थी। कई स्थानों में जिस जगह पर मतदान कर्मियों का टेबल लगाया गया था। उसके ठीक पीछे दीवारों पर वोट बहिष्कार की चेतावनी लिखी हुई थी।

सोना देने वाली नदी - स्वर्णरेखा

सोना देने वाली नदी - स्वर्णरेखा 

 इस नदी में सोने के कण पाए जाते हैं, इसीलिए इसका नाम स्वर्णरेखा पड़ा है.



आप यकीन नहीं कर पा रहे होंगे लेकिन झारखंड के रत्नगर्भा क्षेत्र में बड़े-बड़े व्यापारी आदिवासियों से तुच्छ कीमतों पर सोना खरीद रहे हैं,
पर आखिरकार आदिवासियों के पास इतना सोना आया कहां से?
इसके पीछे बहुत बड़ा राज छिपा है जिसे यहां की एक पवित्र नदी ने अपने भीतर समेटा हुआ है.
यहां है सोने की नदी , जो सोना देती है . जी हां, झारखंड की राजधानी रांची से करीब 15 से 16 किलोमीटर दूरी पर है रत्नगर्भा.
यह एक आदिवासी क्षेत्र है जहां से स्वर्ण रेखा नाम की नदी बहकर निकलती है. यह कोई आम नदी नहीं है
बल्कि इस इकलौती नदी में सोने का इतना भंडार समाया है
जिसका आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते.
कहा जाता है कि स्वर्णरेखा या फिर आदिवासियों के बीच नंदा के नाम से जानी जानेवाली इस नदी में सोने के कण पाए जाते हैं,
इसीलिए इसका नाम स्वर्णरेखा पड़ा है.
यहां की आदिवासी दिन रात इन कणों को एकत्रित करते हैं व स्थानीय व्यापारियों को बेचकर रोजी रोटी कमाते हैं.


प्रकृति का निराला खेल है स्वर्णरेखा नदी इस नदी की रेत से निकलने वाले सोने के कणों का अपना ही रहस्य है. यह प्रकृति का ऐसा अद्भुत खेल है
जिसका पता अभी तक कोई भी लगा ना पाया है. स्थानीय लोगों का कहना है कि आजतक कितनी ही सरकारी मशीनों द्वारा इस नदी पर शोध किया गया है लेकिन वे इस बात का पता लगाने में असमर्थ रहे हैं कि आखिरकार यह कण जमीन के किस भाग से विकसित होते हैं.
इतना ही नहीं, राज्य सरकार व केंद्र सरकारों द्वारा इस तथ्य से मुंह फेरा जा रहा है व कोई भी इस नदी या फिर इससे निकलने वाले कणों के लिए दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है.
इस नदी से सम्बंधित एक और आश्चर्यचकित तथ्य यह है कि रांची स्थित यह नदी अपने उद्गम स्थल से निकलने के बाद उस क्षेत्र की किसी भी अन्य नदी में जाकर नहीं मिलती बल्कि यह नदी सीधे बंगाल की खाडी में गिरती है.

कैसे मिलता है सोना?
जिस प्रकार किसी नहीं में जाल बिछाकर मछलियां पकड़ी जाती हैं ठीक उसी तरह यहां के आदिवासी स्वर्ण कणों को छानने के लिये नदी में जाल की भांति टोकरे फेंकते हैं. इन टोकरों में कपड़ा लगा होता है जिसमें नदी की भूतल रेत फंस जाती है. इस रेत को आदिवासी घर ले जाते हैं व दिनभर उस रेत में से सोने के कण व रेत को अलग-अलग करते रहते हैं.सोने के कणों को अलग कर स्थानीय व्यापारियों को औने पौने दाम पर बेचा जाता है.यहां के आदिवासी इस व्यापार से तो इतनी कमाई नहीं कर पाते हैं लेकिन क्षेत्रीयदलाल इस नदी के दम पर करोड़ों की कमाई कर रहे हैं.जो देते हैं सोना उन्हीं पर हो रहा अत्याचाररांची से बहने वाली यह नदी यहां के आदिवासियों के लिए आय का एकमात्र स्रोत है.उनकी नजाने कितनी ही पीढ़ियां इस नदी से सोने के कणों को निकालकर अपना पेट भर रही हैं, लेकिन वो कहते हैं ना कि जब आपको किसी वस्तु की पूर्ण जानकारी ना हो तो पूरी दुनिया आपका फायदा उठाने आ जाती है. कुछ ऐसा ही हो रहा है यहां के आदिवासियों के साथ भी. इतनी महंगी धातु के बदले में उन्हें कौड़ियों के दाम मिलते हैं जिनसे मुश्किल से ही उनका पेट भरता है. इस क्षेत्र के आदिवासियों कीआर्थिक स्थिति सालों से ही ऐसी ही रही है.

Monday, 1 December 2014

डूबती नजर आ रही है झारखण्ड की कांग्रेसी शिक्षा मंत्री और सिसई विधायक गीताश्री उराँव की नईया

डूबती नजर आ रही है झारखण्ड की कांग्रेसी शिक्षा मंत्री और सिसई विधायक गीताश्री उराँव की नईया 


भारतीय जनता पार्टी के द्वारा सिसई विधानसभा क्षेत्र के भूतपूर्व विधायक दिनेश उराँव को प्रत्याशी बनाये जाने और आदिवासी छात्र संघ के द्वारा सिसई विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेसी नेता शशिकांत भगत को प्रत्याशी घोषित किये जाने से जनता को बरगलाने वाली सिर्फ चुनावी वादे और ढपोरशंखी घोषणाओं की मार्ग पर अल्पसंख्यकों से घिर कर रहने वाली छवि के कारण झारखण्ड की कांग्रेसी शिक्षा मंत्री और सिसई विधायक गीताश्री उराँव की नईया सिसई विस क्षेत्र में डूबती नजर आ रही है । क्षेत्र की बहुसंख्यक जनता और अपने जनजातीय बन्धु - बान्ध्वियों का कल्याण त्याग जिस अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों के अंतिम संस्कार हेतु कब्रिस्तान और शमशान की घेराबंदी कराई वही अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के द्वारा साथ छोड़ते देख झारखण्ड की कांग्रेसी शिक्षा मंत्री गीताश्री उराँव अपने विधानसभा क्षेत्र सिसई को कांग्रेस के हाथ से गंवाती नजर आ रही है।

विधानसभा के दूसरे चरण में होने वाली सिसई विधानसभा क्षेत्र से नामांकन वापसी के अंतिम दिन निर्दलीय प्रत्याशी सुनील सुरीन के द्वारा निर्वाची पदाधिकारी को आवेदन देकर अपना नामांकन वापस ले लिए जाने के पश्चात अब कुल दस प्रत्याशी चुनाव मैदान में रह गए हैं। चुनाव मैदान में भाजपा के दिनेश उरांव,  कांग्रेस की गीताश्री उरांव, झारखंड पार्टी की किरण माला बाड़ा, झामुमो के जिगा सुशासन होरो, झाविमो के एजरा बोदरा, भाकपा-माले के मनी उरांव,निर्दलीय निकोलस मिंज, ललित उरांव,शशिकांत भगत एवं सुनील कुमार कुजूर शामिल हैं।

विगत चुनाव में कांग्रेस पार्टी से हार का मुंह देखने वाले समीर उराँव को सिसई विस क्षेत्र से नहीं उतारकर भाजपा ने अपने भूतपूर्व स्थानीय विधायक दिनेश उराँव को झारखण्ड की कांग्रेसी शिक्षा मंत्री और कार्तिक उराँव की पुत्री गीताश्री उराँव के सामने उतारकर अपने तुरुप का पत्ता खेल दिया है जिसका स्पष्ट फायदा भाजपा को मिलता दिख रहा है । स्थानीय होने और पार्टी तथा क्षेत्र की जनता ,मतदाताओं के समस्त प्रकार के क्रिया – कलापों में सहयोगी होने के कारण क्षेत्र में उनको व्यापक जनसमर्थन मिलता दिख रहा है । सिसई और बसिया को अनुमंडल का दर्जा दिलाने, सिसई के पुसो और भरनो प्रखंड करंज को प्रखंड का दर्जा दिलाने की प्रक्रिया शुरू कराने एवं सिसई-बसिया रोड का चौड़ीकरण कराने की पहल करने आदि सभी कार्य क्षेत्र के भूतपूर्व भाजपा विधायक दिनेश उरांव के कार्यकाल में प्रस्तावित थे एवं एक गैर सरकारी संकल्प भी भाजपा के शासन काल में पारित कराया गया था। देश के अन्य भागों की भान्ति झारखण्ड में मोदी लहर की स्पष्ट छाप के मध्य रही – सही कसर भाजपा नेताओं ने क्षेत्र में ताबड़तोड़ जनसभाएं और चुनावी रैलियां करके भाजपा के दिनेश उराँव की राह आसान कर दी हैं और क्षेत्र में चहुंओर भाजपा – भाजपा – भाजपा ही दिखाई और सुनाई दे रहा है । विगत पाँच वर्षों तक केन्द्र में रहकर कांग्रेस के द्वारा की गई गलतियों के साथ वायदों और घोषणाओं की राह पर चलने वाली तथा क्षेत्र में कब्रिस्तानों की घेराबंदी कराने वाली के नाम पर मशहूर गीताश्री उराँव के द्वारा अपने कार्यकाल के दौरान क्षेत्र में एक भी यद् रखने योग्य कार्य नहीं किये जाने कारण तथा उलटे टेट पास शिक्षकों की नियुक्ति को लटका दिए जाने के कारण क्षेत्र के शिक्षित मतदाताओं के साथ ही आम जनता अत्यन्त रुष्ट है और वह कांग्रेस के खिलाफ नजर आ रही है ।

भाजपा के परम्परागत मतदाताओं का कहाँ है कि प्रदेश की शिक्षा मंत्री सह सिसई विधायक गीताश्री उराँव क्षेत्र के विकास का वायदा चाहे जितना कर लें , परन्तु क्षेत्र में कागजी घोषणाओं का जाल व विकास का हाल बेहाल नजर आता है। शिक्षा मंत्री के क्षेत्र में शिक्षकों का हाल बेहाल है। नागफेनी में कल्याण विभाग से करोड़ों की लागत से बना अस्पताल आज तक शुरू नहीं हो सका। जिले के टेट पास पारा शिक्षकों की आज तक नियुक्ति नहीं हो सकी। जबकि दूसरे कई जिलों में नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। इसके अलावा विधानसभा क्षेत्र के कई गावों तक जाने के लिए आज तक अच्छी सड़क का निर्माण नहीं हो सका। सिसई से बसिया प्रखंड को जोड़नेवाली सड़क का निर्माण बंद पड़ा हुआ है। यही हाल बसिया को वाया नाथपुर – पालकोट – गुमला जोड़ने वाली सड़क कभी है । विगत पाँच वर्षों  में कृषकों के खेत में पानी नहीं पहुंचा, तो शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार के अवसर प्राप्त नहीं हुए। ग्रामीण जलापूर्ति का कार्य भी अधर में लटका हुआ है। गरीबी व बेकारी आज भी सिसई विधानसभा क्षेत्र के विकास की हकीकत उजागर करती है। क्षेत्र के नाराज मतदाताओं का कहना है कि विकास के नाम पर क्षेत्र का विनाश हुआ है । पिछले पांच वर्षो में क्षेत्र का विकास नहीं विनाश हुआ है। क्षेत्र में सुलभ सड़क, पेयजल, बिजली शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा का अभाव बना हुआ है। क्षेत्र की जनता को रोजगार मुहैया नहीं हो पा रहा है और जनता रोजी – रोटी की तलाश में प्रदेश के बाहर पलायन करने को विवश हो रही है।


सिसई विधानसभा क्षेत्र का वर्षों पुराना मुख्य मुद्दा सिसई को अनुमंडल का दर्जा दिलाने और पूसो व करंज को प्रखंड का दर्जा दिलाने का है ।
वादों व घोषणाओं के बीच पांच वर्ष गुजर गए, पर सिसई को अनुमंडल तथा सिसई प्रखंड के पूसो व भरनो प्रखंड के करंज को प्रखंड का दर्जा नहीं मिल सका। जनता आंदोलन करती रही और विधायक आश्वासन देती रहीं। मंत्री रहने के बावजूद गीताश्री उरांव द्वारा प्रखंड का दर्जा नहीं दिला पाने से क्षेत्र की जनता में काफी नाराजगी है। ग्रामीणों द्वारा मंत्री का पुतला भी फूंका जा चुका है। क्षेत्र की जनता को आशा थी कि अनुमंडल और प्रखंड का दर्जा मिलने से क्षेत्र का चहुमुंखी विकास होगा, पर उम्मीदों पर पानी फिर गया। इस बार के चुनाव में अनुमंडल और प्रखंड का निर्माण नहीं हो पाना इस क्षेत्र के लिए मुख्य चुनावी मुद्दा है ।वर्षों पुरानी माँग सिसई को अनुमंडल का दर्जा दिलाने की माँग तो क्षेत्र की मतदाताओं की पूरी तो नहीं हुई , उलटे गीताश्री के कार्यकाल में सिसई के स्थान पर बसिया को अनुमंडल का दर्जा दे दिए जाने से सिसई और भरनो प्रखंड के मतदाता कांग्रेस के साठी झामुमो से भी नाराज हैं , जिसका फायदा भाजपा को मिलता दिखाई दे रहां है । उधर ताल ठोंककर कांग्रेस के टिकट गत दो विस चुनावों नहीं मिलने से नाराज शशिकांत भगत के आदिवासी छात्र संघ के प्रत्याशी के रूप में काँग्रेस के बागी के रूप में चुनाव मैदान में उतर आने और आदिवासी छात्र संघ के द्वारा शशिकांत को जिताने के लिए दिन रत एक कर दिए जाने का नुक्सान भी कांग्रेस और झामुमो दोनों को ही हो रहा है आदिवासी छात्र संघ के प्रत्याशी शशिकांत भगत कांग्रेस के परम्परागत वोट बैंक और अन्य झारखण्ड नामधारी पार्टियों के जनाधार पर सेंध लगा रहे है शशिकांत भगत 2004 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे। उसमें 422 मतों के अंतराल से भाजपा के  विजित उम्मीदवार समीर उराँव से पीछे थे। झामुमो के जिग्गा सुसारण होरो , पुलिस अफसरी की नउकरी से त्याग पत्र देकर झारखण्ड विकास मोर्चा से चुनाव लड़ने वाले एजरा बोदरा , झारखंड पार्टी की किरण माला बाड़ा और अन्य निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव में अपना जलवा दिखला मतदाताओं के मध्य अपनी उपस्थिति दर्शाने के क्रम में क्षेत्र को बहुरंगी आयाम देने की कोशिश में लगे हैं , परन्तु झारखण्ड की कांग्रेसी शिक्षा मंत्री और सिसई विधायक गीताश्री उराँव अपनी नईया अपनी ही कथनी और करनी में अन्तर , मतदाताओं के सुख – दुःख से दूरी बना राँची में निवास करने , जनता से सिर्फ चुनावी वादे और ढपोरशंखी घोषणाओं की बरसात करने और बहुसंख्यकों के हित की बलि चढाकर अल्पसंख्यकों से घिर कर रहने वाली छवि के कारण सिसई विस क्षेत्र में डुबाती नजर आ रही है ।


डूबती नजर आ रही है झारखण्ड की कांग्रेसी शिक्षा मंत्री और सिसई विधायक गीताश्री उराँव की नईया

डूबती नजर आ रही है झारखण्ड की कांग्रेसी शिक्षा मंत्री और सिसई विधायक गीताश्री उराँव की नईया


भारतीय जनता पार्टी के द्वारा सिसई विधानसभा क्षेत्र के भूतपूर्व विधायक दिनेश उराँव को प्रत्याशी बनाये जाने और आदिवासी छात्र संघ के द्वारा सिसई विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेसी नेता शशिकांत भगत को प्रत्याशी घोषित किये जाने से जनता को बरगलाने वाली सिर्फ चुनावी वादे और ढपोरशंखी घोषणाओं की मार्ग पर अल्पसंख्यकों से घिर कर रहने वाली छवि के कारण झारखण्ड की कांग्रेसी शिक्षा मंत्री और सिसई विधायक गीताश्री उराँव की नईया सिसई विस क्षेत्र में डूबती नजर आ रही है । क्षेत्र की बहुसंख्यक जनता और अपने जनजातीय बन्धु - बान्ध्वियों का कल्याण त्याग जिस अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों के अंतिम संस्कार हेतु कब्रिस्तान और शमशान की घेराबंदी कराई वही अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के द्वारा साथ छोड़ते देख झारखण्ड की कांग्रेसी शिक्षा मंत्री गीताश्री उराँव अपने विधानसभा क्षेत्र सिसई को कांग्रेस के हाथ से गंवाती नजर आ रही है।

विधानसभा के दूसरे चरण में होने वाली सिसई विधानसभा क्षेत्र से नामांकन वापसी के अंतिम दिन निर्दलीय प्रत्याशी सुनील सुरीन के द्वारा निर्वाची पदाधिकारी को आवेदन देकर अपना नामांकन वापस ले लिए जाने के पश्चात अब कुल दस प्रत्याशी चुनाव मैदान में रह गए हैं। चुनाव मैदान में भाजपा के दिनेश उरांव,  कांग्रेस की गीताश्री उरांव, झारखंड पार्टी की किरण माला बाड़ा, झामुमो के जिगा सुशासन होरो, झाविमो के एजरा बोदरा, भाकपा-माले के मनी उरांव,निर्दलीय निकोलस मिंज, ललित उरांव,शशिकांत भगत एवं सुनील कुमार कुजूर शामिल हैं।

विगत चुनाव में कांग्रेस पार्टी से हार का मुंह देखने वाले समीर उराँव को सिसई विस क्षेत्र से नहीं उतारकर भाजपा ने अपने भूतपूर्व स्थानीय विधायक दिनेश उराँव को झारखण्ड की कांग्रेसी शिक्षा मंत्री और कार्तिक उराँव की पुत्री गीताश्री उराँव के सामने उतारकर अपने तुरुप का पत्ता खेल दिया है जिसका स्पष्ट फायदा भाजपा को मिलता दिख रहा है । स्थानीय होने और पार्टी तथा क्षेत्र की जनता ,मतदाताओं के समस्त प्रकार के क्रिया – कलापों में सहयोगी होने के कारण क्षेत्र में उनको व्यापक जनसमर्थन मिलता दिख रहा है । सिसई और बसिया को अनुमंडल का दर्जा दिलाने, सिसई के पुसो और भरनो प्रखंड करंज को प्रखंड का दर्जा दिलाने की प्रक्रिया शुरू कराने एवं सिसई-बसिया रोड का चौड़ीकरण कराने की पहल करने आदि सभी कार्य क्षेत्र के भूतपूर्व भाजपा विधायक दिनेश उरांव के कार्यकाल में प्रस्तावित थे एवं एक गैर सरकारी संकल्प भी भाजपा के शासन काल में पारित कराया गया था। देश के अन्य भागों की भान्ति झारखण्ड में मोदी लहर की स्पष्ट छाप के मध्य रही – सही कसर भाजपा नेताओं ने क्षेत्र में ताबड़तोड़ जनसभाएं और चुनावी रैलियां करके भाजपा के दिनेश उराँव की राह आसान कर दी हैं और क्षेत्र में चहुंओर भाजपा – भाजपा – भाजपा ही दिखाई और सुनाई दे रहा है । विगत पाँच वर्षों तक केन्द्र में रहकर कांग्रेस के द्वारा की गई गलतियों के साथ वायदों और घोषणाओं की राह पर चलने वाली तथा क्षेत्र में कब्रिस्तानों की घेराबंदी कराने वाली के नाम पर मशहूर गीताश्री उराँव के द्वारा अपने कार्यकाल के दौरान क्षेत्र में एक भी यद् रखने योग्य कार्य नहीं किये जाने कारण तथा उलटे टेट पास शिक्षकों की नियुक्ति को लटका दिए जाने के कारण क्षेत्र के शिक्षित मतदाताओं के साथ ही आम जनता अत्यन्त रुष्ट है और वह कांग्रेस के खिलाफ नजर आ रही है

भाजपा के परम्परागत मतदाताओं का कहाँ है कि प्रदेश की शिक्षा मंत्री सह सिसई विधायक गीताश्री उराँव क्षेत्र के विकास का वायदा चाहे जितना कर लें , परन्तु क्षेत्र में कागजी घोषणाओं का जाल व विकास का हाल बेहाल नजर आता है। शिक्षा मंत्री के क्षेत्र में शिक्षकों का हाल बेहाल है। नागफेनी में कल्याण विभाग से करोड़ों की लागत से बना अस्पताल आज तक शुरू नहीं हो सका। जिले के टेट पास पारा शिक्षकों की आज तक नियुक्ति नहीं हो सकी। जबकि दूसरे कई जिलों में नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। इसके अलावा विधानसभा क्षेत्र के कई गावों तक जाने के लिए आज तक अच्छी सड़क का निर्माण नहीं हो सका। सिसई से बसिया प्रखंड को जोड़नेवाली सड़क का निर्माण बंद पड़ा हुआ है। यही हाल बसिया को वाया नाथपुर – पालकोट – गुमला जोड़ने वाली सड़क कभी है । विगत पाँच वर्षों  में कृषकों के खेत में पानी नहीं पहुंचा, तो शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार के अवसर प्राप्त नहीं हुए। ग्रामीण जलापूर्ति का कार्य भी अधर में लटका हुआ है। गरीबी व बेकारी आज भी सिसई विधानसभा क्षेत्र के विकास की हकीकत उजागर करती है। क्षेत्र के नाराज मतदाताओं का कहना है कि विकास के नाम पर क्षेत्र का विनाश हुआ है । पिछले पांच वर्षो में क्षेत्र का विकास नहीं विनाश हुआ है। क्षेत्र में सुलभ सड़क, पेयजल, बिजली शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा का अभाव बना हुआ है। क्षेत्र की जनता को रोजगार मुहैया नहीं हो पा रहा है और जनता रोजी – रोटी की तलाश में प्रदेश के बाहर पलायन करने को विवश हो रही है।


सिसई विधानसभा क्षेत्र का वर्षों पुराना मुख्य मुद्दा सिसई को अनुमंडल का दर्जा दिलाने और पूसो व करंज को प्रखंड का दर्जा दिलाने का है ।

वादों व घोषणाओं के बीच पांच वर्ष गुजर गए, पर सिसई को अनुमंडल तथा सिसई प्रखंड के पूसो व भरनो प्रखंड के करंज को प्रखंड का दर्जा नहीं मिल सका। जनता आंदोलन करती रही और विधायक आश्वासन देती रहीं। मंत्री रहने के बावजूद गीताश्री उरांव द्वारा प्रखंड का दर्जा नहीं दिला पाने से क्षेत्र की जनता में काफी नाराजगी है। ग्रामीणों द्वारा मंत्री का पुतला भी फूंका जा चुका है। क्षेत्र की जनता को आशा थी कि अनुमंडल और प्रखंड का दर्जा मिलने से क्षेत्र का चहुमुंखी विकास होगा, पर उम्मीदों पर पानी फिर गया। इस बार के चुनाव में अनुमंडल और प्रखंड का निर्माण नहीं हो पाना इस क्षेत्र के लिए मुख्य चुनावी मुद्दा है ।वर्षों पुरानी माँग सिसई को अनुमंडल का दर्जा दिलाने की माँग तो क्षेत्र की मतदाताओं की पूरी तो नहीं हुई , उलटे गीताश्री के कार्यकाल में सिसई के स्थान पर बसिया को अनुमंडल का दर्जा दे दिए जाने से सिसई और भरनो प्रखंड के मतदाता कांग्रेस के साठी झामुमो से भी नाराज हैं , जिसका फायदा भाजपा को मिलता दिखाई दे रहां है । उधर ताल ठोंककर कांग्रेस के टिकट गत दो विस चुनावों नहीं मिलने से नाराज शशिकांत भगत के आदिवासी छात्र संघ के प्रत्याशी के रूप में काँग्रेस के बागी के रूप में चुनाव मैदान में उतर आने और आदिवासी छात्र संघ के द्वारा शशिकांत को जिताने के लिए दिन रत एक कर दिए जाने का नुक्सान भी कांग्रेस और झामुमो दोनों को ही हो रहा है आदिवासी छात्र संघ के प्रत्याशी शशिकांत भगत कांग्रेस के परम्परागत वोट बैंक और अन्य झारखण्ड नामधारी पार्टियों के जनाधार पर सेंध लगा रहे है शशिकांत भगत 2004 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे। उसमें 422 मतों के अंतराल से भाजपा के  विजित उम्मीदवार समीर उराँव से पीछे थे। झामुमो के जिग्गा सुसारण होरो , पुलिस अफसरी की नउकरी से त्याग पत्र देकर झारखण्ड विकास मोर्चा से चुनाव लड़ने वाले एजरा बोदरा , झारखंड पार्टी की किरण माला बाड़ा और अन्य निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव में अपना जलवा दिखला मतदाताओं के मध्य अपनी उपस्थिति दर्शाने के क्रम में क्षेत्र को बहुरंगी आयाम देने की कोशिश में लगे हैं , परन्तु झारखण्ड की कांग्रेसी शिक्षा मंत्री और सिसई विधायक गीताश्री उराँव अपनी नईया अपनी ही कथनी और करनी में अन्तर , मतदाताओं के सुख – दुःख से दूरी बना राँची में निवास करने , जनता से सिर्फ चुनावी वादे और ढपोरशंखी घोषणाओं की बरसात करने और बहुसंख्यकों के हित की बलि चढाकर अल्पसंख्यकों से घिर कर रहने वाली छवि के कारण सिसई विस क्षेत्र में डुबाती नजर आ रही है । 

Sunday, 27 April 2014

चुनाव पश्चात लाल गलियारा अर्थात रेड कॉरिडोर के नीचे दबे हजारों बमों को हटाना एक दुश्तर कार्य



चुनाव पश्चात लाल गलियारा अर्थात रेड कॉरिडोर के नीचे दबे हजारों बमों को हटाना एक दुश्तर कार्य


भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को यह कतई अंदाजा नहीं था कि भारतीय लोकसभा चुनाव 2014 का एक असर ऐसा भी होगा। 16 मई के चुनाव परिणाम के बाद जब देश की नजर दिल्ली की गद्दी की तरफ होगी तब सुरक्षा बल पूरे नक्सल प्रभावित इलाकों की जमीन से आइईडी विस्फोटक और लैंड माइन निकालने का खतरनाक मिशन पूरा करेंगे।
मतदान प्रभावित करने के लिए माओवादियों , नक्सलियों ने यह विस्फोटक चुनाव में तबाही मचाने के मकसद से जमीन के नीचे हजारों की संख्या में बिछा रखे हैं। तीसरे और चौथे चरण के चुनाव में छत्तीसगढ़ और झारखंड में मारे गए दर्जनों सुरक्षाकर्मी और चुनाव अधिकारियों की मौत के लिए जमीन के नीचे दबे यही विस्फोटक जिम्मेदार साबित हुए हैं।


गृह मंत्रालय और सुरक्षा एजेंसियां इस मिशन को पूरा करने की योजना को अंतिम रूप दे रहे हैं। दरअसल दिसंबर में छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनाव में नक्सलियों ने लोगों से चुनाव प्रक्रिया का बहिष्कार करने को कहा था।
लेकिन लोगों ने नक्सलियों को अंगूठा दिखा कर जमकर वोट डाला। जनता के इस तेवर से बौखलाए नक्सलियों ने लोकसभा चुनाव में हिंसा के भरपूर इस्तेमाल करने की योजना को अंजाम दिया।
इसी योजना के तहत रेड कॉरिडोर के करीब अस्सी फीसदी इलाके में आइईडी विस्फोटक लगाए गए। इसके लिए खासतौर पर स्कूल और सरकारी भवनों को चुना गया, जहां पोलिंग बूथ बनाए जाने की गुंजाइश थी।


छत्तीसगढ़ चुनाव से लौटे सीआरपीएफ के अधिकारी ने अमर उजाला को बताया कि आइईडी के डर से बस्तर के कई बूथ को खुले खेत में स्थानांतरित करना पड़ा।
हालांकि नक्सल इलाकों में करीब डेढ़ लाख सुरक्षा कर्मियों की मौजूदगी और पुख्ता व्यवस्था की वजह से नक्सली अपनी मनमानी नहीं कर पाए। लेकिन इस दहशत से वोट का औसत प्रतिशत घट गया।
सीआरपीएफ के महानिदेशक दिलीप त्रिवेदी के मुताबिक वोट का दस फीसदी तक घट जाना अफसोस की बात है। लेकिन इस इलाके में गुरिल्ला युद्ध जैसे हालात हैं।

Thursday, 17 April 2014

सुदेश महतोः पांच साल में पांच गुना कमाया

सुदेश महतोः पांच साल में पांच गुना कमाया

sudeshइस मामले में झारखंड के प्रायः नेताओं की किस्मत खूब साथ देती है। अब देखिये न। आजसू के सुप्रीमो एवं निर्दलीय मधु कोड़ा औऱ भाजपा के अर्जुन मुंडा की सरकार में उप मुख्यमंत्री समेत कई मलाईदार विभागों के मंत्री रहे सुदेश महतो की संपति में पिछले पांच वर्षों में 5 गुनी बढ़ी है। यानि कि हर साल सौ फीसदी की बढ़ोतरी। 
साधारण परिवार से आने वाले श्री महतो ने वर्ष 2009 के आम विधानसभा चुनाव के समय 1 करोड़ 67 लाख रुपये मूल्य की चल-अटल संपति थी। वहीं वर्ष 2014 के आसन्न लोकसभा चुनाव तक सात करोड़ 86 लाख 24 हजार रुपये मूल्य की हो गई है।
उन्होंने यह जानकारी रांची लोकसभा सीट से अपने नामाकंन के वक्त दाखिल शपथ पत्र में दी है। उनकी संपति की बाबत वर्ष 2009 के आकड़े सिल्ली विधानसभा के नामांकन के समय दाखिल शपथ पत्र की है। संपति के इन दोनों ब्योरों में उनकी पत्नी की संपति भी शामिल है।
शपथ पत्र के अनुसार वर्ष 2009 में सुदेश महतो के पास कृषि योग्य भूमि भी नहीं थी लेकिन, वर्ष 2014 तक उनके पास करीब 16 लाख रुपये मूल्य के कृषि योग्य भूमि हो गई है।
यही नहीं, सुदेश महतो की पत्नी नेहा महतो के पास वर्ष 2009 में कुल नकदी और निवेश 49 लाख 79 हजार का था, जो 2014 के आसन्न लोकसभा चुनाव तक बढ़ कर 3 करोड़ 93 लाख 50 हजार हो गई है।
 यहां पर उल्लेखनीय है कि धन संपदा कमाने के मामले में उन्होंने पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं रांची सीट से लगातार 3 बार सांसद रहे कांग्रेस के प्रत्याशी सुबोधकांत सहाय को भी पिछे छोड़ दिया है।
वर्ष 2009 के आम लोकसभा चुनाव के समय श्री सहाय के पास जहां 2 करोड़ 63 लाख 79 हजार रुपये मूल्य की चल-अटल संपति थी, जो वर्ष 2014 के आसन्न लोकसभा चुनाव तक बढ़कर 5 करोड़ 88 लाख 95 हजार रुपये मूल्य की हो गई। जोकि लगभग दूगनी अवस्था में है।

सुदेश महतो ने कैसे हासिल की NOU से एमए की डिग्री

सुदेश महतो ने कैसे हासिल की NOU से एमए की डिग्री ?

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sunil आम आदमी पार्टी से जुड़े आरटीआई कार्यकर्ता सुनील कुमार महतो ने रांची संसदीय सीट से पहली बार अपनी किस्मत आजमा रहे आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो की स्नातकोत्तर डिग्री पर सबाल खड़ा कर दिया है।
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उन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट पर लिखा है कि पहली तस्वीर 9 अप्रैल 2012 को होटवार स्थित राज्य संग्रहालय सभागार में जल संसाधन विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रम की है,  इसी दिन नालंदा विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित स्नातकोत्तर राजनीतिशास्त्र खण्ड-1 के छ्ठे पत्र की परीक्षा पटना में संपन्न हुई।
दूसरी तस्वीर 2 अप्रैल 2012 की तत्कालीन खेल मंत्री के आवास की है, इस दिन स्नातकोत्तर खण्ड-1 के तृतीय पत्र की परीक्षा संपन्न हुई।
तीसरी तस्वीर ओरमांझी में शाहीद प्रमोद शमीम की पुण्य तिथि पर 19 अगस्त 2013 की है,  इसी दिन स्नातकोत्तर खण्ड-2 के ग्यारहवें पत्र की परीक्षा संपन्न हुई ।
चौथी तस्वीर 27 अगस्त को इटकी में आजसू पार्टी द्वारा आयोजित कार्यक्रम की है, इस दिन स्नातकोत्तर खण्ड-2 के चौदहवें पत्र की परीक्षा पटना में संपन्न हुई।
आप सहज अनुमान लगा सकते हैं कि जनाब ने नालंदा खुला विश्वविद्यालय से सत्र 11-13 में एम.ए. की डिग्री कैसे हासिल की है? 

Sunday, 6 April 2014

लोहरदगा संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में 11.16 लाख मतदाता करेंगे भाग्य का फैसला

लोहरदगा संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में 11.16 लाख मतदाता करेंगे भाग्य का फैसला

अनुसूचित जनजातियों के लिए पूर्णतः सुरक्षित लोहरदगा संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे नौ प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला 11 लाख 16 हजार 227 मतदाता करेंगे। इसमें पुरुष मतदाता पांच लाख 76 हजार 774 है तथा महिला मतदाता पांच लाख 39 हजार 453 है। लोहरदगा क्षेत्र  के अंतर्गत पडऩे वाले पांच विधानसभा क्षेत्रों में 1478 मतदान केन्द्र बनाए गए है। इसमें 400 मतदान केन्द्र अति संवेदनशील है। अतिउग्रवाद प्रभावित क्षेत्र होने के कारण इस क्षेत्र में चुनाव कराना प्रशासन के लिए चुनौतीपूर्ण होगा। शहर से लेकर गांव में मतदाता जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। 


लोहरदगा संसदीय क्षेत्र में विधानसभावार मतदान केन्द्र व मतदाताओं  की संख्या 


लोहरदगा संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत पांच विधानसभा क्षेत्र पड़ता है। इसमें मांडर में 316 मतदान केन्द्र  है। यहां दो लाख 81 हजार 468 मतदाता है। इसमें पुरुष एक लाख 46 हजार 401 व महिला मतदाता एक लाख 35 हजार 67 है। सिसई में 294 मतदान केन्द्र  है। यहां दो लाख सात हजार 538 मतदाता है। इसमें पुरुष एक लाख छह हजार 115 व महिला मतदाता एक लाख एक हजार 423 है। गुमला में 282 मतदान केन्द्र है। मतदाता दो लाख 5089 है। इसमें पुरुष 104983 व महिला मतदाता 100106 है। विशुनपुर में 315 मतदान केन्द्र है। यहां 209700 मतदाता  है। इसमें पुरुष 109159 व महिला वोटर 100541 है। लोहरदगा में 271 मतदान केन्द्र है। यहां 212432 मतदाता है। इसमें पुरुष 110116 व महिला 102316 मतदाता है।



लोहरदगा संसदीय क्षेत्र में त्रिकोणीय मुकाबला होने की उम्मीद 


 लोहरदगा क्षेत्र मे हमेशा से भाजपा व कांग्रेस के बीच टक्कर होती रही है। लेकिन 2009 के चुनाव में निर्दलीय चमरा लिंडा के संसदीय चुनाव में उतरने से इन दोनों पार्टियों की गणित बिगाड़ दिया था। इस बार भी चमरा टीएमसी की टिकट पर लड़ रहे हैं। अगर चुनावी गणित को देखे तो इस बार लोहरदगा सीट से चतुष्कोणीय मुकाबले के आसार हैं। भाजपा के सुदर्शन भगत, कांग्रेस के रामेश्वर उरांव को तृणमूल कांग्रेस  के चमरा लिंडा टक्कर दे सकते हैं।



लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है l पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के विजयी प्रत्याशी सुदर्शन भगत को एक लाख 44 हजार 605 वोट मिले थे , जबकि दूसरे स्थान पर रहनेवाले चमरा लिंडा को एक लाख 36 हजार 344 वोट मिले थे l  कांग्रेस प्रत्याशी डॉ रामेश्वर उरांव तीसरे स्थान पर रहे , इन्हें एक लाख 29 हजार 610 वोट मिले l चौथे स्थान पर रमा खलखो रहीं,  जिन्हें 32 हजार 219 वोट मिले l आजसू पार्टी के डॉ देवशरण भगत 16 हजार 612 वोट के साथ पांचवें स्थान पर रहे l जेवीएम के डॉ बहुरा एक्का 14 हजार 798 वोटों के साथ छठे स्थान पर रहे l चमरा लिंडा को मिले वोट ने दोनों प्रमुख राजनीतिक दल (कांग्रेस और भाजपा) की नींद उड़ा दी थी l कांग्रेस पार्टी को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था , चूंकि वर्ष 2004 में इस सीट से कांग्रेस पार्टी के डॉ रामेश्वर उरांव चुनाव जीते और 2009 में वे तीसरे स्थान पर चले गये l

Thursday, 27 March 2014

पिछडेपन के लिए राजनैतिक दलों के साथ जनता भी जिम्मेदार - मायावती

पिछडेपन के लिए राजनैतिक दलों के साथ जनता भी जिम्मेदार - मायावती


बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमों मायावती ने झारखंड के पिछडेपन के लिए राजनीतिक दलों के साथ यहां की जनता को भी जिम्मेदार ठहाराया.
बसपा प्रमुख मायावती ने २४ मार्च को रांची से अपने उम्मीदवार दुर्गा उरांव के समर्थन में आयोजित एक चुनावी रैली में यह बातें कहीं. रैली में अपेक्षाकृत कम लोगों की उपस्थिति से बिफरीं मायावती ने राज्य की जनता को जाग जाने की ताकीद की.

उन्होंने कहा कि झारखंड देश के अधिकतर राज्यों से विकास के पैमाने पर बहुत पिछड़ा हुआ है जिसके लिए मुख्य रूप से यहां के राजनीतिक नेता और दल जिम्मेदार हैं अत: इस स्थिति को बदलने के लिए ईमानदार और अच्छे लोगों को चुनकर विधानसभाओं और संसद में भेजना होगा.

उन्होने कहा कि सोमवार के बंद के चलते रैली में उनके समर्थक नहीं पहुंच सके.

रैली में कम लोगों को देखकर मायावती ने कहा कि मेरे कार्यकर्ताओं ने यहां रैली करने का अनुरोध किया था जिसके चलते मैं यहां आयी. विपक्षी लोगों ने साजिश कर सोमवार को बंद करवाया है जिसके चलते पार्टी के पदाधिकारी तक विभिन्न स्थानों पर अटके पड़े हैं.

बसपा सुप्रीमों मायावती ने अपने कार्यकर्ताओं से अपील की कि आप लोग जितनी भी संख्या में आये हैं, मेरा संदेश लेकर जायें और पूरे राज्य की जनता को परिवर्तन के लिए प्रेरित करें.

रांची लोकसभा सीट से अपने उम्मीदवार सामाजिक कार्यकर्ता दुर्गा उरांव के लिए आयोजित इस रैली में मायावती ने कहा कि आप ने सभी दलों को यहां शासन करने का अवसर दिया है और उनका काम भी देखा है लेकिन अब बसपा को भी एक मौका देकर आप देखें कि आप के भाग्य में क्या परिवर्तन होता है.

उन्होंने आरोप लगाया कि बिहार से झारखंड क्षेत्र को विकास के उद्देश्य से ही अलग किया गया था लेकिन उस उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो सकी है.

उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों के झूठे वादों और इनसे पटे घोषणा पत्रों में लोगों को नहीं खोना चाहिए.

उन्होंने दावा किया कि संसद के अभी संपन्न हुए अंतिम सत्र में उन्होंने झारखंड के लिए भी विशेष राज्य के दर्जे की मांग की थी लेकिन जो दल यहां शासन में हैं और शासन कर चुके हैं उन्होंने पूरी तरह मौन धारण किये रखा.

खतरे में झारखंड सरकार, सोरेन के चार विधायक लड़ रहे हैं चुनाव


सिबू पुत्र हेमंत 

खतरे में झारखंड सरकार, सोरेन के चार विधायक लड़ रहे हैं चुनाव


झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार को समर्थन दे रहे कुछ विधायक लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं और उनके जीतने की स्थिति में सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.
82 सदस्यीय विधानसभा के आठ सदस्यों ने लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन पत्र दाखिल किया है

आठ में सात सत्तारूढ़ गठबंधन से हैं. इनमें से तीन ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. इन तीनों में दो झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और एक कांग्रेस से हैं.

झामुमो के दो विधायक हेमलाल मुर्मू और विद्युत बरन महतो ने पार्टी से इस्तीफा देकर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली. उन्हें क्रमश: राजमहल और जमशेदपुर से टिकट दिया गया है. कांग्रेसी नेता चंद्रशेखर दुबे धनबाद सीट से तृणमूल कांग्रेस के टिकट से लड़ रहे हैं.

हेमंत सोरेन सरकार को समर्थन दे रहे चार अन्य विधायक लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. सरकार के दो विधायक बंधु तिर्की और चामरा लिंडा ने अब तृणमूल कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली है और वे क्रमश: रांची और लोहरदगा सीट से खड़े हुए हैं.

झामुमो विधायक जगन्नाथ महतो गिरिडीह से चुनाव लड़ रहे हैं. एक अन्य विधायक गीता कोड़ा चाईबासा से उम्मीदवार हैं. गीता पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी हैं. इधर विपक्षी पार्टियों में सिर्फ झारखंड विकास मोर्चा-प्रजातांत्रिक (झाविमो-प्र) के विधायक प्रदीप यादव गोड्डा से चुनाव लड़ रहे हैं.

सीट की बात करें तो सत्तारूढ़ दल के पास 43 विधायक हैं. तीन विधायकों के इस्तीफा देने पर विधानसभा में सदस्य संख्या 79 हो गई है और सत्तारूढ़ सरकार की सीट घट कर 40 हो गई है.

विपक्षी पार्टियों में 39 विधायक हैं. इस स्थिति में अगर हेमंत सरकार के दो विधायक लोकसभा के लिए चुन लिए गए तो यह अल्पमत में आ जाएगी. हेमंत ने भी चुनाव प्रचार के दौरान यह स्वीकारा है कि उनकी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश चल रही है और उन्होंने पार्टी समर्थकों से किसी भी तरह की स्थिति के लिए तैयार रहने को कहा है.

चुनावी मैदान नें पांच भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी



चुनावी मैदान नें पांच भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी 


झारंखड प्रदेश में पांच पूर्व भारतीय पुलिस सेवा
(आईपीएस) अधिकारी मैदान में होंगे. इनमें अजय कुमार, अमिताभ चौधरी, बी. डी. राम, सुबोध प्रसाद और रामेश्वर उराँव हैं.
झारंखड में भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के पांच पूर्व अधिकारी चुनावी मैदान में उतरे हैं. ये पांच पूर्व आईपीएस अधिकारी जमशेदपुर के मौजूदा सांसद अजय कुमार, अमिताभ चौधरी, बी. डी. राम, सुबोध प्रसाद और रामेश्वर उराँव हैं.

अजय कुमार 2011 के चुनाव में निर्वाचित हुए थे. आईपीएस की नौकरी छोड़कर वह झारखंड विकास मोर्चा प्रजातांत्रिक (जेवीएम-पी) में शामिल हुए थे.

रामेश्वर ओरांव भी 2004 में आईपीएस की नौकरी से इस्तीफा देकर कांग्रेस में शामिल हो गए थे. वह लोहरदगा से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और उन्होंने जीत भी हासिल की. वह केंद्र सरकार में भी मंत्री रहे हैं. 2009 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा . उसके बाद वे 2010 में झारखण्ड विधानसभा का चुनाव मनिका विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से लड़े परन्तु विधानसभा का चुनाव भी वे हार गए और इस बार के लोकसभा चुनाव में वह लोहरदगा से कांग्रेस के प्रत्याशी हैं.

पूर्व पुलिस महानिदेशक बी.डी. राम ने सेवानिवृत्ति के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दामन थामा और वह पलामू लोकसभा सीट से भाजपा के प्रत्याशी हैं.

पिछले साल आईपीएस सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाले अमिताभ चौधरी झारखंड राज्य क्रिकेट ऐसोसिएशन (जेएससीए) के अध्यक्ष हैं. वह जेवीएम-पी के टिकट पर रांची से चुनाव लड़ रहे हैं. सेवानिवृत्त पुलिस उपमहानिरीक्षक सुबोध प्रसाद ने गोड्डा सीट से आल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (एजेएसयू) की ओर से पर्चा भरा है.

इन सभी पूर्व पुलिस अधिकारियों का कहना है कि वे लोगों की सेवा और अपने-अपने लोकसभा क्षेत्र के विकास के लिए राजनीति में आए हैं.

आज माओवादियों ने लोकतंत्र को ललकारा है। माओवादियों के हाथों में बंदूक नहीं, हल होना चाहिए , कलम होना चाहिए - झारखंड की गुमला में भारत विजय रैली में नरेंद्र भाई मोदी

गुमला में नमो 

आज माओवादियों ने लोकतंत्र को ललकारा है। माओवादियों के हाथों में बंदूक नहीं, हल होना चाहिए , कलम होना चाहिए  - झारखंड की गुमला में भारत विजय रैली में नरेंद्र भाई मोदी



आसन्न लोकसभा चुनावों को लेकर बुधवार को प्रारम्भ हुए भारत विजय रैली की १८५ रैलियों की श्रृखला में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार नरेंद्र भाई  मोदी ने झारखंड के गुमला में रैली को संबोधित करते हुए कहा कि राऊरे मन के जोहार !गुमला में भारत विजय रैली  रैली को संबोधित करते हुए मोदी ने झारखंड के महापुरुषों का नाम लेते हुए इसे वीरों और बलिदानियों की भूमि कहा। उन्होंने कहा कि यहां की खनिज संपदा की तारीफ की और कहा कि झारखंड अमीर है पर लोग गरीब हैं। झारखंड के लोगों को रोजगार के लिए प्रदेश के बाहर जाना पड़ता है। यहाँ शिक्षा का अभाव है।

मोदी ने कहा कि झारखंड के किसानों को पानी नहीं मिलता। यहां की मिट्टी ऐसी है कि किसान भाईयों को पानी मिले, तो मिट्टी सोना उगल सकती है। कांग्रेस पर हमला करते हुए मोदी ने कहा कि सरकार की गलत नीतियों की वजह से झारखंड में विकास नहीं हो पाया है। उन्होंने कहा कि अब भारत  महंगाई, बेरोजगारी पर विजयी होना चाहता है। भ्रष्टाचर पर बोलते हुए मोदी ने कहा कि ये बुराई वादों से नहीं इरादों से खत्म होगी। कांग्रेस को आदिवासियों की चिंता नहीं है।
नमो आदिवासियों के लिए पूर्णतः सुरक्षित लोहरदगा संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के भाजपा प्रत्याशी सुदर्शन भगत के पक्ष में मतदान करने की अपील गुमला स्थित हवाई अड्डा मैदान में करते झारखण्ड के स्वाधीनता  सेनानियों का भी नमन किया लेकिन १८५७ के पूर्व ही आंग्ल शासकों के विरूद्ध गुमला और आस - पास के क्षेत्रों में स्वाधीनता की ज्योति जगाने वाले सिसई प्रखण्ड के मुरूनगुर अर्थात मुर्गु ग्राम निवासी महान स्वाधीनता सेनानी तेलंगा खड़िया को स्मरण करना भूल गए .
नमो ने कहा कि आज क्षेत्र में सक्रीय प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी ने भारत विजय रैली को देखकर आज बंदी का एलान किया है , इसके बावजूद रैली में उपस्थित भीड़  नमन के योग्य है !  रैली में भारी संख्या में आए लोगों को बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि यह भीड़ , यह उमड़ा जनसमूह प्रदर्शित करता है कि लोगों ने माओवादियों की विचारधारा को खारिज कर दिया है।

लोहरदग्गा से पार्टी उम्मीदवार सुदर्शन भगत को समर्थन देने का आह्वान करते हुए मोदी ने कहा कि बंद और बंदूक की धमकी के बावजूद आप बड़ी संख्या में यहां आए। यह लोकतंत्र में आपके विश्वास और बंदूक से निर्भिकता को प्रदर्शित करता है। मैं अपका सम्मान करता हूं। उन्होंने कहा कि लोगों के कल्याण के लिए हमें समाधान निकालना चाहिए। खून बहाना नहीं बल्कि विकास के लिए काम.. हम सभी लोकतंत्र के लिए हैं। नमो ने कहा कि आज माओवादियों ने लोकतंत्र को ललकारा है। माओवादियों के हाथों में बंदूक नहीं, हल होना चाहिए, जिससे भूखे गरीबों का पेट भर सके। माओवादियों के हाथ में किताबें और कलम हो ताकि गरीब का कल्याण हो सके और ऐसा सिर्फ भाजपा की सरकार में हो सकता है।

मोदी ने कांग्रेस को आड़े हाथों लिया और कहा कि कांग्रेस ने आदिवासियों के लिए कुछ नहीं किया। अगर आदिवासियों का कोई भला कर सकती है तो वह भाजपा है। उन्होंने कहा कि अगर देश की बदहाल तस्वीर बदलनी है तो बीजेपी को सरकार में लाना होगा।

नमो ने कांग्रेस पर वार करते हुए कहा कि अब देश में पतझड़ का मौसम खत्म हो रहा है और चुनाव के बाद बसंत आने वाला है। मोदी ने उम्मीद जताई कि अगर राज्य को पानी मिला तो यहां की मिट्टी में सोना उपजेगा। मोदी ने कहा कि यह चुनाव आंधी में परिवर्तित हो चुका है जो देश को तबाह करने वालों को बर्बाद कर देगा।मोदी ने कहा कि अब पतझड़ खत्म हो चुका है और बसंत आनेवाला है। उन्होंने झारखंड बनने का श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी को देते हुए कहा कि अगर वह न होते तो झारखंड नहीं बनता। अटल जी ने ही यहां आदिवासियों का कल्याण किया और भाजपा के आने से ही आदिवासियों का कल्याण होगा !ध्यातव्य  है कि आज मोदी की चार रैलियां हैं। झारखंड में दो और बिहार में दो रैलियां।


नेहरू ने झारखंड की मांग का मजाक उड़ाया था -मोदी
झारखंड प्रदेश के गुमला में भारत विजय अभियान रैली को भाजपा के प्रधानमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने रैली को संबोधित करते हुए कहा कि अटल जी ने झारखंड दिया, कांग्रेस ने कभी जनता की आवाज नहीं सुनी।’वाजपेयी न होते तो कभी झारखंड को उसका हक नहीं मिलता। नेहरू ने झारखंड की मांग का मजाक उड़ाया था। अटल जी ने झारखंड को उसका हक दिया। झारखंड के लिए बिहार में बैठे कुछ नेताओं ने कहा था कि इस प्रदेश का जन्म मेरी लाश पर होगा। बिहार के वे नेता आज कहां हैं? मोदी ने कहा, आदिवासी समाज का इतिहास बहुत पुराना है। आदिवासियों का मंत्रालय वाजपेयी जी ने बनाया। अगर आदिवासियों का कोई कल्याण कर सकता है, तो वह सिर्फ भारतीय जनता पार्टी है। झारखंड अमीर लेकिन यहां के लोग गरीब, झारखंड के लोगों को रोजगार के लिए प्रदेश के बाहर जाना पड़ता है। शिक्षा का अभाव है, पानी तक नहीं मिलता। इस राज्य के किसानों को पानी नहीं मिलता। इस प्रदेश की मिट्टी ऐसी है कि यहां के किसान भाईयों को पानी मिले, तो मिट्टी सोना उगल सकती है। प्रदेश में इतना कोयला, इतना लोहा होने के बाद भी यह दशा क्यों हुई है? प्राकृतिक संपदा के बाद भी झारखंड गरीब है। इस प्रदेश के कुछ नेता कोयला और लोहा की भी चोरी कर रहे हैं। भ्रष्टाचार पर हमला बोलते हुए मोदी ने कहा, भारत भ्रष्टाचार पर विजय चाहता है। भारत माताओं-बहनों का सम्मान चाहता है। भारत बेरोजगारी पर विजय चाहता है। इसलिए हम यह भारत विजय रैली कर रहे हैं। झारखंड के गुमला में रैली के दौरान मोदी ने एक बार फिर कांग्रेस पर जम कर निशाना साधा। उन्होंने कहा, नेहरू ने झारखंड की मांग का मजाक उड़ाया था

Saturday, 15 March 2014

15 साल बाद फिर शिबू सोरेन-बाबूलाल मरांडी आमने-सामने




15 साल बाद फिर शिबू सोरेन-बाबूलाल मरांडी आमने-सामने



झारखण्ड के दुमका लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र  से झारखंड विकास मोर्चा ने अपने सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी को अपना उम्मीदवार बनाया  है. वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा  ने भी अपने सुप्रीमो  शिबू सोरेन को प्रत्याशी बनाया है. करीब 15 वर्ष के बाद झारखंड दो दिग्गज आपस में भिड़ेंगे. यह संयोग ही है कि दोनों ही झारखंड के मुख्यमंत्री व केंद्र में मंत्री भी रह चुके हैं. 

यानी यह टकराव न केवल दो पारंपरिक प्रतिद्वंद्वियों के बीच होगी, बल्कि राजनीति के दो शीर्ष व्यक्तियों की भी होगी. बाबूलाल जहां झाविमो के केंद्रीय अध्यक्ष हैं, वहीं शिबू सोरेन भी झामुमो के केंद्रीय अध्यक्ष हैं. दोनों ही अपने स्तर से अपनी स्थानीय पार्टी को संभाल रहे हैं. नेतृत्व प्रदान कर रहे हैं. अंतर सिर्फ इतना है कि झामुमो 40 वर्ष पुरानी पार्टी है, तो झाविमो केवल आठ वर्ष पुरानी पार्टी है. 1973 में झामुमो का गठन हुआ था और 2006 में भाजपा से अलग होकर बाबूलाल मरांडी ने झाविमो बनाया था. 

1998 में पहली बार बाबूलाल मरांडी को मिली थी सफलता
शिबू सोरेन पहली बार 1980 में दुमका से सांसद बने. 1984 में उन्हें कांग्रेस के पृथ्वीचंद किस्कू ने मात दी. 1989 में शिबू फिर जीते. फिर तो 1998 तक वह थमे नहीं. 1991 में पहली बार बाबूलाल मरांडी को दुमका से भाजपा ने टिकट दिया था. बाबूलाल को शिबू सोरेन ने हरा दिया. 1996 में बाबूलाल फिर शिबू से भिड़े. इस बार भी हार मिली. 

1998 के चुनाव में बाबूलाल को पहली बार सफलता मिली. वह शिबू सोरेन को हराने में सफल हुए, पर केंद्र में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार 13 माह में ही गिर गयी. 1999 के चुनाव में शिबू सोरेन की जगह उनकी पत्नी रूपी सोरेन किस्कू खड़ी हुईं. बाबूलाल ने इस चुनाव में भी जीत दर्ज की. बाबूलाल को केंद्र में वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री बनाया गया. 15 नवंबर 2000 को झारखंड अलग हुआ. बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बने. बाबूलाल मरांडी ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. तकनीकी वजहों से विलंब के कारण मई 2002 में दुमका में उप चुनाव हुआ. शिबू सोरेन ने भाजपा के रमेश हेंब्रम को हराया. इसके बाद से वर्ष 2009 तक शिबू सोरेन का रथ रुका नहीं है. 

2006 में बाबूलाल ने झाविमो बनाया
वर्ष 2006 में बाबूलाल मरांडी ने भाजपा छोड़ कर अपनी अलग पार्टी झारखंड विकास मोरचा बनायी. हालांकि, 1999 के बाद बाबूलाल मरांडी ने लोकसभा चुनाव कोडरमा सीट से ही लड़ा. उनका टकराव फिर शिबू सोरेन के साथ नहीं हो सका. अब लंबे अंतराल के बाद वह दुमका में शिबू सोरेन के साथ भिड़ेंगे. राजनीतिक  विश्लेषक इस चुनाव को रोचक मान रहे हैं. कारण है कि दोनों का झारखंड का दिग्गज होना और एक-दूसरे का घोर राजनीतिक विरोधी होना .

भारत , भारतीय व भारतीयता तभी तक सुरक्षित है, जब तक सुरक्षित है हिंदू समाज व संस्कृति



राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघसंचालक मोहन भागवत राँची में 



" भारत , भारतीय व भारतीयता तभी तक सुरक्षित है, जब तक सुरक्षित है हिंदू समाज व संस्कृति "- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत 

 "वनवासी किसी जाति का नाम नहीं है. हिंदुस्तान का 30 करोड़ समाज वनवासी है. ये वनवासी सहनशीलता से मानव बम हो गये हैं. इनके विस्फोट से जो रोशनी होगी, उससे समाज रोशन होगा. राम लला का मंदिर बाद में बनेगा, पहले 30 करोड़ लोगों के चेहरे पर हम मुस्कान लायेंगे. - एकल अभियान के केंद्रीय संगठन प्रभारी श्यामजी गुप्त 


" भारत , भारतीय व भारतीयता तभी तक सुरक्षित है, जब तक हिंदू समाज व संस्कृति सुरक्षित है. इसी सुरक्षित व शुद्ध स्वरूप में वनों में रहने वाले 30 करोड़ वनवासियों को हमें जगाना है. हमें सबको जोड़ना है, हम सबको जोड़ेंगे . " गत 25 वर्षो से चल रहे एकल अभियान के तहत दूरदराज के गांवों में चलने वाले  विद्यालयों , एकल विद्यालयों में कार्यरत्त एकमात्र शिक्षकों के एकल समारोह में भाग लेने के लिए राज्य के कोने-कोने से हजारों की संख्या में पहुंचे शिक्षकों , सम्बंधित अभ्यागत्तों को बिरसा मुंडा फुटबॉल स्टेडियम, मोरहाबादी में आयोजित एकल संगम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने ये बातें कहीं .
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के  के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि झारखंड प्रान्त में जब एकल विद्यालय की कल्पना हो रही थी, उस वक्त मैं बिहार-झारखंड इलाके में ही था. तब यह एक कल्पना थी. एक प्रयोग था. आज मैं कह सकता हूं कि जैसा सोच था, वैसा ही हो रहा है. एकल अभियान के 25 वर्ष पूर्ण होने पर यह आयोजित इस एकल संगम में उन्होंने कहा कि जहां धर्म है वहीं विजय है. वनवासियों को जगाये बगैर भारत विश्व गुरु नहीं हो सकता. उन्होंने कहा कि "इनको जगाने के लिए जमीन पर काम करना होगा. श्री भागवत ने कहा कि यह काम हमें विरोध या किसी प्रतिक्रिया में नहीं करना है ." एक कहानी सुना कर वह बोले कि "करते वक्त चिढ़ाने, डराने व तिरस्कार से घबराना नहीं चाहिए. ऐसा करने वाले करेंगे, पर अपने लक्ष्य की ओर लगातार बढ़ते रहने से ही सफलता मिलेगी. संघ के सौ साल पूरे होने तक भारत माता का वैभव लौटाना है." कार्यक्रम के अध्यक्ष विकास भारती के सचिव अशोक भगत ने कहा कि "गरीबों के लिए संघर्ष को कुछ लोगों ने अपनी बपौती बना ली थी. पर एकल अभियान के तहत युवाओं ने सकारात्मक भूमिका निभायी है. हम घृणा व नफरत नहीं फैलाते, हम वनवासियों को उनकी ताकत का अहसास कराते हैं. धीरे-धीरे यह समाज आगे बढ़ रहा है." एकल अभियान के केंद्रीय संगठन प्रभारी श्यामजी गुप्त ने कहा कि "वनवासी किसी जाति का नाम नहीं है. हिंदुस्तान का 30 करोड़ समाज वनवासी है. ये वनवासी सहनशीलता से मानव बम हो गये हैं. इनके विस्फोट से जो रोशनी होगी, उससे समाज रोशन होगा." श्री गुप्त ने कहा कि राम लला का मंदिर बाद में बनेगा, पहले 30 करोड़ लोगों के चेहरे पर हम मुस्कान लायेंगे. श्रोता के रूप में निवर्तमान लोकसभा उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा, पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, सीपी सिंह, रवींद्र राय, दीपक प्रकाश सहित अन्य भाजपा नेता तथा राज्य भर से आये एकल विद्यालय व एकल अभियान से जुड़े हजारों कार्यकर्ता  उपस्थित थे.

उल्लेखनीय है कि गत 25 वर्षो से चल रहे एकल अभियान के तहत दूरदराज के गांवों में चलने वाले उन  विद्यालयों को एकल विद्यालय कहा जाता है, जहां एक शिक्षक होते हैं. ये शिक्षक ग्रामीण बच्चों को पंचमुखी शिक्षा (पारंपरिक शिक्षा, स्वास्थ्य शिक्षा, समृद्धि शिक्षा, संस्कार की शिक्षा व स्वाभिमान जागरण) देते हैं. देश में एकल विद्यालय की शुरुआत झारखंड के रतनपुर टुंडी में 1989 में हुई थी. तब यहां के 60 गांवों में एकल विद्यालय शुरू किये गये थे. आज इनकी संख्या लगभग 60 हजार हो गयी है. अगले कुछ वर्षो में यह संख्या एक लाख करने का लक्ष्य है. एकल अभियान के तहत गांव के वयस्कों को जैविक खेती तथा अन्य तकनीकी जानकारी दी जाती है.कार्यक्रम के दौरान वनवासी कल्याण, एकल विद्यालय व एकल अभियान से जुड़े समर्पित कार्यकर्ताओं को सम्मानित भी किया गया. सरसंघचालक मोहन भागवत ने उन्हें खुद अपने हाथों से तिलक लगा कर, श्री फल देकर व शॉल ओढ़ा कर सम्मानित किया. सम्मानित होने वालों में मेहरंग उरांव, योगेश्वर गिरि, विष्णु उरांव, संजय साहु, देवकी नंदन यादव, जीतू पाहन, लाल मोहन महतो, विरेंद्र सोरेन, सुमित्र बड़ाइक व दुबराज हेंब्रम शामिल हैं. कार्यक्रम को दौरान एकल विद्यालय के बच्चों ने पंचमुखी शिक्षा पर आधारित लघु नाटिका पेश की.


Thursday, 13 March 2014

झारखण्ड प्रदेश में आठ सीटों पर प्रत्याशी उतारेगी भाकपा (माले)



झारखण्ड प्रदेश में आठ सीटों पर प्रत्याशी उतारेगी भाकपा (माले)


भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले लिबरेशन) ने आगामी लोकसभा चुनावों में झारखंड की आठ सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने की घोषणा की है। पार्टी ने कहा है कि वह शेष छह सीटों पर वामपंथी दलों और अन्य दलों को समर्थन देगी।










भाकपा माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपांकर भटटाचार्य ने आज संवाददाता सम्मेलन में यह घोषणा की। पार्टी रांची से बहादुर उरांव, लोहरदगा से लालशाही भगत, पलामू से सुषमा मेहता, चतरा से रामनरेश सिंह, हजारीबाग से जावेद इस्लाम, कोडरमा से राजकुमार यादव, गोडडा से गीता मंडल और दुमका से बेटिया मांक्षी को अपना उम्मीदवार बनायेगी । इससे यह साफ हो गया है कि रांची में माकपा और भाकपा माले चुनाव मैदान में आमने सामने होंगे।

राजनीति में आने के लिए नौकरी त्याग रहे नौकरशाह

झारखण्ड का नक्शा 


राजनीति में आने के लिए नौकरी त्याग रहे नौकरशाह 

झारखण्ड प्रदेश में नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों में राजनीति के प्रति रूझान बढ़ता दिखाई दे रहा है। राजनीति में अपनी पारी खेलने के लिए पिछले कुछ महीनों में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के कई अधिकारी नौकरी को अलविदा कह चुके हैं। मुख्य सचिव स्तर के एक अधिकारी विमलकीर्ति सिंह ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन दिया है। विमलकीर्ति सिह के नजदीकी सूत्रों की मानें तो वे अपने गृह जिला बिहार के सिवान से लोकसभा का चुनाव लड़ सकते हैं।  सिह ने अबतक राजनीति से जुड़ने की बात न तो स्वीकार की है और न ही इनकार किया है।

उन्होंने कहा, "मेरे पास लोकसभा चुनाव लड़ने का विकल्प खुला है। अभी तक मैंने पार्टी और क्षेत्र के बारे में फैसला नहीं लिया है। मैं यह साफ करता हूं कि मैं झारखंड से चुनाव लड़ूंगा।"  अधिकारी ने कहा, "मैं एक वकील हूं और दिल्ली में लॉ फॉर्म खोलूंगा।" पुलिस में महानिरीक्षक स्तर के अधिकारी अरुण उरांव ने भी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन दिया है।

उरांव पंजाब काडर के अधिकारी हैं और वे यहां पांच वर्ष के लिए पदस्थापन पर आए हुए हैं। उनकी पत्नी गीताश्री उरांव झारखंड की शिक्षा मंत्री हैं। उरांव के पिता बंडी उरांव भी आईपीएस अधिकारी थे और बाद में विधायक बने थे। ओरांव के नजदीकी सूत्रों की मानें तो वे भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी के रूप में लोहरदगा से लोकसभा का चुनाव लड़ सकते हैं।

अतिरिक्त महानिदेशक स्तर के आईपीएस अधिकारी अमिताभ चक्रवर्ती ने पिछले साल चुनाव लड़ने के लिए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी। वे फिलहाल झारखंड क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। वे रांची से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। झारखंड में नौकरशाहों का नौकरी छोड़कर चुनाव में आना कोई नई बात नहीं है।


भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा भी आईएएस अधिकारी थे। अतिरिक्त महानिदेशक स्तर के आईपीएएस अधिकारी रामेश्वर उरांव ने भी 2004 लोकसभा चुनाव के पहले नौकरी छोड़ी थी। कांग्रेस के टिकट पर वो लोहरदगा सीट से जीते और बाद में मंत्री भी बने। एक और सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक वी. डी. राम भाजपा में शामिल हुए हैं और वे विधानसभा का चुनाव कांके विधानसभा क्षेत्र से लड़ सकते हैं।