Sunday, 14 December 2014

मतदान के बाद अब हो रही जीत-हार पर चर्चा

मतदान के बाद अब हो रही जीत-हार पर चर्चा 


पहले और दूसरे चरण में सम्पन्न मतदान के बाद अब गुमला , लोहरदगा , सिमडेगा, खूंटी, राँची आदि जिलों के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में प्रत्याशियों की हारजीत पर जमकर चर्चा हो रही है। गली-मोहल्लों से लेकर चौपालों, बाजारों में यही चर्चा है कि कौन सा प्रत्याशी किसे हरा कर जीत रहा है। यह भी चर्चा हो रही है कि तीसरे नंबर पर कौन राजनितिक पार्टी अथवा प्रत्याशी रहने वाला है ।इन जिलों मे विधान सभा चुनाव हो जाने के बाद शहर , कस्बा से लेकर गांव तक हर चौक - चौराहों , नुक्कड़ो में अब प्रत्याशियों के जीत के दावे करते लोग नहीं थक रहें हैं। मतदान के बाद मतगणना की तिथि लंबी होने के कारण लोग तरह-तरह के कयास लगाने लगे है। विधान सभा चुनाव में जिस तरह गांव से लेकर शहर तक वोटरों का रुझान खुलकर सामने नहीं आया, उसके बाद लगने लगा है कि जिन दो प्रत्याषियों में कांटे की टक्कर होगी , वह मतगणना के दिन ही स्पष्ट हो पाएगा कि किसके पाले में कितना वोट गया है?

राष्ट्रीय पार्टियों और क्षेत्रीय दलों के साथ ही निर्दलीय प्रत्याशियों के समर्थक अपने-अपने हिसाब से और अपने परिचितों व सुदूर गाँव - देहात जंगली - पहाड़वर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों से बातचीत के आधार पर हाथ में कागज -कलम लेकर प्रत्याशी विशेष की हार-जीत का गणित बैठा रहे हैं। जिन लोगों की राजनीति में थोड़ी सी भी रुचि है, वे अपने घर देहात क्षेत्र से दूध देने आने वाले दूधिया, अखबार देने आने वाले हॉकर, घर में साफ-सफाई के लिए आने वाली धंगरीन अर्थात बाई, गली के सफाई कर्मी तथा यार दोस्तों से यह जानने का प्रयास करते नजर आए कि तेरे यहां से कौन जीत रहा है और किसको सर्वाधिक वोट मिलने की संभावना है । दिन भर प्रशासनिक गलियारों, बसों व रेलगाड़ियों में प्रतिदिन कामडारा - राँची , बानो - राँची , लोहरदगा - राँची तक का सफर तय करने वाले यात्रियों के बीच भी यही चर्चा होती रही। लोगों की रुचि इस बात को लेकर ज्यादा थी कि गांवों में किस प्रत्याशी के पक्ष में कितनी वोट पड़ी ? इधर कई बार प्रत्याशी विशेष के समर्थक को जब अपनी आशानुरूप मतदान न होने की खबर मिलती, तो वह मायूस हो जाता। सवारी बस और बस पड़ाव में ग्रामीण मतदाताओं के बीच तो बातचीत के दौरान तनातनी भी बनी रही।गुमला शहर के लोगों के बीच भाजपा प्रत्याशी शिव शंकर उराँव , झामुमो प्रत्याशी भूषण तिर्की , कांग्रेस प्रत्याशी विनोद किस्पोट्टा को केंद्र में रखते हुए इस बात पर चर्चा होती रही कि विधानसभा क्षेत्र के प्रमुख गांवों में किस प्रत्याशी ने कितने प्रतिशत मत हासिल किए हैं ? इसी तरह सिसई विधानसभा क्षेत्र के प्रत्याशियों भाजपा के दिनेश उराँव ,  कांग्रेस की कार्तिक उराँव ब्रांड गीताश्री उराँव , झामुमो के जिग्गा सुशारण होरो को केंद्र में रखते हुए सनातन सरना - हिन्दू वअल्पसंख्यक ईसाई -मुस्लिम बाहुल्य गांवों से कितनी वोट मिली, इसी पर चर्चा होती रही और समर्थन उन्हें आंकड़ों के आधार पर हार-जीत के पैमाने पर तोलते रहे और भाजपा प्रत्याशी दिनेश उराँव के समर्थकों ने कुछ स्थान पर मिठाई बाँट और आतिशबाजी कर खुशियाँ भी मना डाली ।
इधर बिशुनपुर  सुरक्षित सीट पर एक बार फिर टक्कर भाजपा के समीर उराँव और आदिवासी छात्र संघ छोड़ झामुमो के टिकट पर लड़ने वाले चमरा लिंडा  के बीच में ही नजर आ रही है। बिशुनपुर के कस्बाई इलाकों , ग्रामीणों व वनाँचली  मतदाताओं के बीच चर्चा के केंद्र में भी मुख्य रूप से यही प्रत्याशी रहे। हालांकि भाजपा प्रत्याशी समीर उराँव के समर्थकों ने दावा किया कि परिणाम चौंकाने वाले होंगे तथा उनके पक्ष में होंगे। लोहरदगा शहर और कस्बाई इलाकों के लोगों के बीच भाजपा - आजसू के संयुक्त प्रत्याशी कमलकिशोर भगत और  कांग्रेस प्रत्याशी कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत को केंद्र में रखते हुए इस बात पर चर्चा होती रही कि विधानसभा क्षेत्र के प्रमुख गांवों में किस प्रत्याशी ने कितने प्रतिशत मत हासिल किए हैं ? सिमडेगा में क्रमशः भाजपा प्रत्याशी श्रीमती बिमला प्रधान , झापा (एनोस गुट) की प्रत्याशी मेनोन एक्का और कांग्रेस के विलियम लुगुन के मध्य त्रिकोणीय मुकाबला है वहीँ कोलेबिरा विस क्षेत्र में भाजपा के मनोज प्रधान ,
झापा के एनोस एक्का के मध्य ही मुख्य चुनावी मुकाबला होने की चर्चा है ? इसी प्रकार खूंटी और राँची जिला के विधानसभा क्षेत्रों में भी भाजपा के मुख्य चुनावी समर में होने की चर्चा जोरों पर है ।


इन जिलों के  विधान सभा क्षेत्र में जिसमें भाजपा, झापा ,कांग्रेस, आजसू और दल बदलू निर्दलीय विधायक है। इसलिए कहाँ पर किस दल के प्रत्याशी के पक्ष में लोगों ने मतदान कर मजबूत करने का काम किया है। इसका आकलन भी लोग लगाते नहीं थक रहें है। फिर भी लोगों में चर्चा है कि तेईस दिसंबर को स्पष्ट हो जाएगा।

Sunday, 7 December 2014

गुमला में धड़ल्ले से जारी है गैरकानूनी अवैध रूप से पत्थर खनन कार्य

गुमला में धड़ल्ले से जारी है गैरकानूनी अवैध रूप से पत्थर खनन कार्य

झारखण्ड प्रान्त के गुमला जिला के सभी प्रखंड क्षेत्रों के जंगली -
पहाड़वर्ती गाँवों में सरकारी परती , चरागाह भूमि , वन्य क्षेत्रों और आम
रास्ते के आस - पास अवैध  पत्थर खनन कार्य में लिप्त लोगो ने गैरकानूनी
अवैध रुप से पत्थरो की खदान चालू कर अपनी जेबे भरने का काम व्यापक पैमाने
पर चला रखा है, जबकि उच्चतम न्यायालय व झारखण्ड सरकार ने अवैध पत्थरो की
खदानो पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा रखा है लेकिन खनन माफियां उच्च न्यायालय
व राज्य सरकार के आदेश को धत्ता बताकर अवैध खनन करने से बाज नही आ रहे
हैl ऐसा जिला के प्रायः सभी प्रखण्ड क्षेत्रों में हो रहा है , परन्तु
सरकारी अमला चुप - चाप अपना हित साधने में लगा है lइधर जिले में कई ऐसे
सरकारी पक्के कार्य भी चल रहे है जंहा अवैध पत्थरो की खदानो से प्राप्त
चोरी का पत्थर भी बेख़ौफ़ धड़ल्ले पंहुच रहा है और योजनाओं के संपादन में
अवैध रूप से खनन से प्राप्त पत्थरों का प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है
lखनन माफिया के साथ साथ सरकारी सेवक  भी न्यायालय व प्रदेश सरकार के आदेश
को धत्ता बताने से बाज नही आ रहे है जबकि जिला एव अंचल - प्रखण्ड
प्रशासन, खनन विभाग व पुलिस मूक दर्शक बन चुप चाप तमाशा देखती नजर आ रही
है इतना ही नही जिले के प्रायः सभी प्रखण्ड क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्रो
में भी अवैध पत्थरो की खदानो का बङे पैमाने पर धन्धा जोरों से फल - फूल
रहा हैl जिले के वन्य क्षेत्रों में अवस्थित पहाड़ - चट्टानों एवं नदियों
के चट्टानों के खाना पर वन विभाग द्वारा रोक लगाने की बात भी सरकारी स्तर
पर की जाती है, परन्तु जिले में वन अधिकारीयों की मिलीभगत से वन्य
क्षेत्रों में भी स्थित चट्टानों का खनन व्यापक पैमाने में जारी हैl हाथी
संरक्षण व हाथियों के आप्रवासन व बेहतर देख - भाल के लिये पालकोट
प्रखण्ड क्षेत्र में अवस्थित वन्य क्षेत्र को हाथी आश्रयणी क्षेत्र घोषित
करते हुए वन्य क्षेत्र से किसी भी प्रकार के खनन और ब्रिक्ष कटाई पर रोक
है , परन्तु हाथी आश्रयणी क्षेत्र के दर्जनों गाँवों में पत्थर का अवैध
उत्खनन कार्य बड़े पैमाने पर हो रही है l इस बात की खबर अंचल - प्रखण्ड
प्रशासन से लेकर वन व खनन अधिकारी से लेकर जिला उपायुक्त पुलिस अधीक्षक ,
मुख्य सचिव व सरकार तक को है परन्तु इस पर अंकुश लगाने की बजाय इस
गैरकानूनी अवैध पत्थर खनन कार्य को बढ़ावा दिया जा रहा है l इसी प्रकार
हाथी आश्रयणी क्षेत्र से वन्य ब्रिक्षों की कटाई भी व्यापक स्तर पर होने
की घटनाओं पर भी वन विभाग के द्वारा अंकुश नहीं लगाया जा रहा है l
पत्थरों की अवैध खनन में प्रयुक्त होने वाली विस्फोटकों से उत्पन्न होने
वाली भयंकर आवाजों  व छेना - हथौड़ों की चित - फट - फाट की आवाजों तथा
ब्रिक्षों की कटाई हेतु लोगों के आवाजाही से हाथी परेशान हो रहे हैं और
अपने निवास क्षेत्र से बाहर निकल मानव बस्तियों की ओर रूख करने लगे हैं
और मनुष्यों के साथ ही घर - बारी , खेत - खलिहान और फसलों कू क्षति
पहुँचा रहे हैं l वन्य क्षेत्रों मे तो पत्थरों के खनन हेतु लीज का
नवीनीकरण कार्य भी नहीं हो रहा परन्तु वन क्षेत्रों में भी यह खनन कार्य
अभी भी बदस्तूर जारी है l
जिले के कई इलाकों के पहाड़ों में पिछले कई वर्षों से अवैध खनन के भरोसे
क्रेशर चल रहे हैं। क्रेशर लगाने के लिए क्रेशर मालिकों ने लीज ले रखी
है। क्रेशर मालिक इन लीज से ही खनन कर सकते हैं, लेकिन क्रेशर मालिक
निर्घारित लीज के अलावा लीज के बाहर के पहाड़ों से , चट्टानों से अवैध
रूप से खनन कर रहे हैं। कई क्रेशर मालिकों की लीज खत्म हुए कई साल बीत
चुके हैं। जिले के चट्टानों , पहाड़ों से बड़े-बड़े पत्थर खनन कर क्रेशर
में पिसाई कर कंक्रीट व गिट्टी बनाने का कार्य चल रहा है। यह गिट्टी
ट्रकों में भरकर सड़कों व अन्य निर्माण कार्यो के लिए सप्लाई की जा रही
है। कई के्रशर मालिक बिना लीज के ही पहाड़ों में अवैध रूप से खनन कर रहे
हैं। वन विभाग के अधिकारियों को जिले के पहाड़ों में अवैध खनन की जानकारी
के बावजूद वे क्रेशर मालिकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।
जिले में करीब पाँच दर्जन क्रेशर लगे हुए हैं। जहां पत्थरों की पिसाई कर
गिट्टी व कंक्रीट बनाई जा रही है।
दरअसल, क्रेशर मालिकों ने जो अपने नाम से लीज करा रखी है। उसमें योजनाओं
में प्रयुक्त की जाने योग्य पत्थर नहीं हैं अथवा कम हैं । योजनाओं में
प्रयुक्त की जाने योग्य पत्थर लीज क्षेत्र के बह्हर के चट्टानी क्षेत्रों
व पहाड़ों में ही है। सड़क ठेकेदार उत्तम जिन्दा पत्थर की गिट्टी व
कंक्रीट की डिमाण्ड करते हैं। मृत भुरभुरा हो चुके पत्थर की गिट्टी व
कंक्रीट की माँग डिमांड कम है। इस कारण क्रेशर माफिया जिले के जीवित
चट्टानों व पहाड़ों से बेहतर प्रकार के पत्थर का खनन कर रहे हैं और इन
पत्थरों की गिट्टी व कंक्रीट बेच रहे हैं।

Friday, 5 December 2014

नक्सलियों की चेतावनी के बावजूद जमकर हुआ मतदान

नक्सलियों की चेतावनी के बावजूद जमकर हुआ मतदान 

गत दिनों सम्पन्न झारखंड विधानसभा चुनाव में गुमला , लोहरदगा और सिमडेगा जिला के अंतर्गत पड़ने वाले सिसई , गुमला , बिशुनपुर , लोहरदगा , सिमडेगा , कोलेबिरा , तोरपा के सुदूरवर्ती नक्सल प्रभावित दूरगामी , दुरूह इलाकों में नक्सलियों के वोट बहिष्कार किये जाने के बावजूद मतदाताओं में खौफ नहीं देखा गया। नक्सलियों ने गुमला , लोहरदगा और सिमडेगा जिले के  अंतर्गत आने वाली सभी विधानसभा क्षेत्रों के सैंकडों गांवों में वोट बहिष्कार से संबंधित दीवार-लेखन कर वोट नहीं देने की चेतावनी दी थी। मगर ग्रामीणों ने इसकी परवाह किए बगैर उत्साह के साथ जमकर अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए वोट डाला।

बिशुनपुर विधानसभा क्षेत्र के बिशुनपुर प्रखंड के बनारी , बनालत , बेती , हापुड़ , घाघरा प्रखंड के बिमरला , दारदाग आदि क्षेत्र नक्सलियों के सर्वाधिक सुरक्षित और पुलिस से मुठभेड़ वाला क्षेत्र माना जाता है , परन्तु इन घनघोर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के मतदान केन्द्रों पर भी वहाँ के मतदाताओं ने नक्सलियों के वोट बहिष्कार  की घोषणा को अनसुना कर निर्भय होकर अपने मताधिकार का प्रयोग किया । गुमला , सिसई ,लोहरदगा , सिमडेगा , कोलेबिरा और तोरपा विधानसभा क्षेत्रो के जंगली , पहाड़ी इलाकों के अधिकांश मतदान केन्द्रों के दीवारों पर नक्सलियों ने वोट बहिष्कार करने अन्यथा दण्डित किये जाने की घोषणा करते हुए नारे , श्लोगन लिख रखे थे  , पोस्टर चिपका रखे थे जिन्हें पुलिस , प्रशासनिक पदाधिकारियों और मतदान कर्मियों ने मिटने की हिमाकत नहीं की , लेकिन मतदान कर्मियों के मतदान केन्द्रों पर पहुँचने के साथ ही मतदाताओं का मतदान के लिए मतदान केन्द्रों पर पहुंचना आरम्भ हो गया , जो दिन ढाले तीन बजे तक जारी रहा। सभी जगहों से मिल रही सूचनाओं के आधार पर गत चुनावों से इस बार नक्सल प्रभेइत क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत भी अच्छा है।      गुमला , लोहरदगा और सिमडेगा जिलों के सभी विधानसभा क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाली सभी प्रखंडों के दर्जनों गांव के मतदान केंद्रों के दीवारों पर माओवादियों ने वोट बहिष्कार की घोषणा की थी। कई स्थानों में जिस जगह पर मतदान कर्मियों का टेबल लगाया गया था। उसके ठीक पीछे दीवारों पर वोट बहिष्कार की चेतावनी लिखी हुई थी।

सोना देने वाली नदी - स्वर्णरेखा

सोना देने वाली नदी - स्वर्णरेखा 

 इस नदी में सोने के कण पाए जाते हैं, इसीलिए इसका नाम स्वर्णरेखा पड़ा है.



आप यकीन नहीं कर पा रहे होंगे लेकिन झारखंड के रत्नगर्भा क्षेत्र में बड़े-बड़े व्यापारी आदिवासियों से तुच्छ कीमतों पर सोना खरीद रहे हैं,
पर आखिरकार आदिवासियों के पास इतना सोना आया कहां से?
इसके पीछे बहुत बड़ा राज छिपा है जिसे यहां की एक पवित्र नदी ने अपने भीतर समेटा हुआ है.
यहां है सोने की नदी , जो सोना देती है . जी हां, झारखंड की राजधानी रांची से करीब 15 से 16 किलोमीटर दूरी पर है रत्नगर्भा.
यह एक आदिवासी क्षेत्र है जहां से स्वर्ण रेखा नाम की नदी बहकर निकलती है. यह कोई आम नदी नहीं है
बल्कि इस इकलौती नदी में सोने का इतना भंडार समाया है
जिसका आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते.
कहा जाता है कि स्वर्णरेखा या फिर आदिवासियों के बीच नंदा के नाम से जानी जानेवाली इस नदी में सोने के कण पाए जाते हैं,
इसीलिए इसका नाम स्वर्णरेखा पड़ा है.
यहां की आदिवासी दिन रात इन कणों को एकत्रित करते हैं व स्थानीय व्यापारियों को बेचकर रोजी रोटी कमाते हैं.


प्रकृति का निराला खेल है स्वर्णरेखा नदी इस नदी की रेत से निकलने वाले सोने के कणों का अपना ही रहस्य है. यह प्रकृति का ऐसा अद्भुत खेल है
जिसका पता अभी तक कोई भी लगा ना पाया है. स्थानीय लोगों का कहना है कि आजतक कितनी ही सरकारी मशीनों द्वारा इस नदी पर शोध किया गया है लेकिन वे इस बात का पता लगाने में असमर्थ रहे हैं कि आखिरकार यह कण जमीन के किस भाग से विकसित होते हैं.
इतना ही नहीं, राज्य सरकार व केंद्र सरकारों द्वारा इस तथ्य से मुंह फेरा जा रहा है व कोई भी इस नदी या फिर इससे निकलने वाले कणों के लिए दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है.
इस नदी से सम्बंधित एक और आश्चर्यचकित तथ्य यह है कि रांची स्थित यह नदी अपने उद्गम स्थल से निकलने के बाद उस क्षेत्र की किसी भी अन्य नदी में जाकर नहीं मिलती बल्कि यह नदी सीधे बंगाल की खाडी में गिरती है.

कैसे मिलता है सोना?
जिस प्रकार किसी नहीं में जाल बिछाकर मछलियां पकड़ी जाती हैं ठीक उसी तरह यहां के आदिवासी स्वर्ण कणों को छानने के लिये नदी में जाल की भांति टोकरे फेंकते हैं. इन टोकरों में कपड़ा लगा होता है जिसमें नदी की भूतल रेत फंस जाती है. इस रेत को आदिवासी घर ले जाते हैं व दिनभर उस रेत में से सोने के कण व रेत को अलग-अलग करते रहते हैं.सोने के कणों को अलग कर स्थानीय व्यापारियों को औने पौने दाम पर बेचा जाता है.यहां के आदिवासी इस व्यापार से तो इतनी कमाई नहीं कर पाते हैं लेकिन क्षेत्रीयदलाल इस नदी के दम पर करोड़ों की कमाई कर रहे हैं.जो देते हैं सोना उन्हीं पर हो रहा अत्याचाररांची से बहने वाली यह नदी यहां के आदिवासियों के लिए आय का एकमात्र स्रोत है.उनकी नजाने कितनी ही पीढ़ियां इस नदी से सोने के कणों को निकालकर अपना पेट भर रही हैं, लेकिन वो कहते हैं ना कि जब आपको किसी वस्तु की पूर्ण जानकारी ना हो तो पूरी दुनिया आपका फायदा उठाने आ जाती है. कुछ ऐसा ही हो रहा है यहां के आदिवासियों के साथ भी. इतनी महंगी धातु के बदले में उन्हें कौड़ियों के दाम मिलते हैं जिनसे मुश्किल से ही उनका पेट भरता है. इस क्षेत्र के आदिवासियों कीआर्थिक स्थिति सालों से ही ऐसी ही रही है.

Monday, 1 December 2014

डूबती नजर आ रही है झारखण्ड की कांग्रेसी शिक्षा मंत्री और सिसई विधायक गीताश्री उराँव की नईया

डूबती नजर आ रही है झारखण्ड की कांग्रेसी शिक्षा मंत्री और सिसई विधायक गीताश्री उराँव की नईया 


भारतीय जनता पार्टी के द्वारा सिसई विधानसभा क्षेत्र के भूतपूर्व विधायक दिनेश उराँव को प्रत्याशी बनाये जाने और आदिवासी छात्र संघ के द्वारा सिसई विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेसी नेता शशिकांत भगत को प्रत्याशी घोषित किये जाने से जनता को बरगलाने वाली सिर्फ चुनावी वादे और ढपोरशंखी घोषणाओं की मार्ग पर अल्पसंख्यकों से घिर कर रहने वाली छवि के कारण झारखण्ड की कांग्रेसी शिक्षा मंत्री और सिसई विधायक गीताश्री उराँव की नईया सिसई विस क्षेत्र में डूबती नजर आ रही है । क्षेत्र की बहुसंख्यक जनता और अपने जनजातीय बन्धु - बान्ध्वियों का कल्याण त्याग जिस अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों के अंतिम संस्कार हेतु कब्रिस्तान और शमशान की घेराबंदी कराई वही अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के द्वारा साथ छोड़ते देख झारखण्ड की कांग्रेसी शिक्षा मंत्री गीताश्री उराँव अपने विधानसभा क्षेत्र सिसई को कांग्रेस के हाथ से गंवाती नजर आ रही है।

विधानसभा के दूसरे चरण में होने वाली सिसई विधानसभा क्षेत्र से नामांकन वापसी के अंतिम दिन निर्दलीय प्रत्याशी सुनील सुरीन के द्वारा निर्वाची पदाधिकारी को आवेदन देकर अपना नामांकन वापस ले लिए जाने के पश्चात अब कुल दस प्रत्याशी चुनाव मैदान में रह गए हैं। चुनाव मैदान में भाजपा के दिनेश उरांव,  कांग्रेस की गीताश्री उरांव, झारखंड पार्टी की किरण माला बाड़ा, झामुमो के जिगा सुशासन होरो, झाविमो के एजरा बोदरा, भाकपा-माले के मनी उरांव,निर्दलीय निकोलस मिंज, ललित उरांव,शशिकांत भगत एवं सुनील कुमार कुजूर शामिल हैं।

विगत चुनाव में कांग्रेस पार्टी से हार का मुंह देखने वाले समीर उराँव को सिसई विस क्षेत्र से नहीं उतारकर भाजपा ने अपने भूतपूर्व स्थानीय विधायक दिनेश उराँव को झारखण्ड की कांग्रेसी शिक्षा मंत्री और कार्तिक उराँव की पुत्री गीताश्री उराँव के सामने उतारकर अपने तुरुप का पत्ता खेल दिया है जिसका स्पष्ट फायदा भाजपा को मिलता दिख रहा है । स्थानीय होने और पार्टी तथा क्षेत्र की जनता ,मतदाताओं के समस्त प्रकार के क्रिया – कलापों में सहयोगी होने के कारण क्षेत्र में उनको व्यापक जनसमर्थन मिलता दिख रहा है । सिसई और बसिया को अनुमंडल का दर्जा दिलाने, सिसई के पुसो और भरनो प्रखंड करंज को प्रखंड का दर्जा दिलाने की प्रक्रिया शुरू कराने एवं सिसई-बसिया रोड का चौड़ीकरण कराने की पहल करने आदि सभी कार्य क्षेत्र के भूतपूर्व भाजपा विधायक दिनेश उरांव के कार्यकाल में प्रस्तावित थे एवं एक गैर सरकारी संकल्प भी भाजपा के शासन काल में पारित कराया गया था। देश के अन्य भागों की भान्ति झारखण्ड में मोदी लहर की स्पष्ट छाप के मध्य रही – सही कसर भाजपा नेताओं ने क्षेत्र में ताबड़तोड़ जनसभाएं और चुनावी रैलियां करके भाजपा के दिनेश उराँव की राह आसान कर दी हैं और क्षेत्र में चहुंओर भाजपा – भाजपा – भाजपा ही दिखाई और सुनाई दे रहा है । विगत पाँच वर्षों तक केन्द्र में रहकर कांग्रेस के द्वारा की गई गलतियों के साथ वायदों और घोषणाओं की राह पर चलने वाली तथा क्षेत्र में कब्रिस्तानों की घेराबंदी कराने वाली के नाम पर मशहूर गीताश्री उराँव के द्वारा अपने कार्यकाल के दौरान क्षेत्र में एक भी यद् रखने योग्य कार्य नहीं किये जाने कारण तथा उलटे टेट पास शिक्षकों की नियुक्ति को लटका दिए जाने के कारण क्षेत्र के शिक्षित मतदाताओं के साथ ही आम जनता अत्यन्त रुष्ट है और वह कांग्रेस के खिलाफ नजर आ रही है ।

भाजपा के परम्परागत मतदाताओं का कहाँ है कि प्रदेश की शिक्षा मंत्री सह सिसई विधायक गीताश्री उराँव क्षेत्र के विकास का वायदा चाहे जितना कर लें , परन्तु क्षेत्र में कागजी घोषणाओं का जाल व विकास का हाल बेहाल नजर आता है। शिक्षा मंत्री के क्षेत्र में शिक्षकों का हाल बेहाल है। नागफेनी में कल्याण विभाग से करोड़ों की लागत से बना अस्पताल आज तक शुरू नहीं हो सका। जिले के टेट पास पारा शिक्षकों की आज तक नियुक्ति नहीं हो सकी। जबकि दूसरे कई जिलों में नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। इसके अलावा विधानसभा क्षेत्र के कई गावों तक जाने के लिए आज तक अच्छी सड़क का निर्माण नहीं हो सका। सिसई से बसिया प्रखंड को जोड़नेवाली सड़क का निर्माण बंद पड़ा हुआ है। यही हाल बसिया को वाया नाथपुर – पालकोट – गुमला जोड़ने वाली सड़क कभी है । विगत पाँच वर्षों  में कृषकों के खेत में पानी नहीं पहुंचा, तो शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार के अवसर प्राप्त नहीं हुए। ग्रामीण जलापूर्ति का कार्य भी अधर में लटका हुआ है। गरीबी व बेकारी आज भी सिसई विधानसभा क्षेत्र के विकास की हकीकत उजागर करती है। क्षेत्र के नाराज मतदाताओं का कहना है कि विकास के नाम पर क्षेत्र का विनाश हुआ है । पिछले पांच वर्षो में क्षेत्र का विकास नहीं विनाश हुआ है। क्षेत्र में सुलभ सड़क, पेयजल, बिजली शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा का अभाव बना हुआ है। क्षेत्र की जनता को रोजगार मुहैया नहीं हो पा रहा है और जनता रोजी – रोटी की तलाश में प्रदेश के बाहर पलायन करने को विवश हो रही है।


सिसई विधानसभा क्षेत्र का वर्षों पुराना मुख्य मुद्दा सिसई को अनुमंडल का दर्जा दिलाने और पूसो व करंज को प्रखंड का दर्जा दिलाने का है ।
वादों व घोषणाओं के बीच पांच वर्ष गुजर गए, पर सिसई को अनुमंडल तथा सिसई प्रखंड के पूसो व भरनो प्रखंड के करंज को प्रखंड का दर्जा नहीं मिल सका। जनता आंदोलन करती रही और विधायक आश्वासन देती रहीं। मंत्री रहने के बावजूद गीताश्री उरांव द्वारा प्रखंड का दर्जा नहीं दिला पाने से क्षेत्र की जनता में काफी नाराजगी है। ग्रामीणों द्वारा मंत्री का पुतला भी फूंका जा चुका है। क्षेत्र की जनता को आशा थी कि अनुमंडल और प्रखंड का दर्जा मिलने से क्षेत्र का चहुमुंखी विकास होगा, पर उम्मीदों पर पानी फिर गया। इस बार के चुनाव में अनुमंडल और प्रखंड का निर्माण नहीं हो पाना इस क्षेत्र के लिए मुख्य चुनावी मुद्दा है ।वर्षों पुरानी माँग सिसई को अनुमंडल का दर्जा दिलाने की माँग तो क्षेत्र की मतदाताओं की पूरी तो नहीं हुई , उलटे गीताश्री के कार्यकाल में सिसई के स्थान पर बसिया को अनुमंडल का दर्जा दे दिए जाने से सिसई और भरनो प्रखंड के मतदाता कांग्रेस के साठी झामुमो से भी नाराज हैं , जिसका फायदा भाजपा को मिलता दिखाई दे रहां है । उधर ताल ठोंककर कांग्रेस के टिकट गत दो विस चुनावों नहीं मिलने से नाराज शशिकांत भगत के आदिवासी छात्र संघ के प्रत्याशी के रूप में काँग्रेस के बागी के रूप में चुनाव मैदान में उतर आने और आदिवासी छात्र संघ के द्वारा शशिकांत को जिताने के लिए दिन रत एक कर दिए जाने का नुक्सान भी कांग्रेस और झामुमो दोनों को ही हो रहा है आदिवासी छात्र संघ के प्रत्याशी शशिकांत भगत कांग्रेस के परम्परागत वोट बैंक और अन्य झारखण्ड नामधारी पार्टियों के जनाधार पर सेंध लगा रहे है शशिकांत भगत 2004 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे। उसमें 422 मतों के अंतराल से भाजपा के  विजित उम्मीदवार समीर उराँव से पीछे थे। झामुमो के जिग्गा सुसारण होरो , पुलिस अफसरी की नउकरी से त्याग पत्र देकर झारखण्ड विकास मोर्चा से चुनाव लड़ने वाले एजरा बोदरा , झारखंड पार्टी की किरण माला बाड़ा और अन्य निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव में अपना जलवा दिखला मतदाताओं के मध्य अपनी उपस्थिति दर्शाने के क्रम में क्षेत्र को बहुरंगी आयाम देने की कोशिश में लगे हैं , परन्तु झारखण्ड की कांग्रेसी शिक्षा मंत्री और सिसई विधायक गीताश्री उराँव अपनी नईया अपनी ही कथनी और करनी में अन्तर , मतदाताओं के सुख – दुःख से दूरी बना राँची में निवास करने , जनता से सिर्फ चुनावी वादे और ढपोरशंखी घोषणाओं की बरसात करने और बहुसंख्यकों के हित की बलि चढाकर अल्पसंख्यकों से घिर कर रहने वाली छवि के कारण सिसई विस क्षेत्र में डुबाती नजर आ रही है ।


डूबती नजर आ रही है झारखण्ड की कांग्रेसी शिक्षा मंत्री और सिसई विधायक गीताश्री उराँव की नईया

डूबती नजर आ रही है झारखण्ड की कांग्रेसी शिक्षा मंत्री और सिसई विधायक गीताश्री उराँव की नईया


भारतीय जनता पार्टी के द्वारा सिसई विधानसभा क्षेत्र के भूतपूर्व विधायक दिनेश उराँव को प्रत्याशी बनाये जाने और आदिवासी छात्र संघ के द्वारा सिसई विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेसी नेता शशिकांत भगत को प्रत्याशी घोषित किये जाने से जनता को बरगलाने वाली सिर्फ चुनावी वादे और ढपोरशंखी घोषणाओं की मार्ग पर अल्पसंख्यकों से घिर कर रहने वाली छवि के कारण झारखण्ड की कांग्रेसी शिक्षा मंत्री और सिसई विधायक गीताश्री उराँव की नईया सिसई विस क्षेत्र में डूबती नजर आ रही है । क्षेत्र की बहुसंख्यक जनता और अपने जनजातीय बन्धु - बान्ध्वियों का कल्याण त्याग जिस अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों के अंतिम संस्कार हेतु कब्रिस्तान और शमशान की घेराबंदी कराई वही अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के द्वारा साथ छोड़ते देख झारखण्ड की कांग्रेसी शिक्षा मंत्री गीताश्री उराँव अपने विधानसभा क्षेत्र सिसई को कांग्रेस के हाथ से गंवाती नजर आ रही है।

विधानसभा के दूसरे चरण में होने वाली सिसई विधानसभा क्षेत्र से नामांकन वापसी के अंतिम दिन निर्दलीय प्रत्याशी सुनील सुरीन के द्वारा निर्वाची पदाधिकारी को आवेदन देकर अपना नामांकन वापस ले लिए जाने के पश्चात अब कुल दस प्रत्याशी चुनाव मैदान में रह गए हैं। चुनाव मैदान में भाजपा के दिनेश उरांव,  कांग्रेस की गीताश्री उरांव, झारखंड पार्टी की किरण माला बाड़ा, झामुमो के जिगा सुशासन होरो, झाविमो के एजरा बोदरा, भाकपा-माले के मनी उरांव,निर्दलीय निकोलस मिंज, ललित उरांव,शशिकांत भगत एवं सुनील कुमार कुजूर शामिल हैं।

विगत चुनाव में कांग्रेस पार्टी से हार का मुंह देखने वाले समीर उराँव को सिसई विस क्षेत्र से नहीं उतारकर भाजपा ने अपने भूतपूर्व स्थानीय विधायक दिनेश उराँव को झारखण्ड की कांग्रेसी शिक्षा मंत्री और कार्तिक उराँव की पुत्री गीताश्री उराँव के सामने उतारकर अपने तुरुप का पत्ता खेल दिया है जिसका स्पष्ट फायदा भाजपा को मिलता दिख रहा है । स्थानीय होने और पार्टी तथा क्षेत्र की जनता ,मतदाताओं के समस्त प्रकार के क्रिया – कलापों में सहयोगी होने के कारण क्षेत्र में उनको व्यापक जनसमर्थन मिलता दिख रहा है । सिसई और बसिया को अनुमंडल का दर्जा दिलाने, सिसई के पुसो और भरनो प्रखंड करंज को प्रखंड का दर्जा दिलाने की प्रक्रिया शुरू कराने एवं सिसई-बसिया रोड का चौड़ीकरण कराने की पहल करने आदि सभी कार्य क्षेत्र के भूतपूर्व भाजपा विधायक दिनेश उरांव के कार्यकाल में प्रस्तावित थे एवं एक गैर सरकारी संकल्प भी भाजपा के शासन काल में पारित कराया गया था। देश के अन्य भागों की भान्ति झारखण्ड में मोदी लहर की स्पष्ट छाप के मध्य रही – सही कसर भाजपा नेताओं ने क्षेत्र में ताबड़तोड़ जनसभाएं और चुनावी रैलियां करके भाजपा के दिनेश उराँव की राह आसान कर दी हैं और क्षेत्र में चहुंओर भाजपा – भाजपा – भाजपा ही दिखाई और सुनाई दे रहा है । विगत पाँच वर्षों तक केन्द्र में रहकर कांग्रेस के द्वारा की गई गलतियों के साथ वायदों और घोषणाओं की राह पर चलने वाली तथा क्षेत्र में कब्रिस्तानों की घेराबंदी कराने वाली के नाम पर मशहूर गीताश्री उराँव के द्वारा अपने कार्यकाल के दौरान क्षेत्र में एक भी यद् रखने योग्य कार्य नहीं किये जाने कारण तथा उलटे टेट पास शिक्षकों की नियुक्ति को लटका दिए जाने के कारण क्षेत्र के शिक्षित मतदाताओं के साथ ही आम जनता अत्यन्त रुष्ट है और वह कांग्रेस के खिलाफ नजर आ रही है

भाजपा के परम्परागत मतदाताओं का कहाँ है कि प्रदेश की शिक्षा मंत्री सह सिसई विधायक गीताश्री उराँव क्षेत्र के विकास का वायदा चाहे जितना कर लें , परन्तु क्षेत्र में कागजी घोषणाओं का जाल व विकास का हाल बेहाल नजर आता है। शिक्षा मंत्री के क्षेत्र में शिक्षकों का हाल बेहाल है। नागफेनी में कल्याण विभाग से करोड़ों की लागत से बना अस्पताल आज तक शुरू नहीं हो सका। जिले के टेट पास पारा शिक्षकों की आज तक नियुक्ति नहीं हो सकी। जबकि दूसरे कई जिलों में नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। इसके अलावा विधानसभा क्षेत्र के कई गावों तक जाने के लिए आज तक अच्छी सड़क का निर्माण नहीं हो सका। सिसई से बसिया प्रखंड को जोड़नेवाली सड़क का निर्माण बंद पड़ा हुआ है। यही हाल बसिया को वाया नाथपुर – पालकोट – गुमला जोड़ने वाली सड़क कभी है । विगत पाँच वर्षों  में कृषकों के खेत में पानी नहीं पहुंचा, तो शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार के अवसर प्राप्त नहीं हुए। ग्रामीण जलापूर्ति का कार्य भी अधर में लटका हुआ है। गरीबी व बेकारी आज भी सिसई विधानसभा क्षेत्र के विकास की हकीकत उजागर करती है। क्षेत्र के नाराज मतदाताओं का कहना है कि विकास के नाम पर क्षेत्र का विनाश हुआ है । पिछले पांच वर्षो में क्षेत्र का विकास नहीं विनाश हुआ है। क्षेत्र में सुलभ सड़क, पेयजल, बिजली शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा का अभाव बना हुआ है। क्षेत्र की जनता को रोजगार मुहैया नहीं हो पा रहा है और जनता रोजी – रोटी की तलाश में प्रदेश के बाहर पलायन करने को विवश हो रही है।


सिसई विधानसभा क्षेत्र का वर्षों पुराना मुख्य मुद्दा सिसई को अनुमंडल का दर्जा दिलाने और पूसो व करंज को प्रखंड का दर्जा दिलाने का है ।

वादों व घोषणाओं के बीच पांच वर्ष गुजर गए, पर सिसई को अनुमंडल तथा सिसई प्रखंड के पूसो व भरनो प्रखंड के करंज को प्रखंड का दर्जा नहीं मिल सका। जनता आंदोलन करती रही और विधायक आश्वासन देती रहीं। मंत्री रहने के बावजूद गीताश्री उरांव द्वारा प्रखंड का दर्जा नहीं दिला पाने से क्षेत्र की जनता में काफी नाराजगी है। ग्रामीणों द्वारा मंत्री का पुतला भी फूंका जा चुका है। क्षेत्र की जनता को आशा थी कि अनुमंडल और प्रखंड का दर्जा मिलने से क्षेत्र का चहुमुंखी विकास होगा, पर उम्मीदों पर पानी फिर गया। इस बार के चुनाव में अनुमंडल और प्रखंड का निर्माण नहीं हो पाना इस क्षेत्र के लिए मुख्य चुनावी मुद्दा है ।वर्षों पुरानी माँग सिसई को अनुमंडल का दर्जा दिलाने की माँग तो क्षेत्र की मतदाताओं की पूरी तो नहीं हुई , उलटे गीताश्री के कार्यकाल में सिसई के स्थान पर बसिया को अनुमंडल का दर्जा दे दिए जाने से सिसई और भरनो प्रखंड के मतदाता कांग्रेस के साठी झामुमो से भी नाराज हैं , जिसका फायदा भाजपा को मिलता दिखाई दे रहां है । उधर ताल ठोंककर कांग्रेस के टिकट गत दो विस चुनावों नहीं मिलने से नाराज शशिकांत भगत के आदिवासी छात्र संघ के प्रत्याशी के रूप में काँग्रेस के बागी के रूप में चुनाव मैदान में उतर आने और आदिवासी छात्र संघ के द्वारा शशिकांत को जिताने के लिए दिन रत एक कर दिए जाने का नुक्सान भी कांग्रेस और झामुमो दोनों को ही हो रहा है आदिवासी छात्र संघ के प्रत्याशी शशिकांत भगत कांग्रेस के परम्परागत वोट बैंक और अन्य झारखण्ड नामधारी पार्टियों के जनाधार पर सेंध लगा रहे है शशिकांत भगत 2004 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे। उसमें 422 मतों के अंतराल से भाजपा के  विजित उम्मीदवार समीर उराँव से पीछे थे। झामुमो के जिग्गा सुसारण होरो , पुलिस अफसरी की नउकरी से त्याग पत्र देकर झारखण्ड विकास मोर्चा से चुनाव लड़ने वाले एजरा बोदरा , झारखंड पार्टी की किरण माला बाड़ा और अन्य निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव में अपना जलवा दिखला मतदाताओं के मध्य अपनी उपस्थिति दर्शाने के क्रम में क्षेत्र को बहुरंगी आयाम देने की कोशिश में लगे हैं , परन्तु झारखण्ड की कांग्रेसी शिक्षा मंत्री और सिसई विधायक गीताश्री उराँव अपनी नईया अपनी ही कथनी और करनी में अन्तर , मतदाताओं के सुख – दुःख से दूरी बना राँची में निवास करने , जनता से सिर्फ चुनावी वादे और ढपोरशंखी घोषणाओं की बरसात करने और बहुसंख्यकों के हित की बलि चढाकर अल्पसंख्यकों से घिर कर रहने वाली छवि के कारण सिसई विस क्षेत्र में डुबाती नजर आ रही है ।