Thursday, 27 March 2014

पिछडेपन के लिए राजनैतिक दलों के साथ जनता भी जिम्मेदार - मायावती

पिछडेपन के लिए राजनैतिक दलों के साथ जनता भी जिम्मेदार - मायावती


बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमों मायावती ने झारखंड के पिछडेपन के लिए राजनीतिक दलों के साथ यहां की जनता को भी जिम्मेदार ठहाराया.
बसपा प्रमुख मायावती ने २४ मार्च को रांची से अपने उम्मीदवार दुर्गा उरांव के समर्थन में आयोजित एक चुनावी रैली में यह बातें कहीं. रैली में अपेक्षाकृत कम लोगों की उपस्थिति से बिफरीं मायावती ने राज्य की जनता को जाग जाने की ताकीद की.

उन्होंने कहा कि झारखंड देश के अधिकतर राज्यों से विकास के पैमाने पर बहुत पिछड़ा हुआ है जिसके लिए मुख्य रूप से यहां के राजनीतिक नेता और दल जिम्मेदार हैं अत: इस स्थिति को बदलने के लिए ईमानदार और अच्छे लोगों को चुनकर विधानसभाओं और संसद में भेजना होगा.

उन्होने कहा कि सोमवार के बंद के चलते रैली में उनके समर्थक नहीं पहुंच सके.

रैली में कम लोगों को देखकर मायावती ने कहा कि मेरे कार्यकर्ताओं ने यहां रैली करने का अनुरोध किया था जिसके चलते मैं यहां आयी. विपक्षी लोगों ने साजिश कर सोमवार को बंद करवाया है जिसके चलते पार्टी के पदाधिकारी तक विभिन्न स्थानों पर अटके पड़े हैं.

बसपा सुप्रीमों मायावती ने अपने कार्यकर्ताओं से अपील की कि आप लोग जितनी भी संख्या में आये हैं, मेरा संदेश लेकर जायें और पूरे राज्य की जनता को परिवर्तन के लिए प्रेरित करें.

रांची लोकसभा सीट से अपने उम्मीदवार सामाजिक कार्यकर्ता दुर्गा उरांव के लिए आयोजित इस रैली में मायावती ने कहा कि आप ने सभी दलों को यहां शासन करने का अवसर दिया है और उनका काम भी देखा है लेकिन अब बसपा को भी एक मौका देकर आप देखें कि आप के भाग्य में क्या परिवर्तन होता है.

उन्होंने आरोप लगाया कि बिहार से झारखंड क्षेत्र को विकास के उद्देश्य से ही अलग किया गया था लेकिन उस उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो सकी है.

उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों के झूठे वादों और इनसे पटे घोषणा पत्रों में लोगों को नहीं खोना चाहिए.

उन्होंने दावा किया कि संसद के अभी संपन्न हुए अंतिम सत्र में उन्होंने झारखंड के लिए भी विशेष राज्य के दर्जे की मांग की थी लेकिन जो दल यहां शासन में हैं और शासन कर चुके हैं उन्होंने पूरी तरह मौन धारण किये रखा.

खतरे में झारखंड सरकार, सोरेन के चार विधायक लड़ रहे हैं चुनाव


सिबू पुत्र हेमंत 

खतरे में झारखंड सरकार, सोरेन के चार विधायक लड़ रहे हैं चुनाव


झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार को समर्थन दे रहे कुछ विधायक लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं और उनके जीतने की स्थिति में सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.
82 सदस्यीय विधानसभा के आठ सदस्यों ने लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन पत्र दाखिल किया है

आठ में सात सत्तारूढ़ गठबंधन से हैं. इनमें से तीन ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. इन तीनों में दो झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और एक कांग्रेस से हैं.

झामुमो के दो विधायक हेमलाल मुर्मू और विद्युत बरन महतो ने पार्टी से इस्तीफा देकर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली. उन्हें क्रमश: राजमहल और जमशेदपुर से टिकट दिया गया है. कांग्रेसी नेता चंद्रशेखर दुबे धनबाद सीट से तृणमूल कांग्रेस के टिकट से लड़ रहे हैं.

हेमंत सोरेन सरकार को समर्थन दे रहे चार अन्य विधायक लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. सरकार के दो विधायक बंधु तिर्की और चामरा लिंडा ने अब तृणमूल कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली है और वे क्रमश: रांची और लोहरदगा सीट से खड़े हुए हैं.

झामुमो विधायक जगन्नाथ महतो गिरिडीह से चुनाव लड़ रहे हैं. एक अन्य विधायक गीता कोड़ा चाईबासा से उम्मीदवार हैं. गीता पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी हैं. इधर विपक्षी पार्टियों में सिर्फ झारखंड विकास मोर्चा-प्रजातांत्रिक (झाविमो-प्र) के विधायक प्रदीप यादव गोड्डा से चुनाव लड़ रहे हैं.

सीट की बात करें तो सत्तारूढ़ दल के पास 43 विधायक हैं. तीन विधायकों के इस्तीफा देने पर विधानसभा में सदस्य संख्या 79 हो गई है और सत्तारूढ़ सरकार की सीट घट कर 40 हो गई है.

विपक्षी पार्टियों में 39 विधायक हैं. इस स्थिति में अगर हेमंत सरकार के दो विधायक लोकसभा के लिए चुन लिए गए तो यह अल्पमत में आ जाएगी. हेमंत ने भी चुनाव प्रचार के दौरान यह स्वीकारा है कि उनकी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश चल रही है और उन्होंने पार्टी समर्थकों से किसी भी तरह की स्थिति के लिए तैयार रहने को कहा है.

चुनावी मैदान नें पांच भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी



चुनावी मैदान नें पांच भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी 


झारंखड प्रदेश में पांच पूर्व भारतीय पुलिस सेवा
(आईपीएस) अधिकारी मैदान में होंगे. इनमें अजय कुमार, अमिताभ चौधरी, बी. डी. राम, सुबोध प्रसाद और रामेश्वर उराँव हैं.
झारंखड में भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के पांच पूर्व अधिकारी चुनावी मैदान में उतरे हैं. ये पांच पूर्व आईपीएस अधिकारी जमशेदपुर के मौजूदा सांसद अजय कुमार, अमिताभ चौधरी, बी. डी. राम, सुबोध प्रसाद और रामेश्वर उराँव हैं.

अजय कुमार 2011 के चुनाव में निर्वाचित हुए थे. आईपीएस की नौकरी छोड़कर वह झारखंड विकास मोर्चा प्रजातांत्रिक (जेवीएम-पी) में शामिल हुए थे.

रामेश्वर ओरांव भी 2004 में आईपीएस की नौकरी से इस्तीफा देकर कांग्रेस में शामिल हो गए थे. वह लोहरदगा से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और उन्होंने जीत भी हासिल की. वह केंद्र सरकार में भी मंत्री रहे हैं. 2009 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा . उसके बाद वे 2010 में झारखण्ड विधानसभा का चुनाव मनिका विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से लड़े परन्तु विधानसभा का चुनाव भी वे हार गए और इस बार के लोकसभा चुनाव में वह लोहरदगा से कांग्रेस के प्रत्याशी हैं.

पूर्व पुलिस महानिदेशक बी.डी. राम ने सेवानिवृत्ति के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दामन थामा और वह पलामू लोकसभा सीट से भाजपा के प्रत्याशी हैं.

पिछले साल आईपीएस सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाले अमिताभ चौधरी झारखंड राज्य क्रिकेट ऐसोसिएशन (जेएससीए) के अध्यक्ष हैं. वह जेवीएम-पी के टिकट पर रांची से चुनाव लड़ रहे हैं. सेवानिवृत्त पुलिस उपमहानिरीक्षक सुबोध प्रसाद ने गोड्डा सीट से आल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (एजेएसयू) की ओर से पर्चा भरा है.

इन सभी पूर्व पुलिस अधिकारियों का कहना है कि वे लोगों की सेवा और अपने-अपने लोकसभा क्षेत्र के विकास के लिए राजनीति में आए हैं.

आज माओवादियों ने लोकतंत्र को ललकारा है। माओवादियों के हाथों में बंदूक नहीं, हल होना चाहिए , कलम होना चाहिए - झारखंड की गुमला में भारत विजय रैली में नरेंद्र भाई मोदी

गुमला में नमो 

आज माओवादियों ने लोकतंत्र को ललकारा है। माओवादियों के हाथों में बंदूक नहीं, हल होना चाहिए , कलम होना चाहिए  - झारखंड की गुमला में भारत विजय रैली में नरेंद्र भाई मोदी



आसन्न लोकसभा चुनावों को लेकर बुधवार को प्रारम्भ हुए भारत विजय रैली की १८५ रैलियों की श्रृखला में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार नरेंद्र भाई  मोदी ने झारखंड के गुमला में रैली को संबोधित करते हुए कहा कि राऊरे मन के जोहार !गुमला में भारत विजय रैली  रैली को संबोधित करते हुए मोदी ने झारखंड के महापुरुषों का नाम लेते हुए इसे वीरों और बलिदानियों की भूमि कहा। उन्होंने कहा कि यहां की खनिज संपदा की तारीफ की और कहा कि झारखंड अमीर है पर लोग गरीब हैं। झारखंड के लोगों को रोजगार के लिए प्रदेश के बाहर जाना पड़ता है। यहाँ शिक्षा का अभाव है।

मोदी ने कहा कि झारखंड के किसानों को पानी नहीं मिलता। यहां की मिट्टी ऐसी है कि किसान भाईयों को पानी मिले, तो मिट्टी सोना उगल सकती है। कांग्रेस पर हमला करते हुए मोदी ने कहा कि सरकार की गलत नीतियों की वजह से झारखंड में विकास नहीं हो पाया है। उन्होंने कहा कि अब भारत  महंगाई, बेरोजगारी पर विजयी होना चाहता है। भ्रष्टाचर पर बोलते हुए मोदी ने कहा कि ये बुराई वादों से नहीं इरादों से खत्म होगी। कांग्रेस को आदिवासियों की चिंता नहीं है।
नमो आदिवासियों के लिए पूर्णतः सुरक्षित लोहरदगा संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के भाजपा प्रत्याशी सुदर्शन भगत के पक्ष में मतदान करने की अपील गुमला स्थित हवाई अड्डा मैदान में करते झारखण्ड के स्वाधीनता  सेनानियों का भी नमन किया लेकिन १८५७ के पूर्व ही आंग्ल शासकों के विरूद्ध गुमला और आस - पास के क्षेत्रों में स्वाधीनता की ज्योति जगाने वाले सिसई प्रखण्ड के मुरूनगुर अर्थात मुर्गु ग्राम निवासी महान स्वाधीनता सेनानी तेलंगा खड़िया को स्मरण करना भूल गए .
नमो ने कहा कि आज क्षेत्र में सक्रीय प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी ने भारत विजय रैली को देखकर आज बंदी का एलान किया है , इसके बावजूद रैली में उपस्थित भीड़  नमन के योग्य है !  रैली में भारी संख्या में आए लोगों को बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि यह भीड़ , यह उमड़ा जनसमूह प्रदर्शित करता है कि लोगों ने माओवादियों की विचारधारा को खारिज कर दिया है।

लोहरदग्गा से पार्टी उम्मीदवार सुदर्शन भगत को समर्थन देने का आह्वान करते हुए मोदी ने कहा कि बंद और बंदूक की धमकी के बावजूद आप बड़ी संख्या में यहां आए। यह लोकतंत्र में आपके विश्वास और बंदूक से निर्भिकता को प्रदर्शित करता है। मैं अपका सम्मान करता हूं। उन्होंने कहा कि लोगों के कल्याण के लिए हमें समाधान निकालना चाहिए। खून बहाना नहीं बल्कि विकास के लिए काम.. हम सभी लोकतंत्र के लिए हैं। नमो ने कहा कि आज माओवादियों ने लोकतंत्र को ललकारा है। माओवादियों के हाथों में बंदूक नहीं, हल होना चाहिए, जिससे भूखे गरीबों का पेट भर सके। माओवादियों के हाथ में किताबें और कलम हो ताकि गरीब का कल्याण हो सके और ऐसा सिर्फ भाजपा की सरकार में हो सकता है।

मोदी ने कांग्रेस को आड़े हाथों लिया और कहा कि कांग्रेस ने आदिवासियों के लिए कुछ नहीं किया। अगर आदिवासियों का कोई भला कर सकती है तो वह भाजपा है। उन्होंने कहा कि अगर देश की बदहाल तस्वीर बदलनी है तो बीजेपी को सरकार में लाना होगा।

नमो ने कांग्रेस पर वार करते हुए कहा कि अब देश में पतझड़ का मौसम खत्म हो रहा है और चुनाव के बाद बसंत आने वाला है। मोदी ने उम्मीद जताई कि अगर राज्य को पानी मिला तो यहां की मिट्टी में सोना उपजेगा। मोदी ने कहा कि यह चुनाव आंधी में परिवर्तित हो चुका है जो देश को तबाह करने वालों को बर्बाद कर देगा।मोदी ने कहा कि अब पतझड़ खत्म हो चुका है और बसंत आनेवाला है। उन्होंने झारखंड बनने का श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी को देते हुए कहा कि अगर वह न होते तो झारखंड नहीं बनता। अटल जी ने ही यहां आदिवासियों का कल्याण किया और भाजपा के आने से ही आदिवासियों का कल्याण होगा !ध्यातव्य  है कि आज मोदी की चार रैलियां हैं। झारखंड में दो और बिहार में दो रैलियां।


नेहरू ने झारखंड की मांग का मजाक उड़ाया था -मोदी
झारखंड प्रदेश के गुमला में भारत विजय अभियान रैली को भाजपा के प्रधानमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने रैली को संबोधित करते हुए कहा कि अटल जी ने झारखंड दिया, कांग्रेस ने कभी जनता की आवाज नहीं सुनी।’वाजपेयी न होते तो कभी झारखंड को उसका हक नहीं मिलता। नेहरू ने झारखंड की मांग का मजाक उड़ाया था। अटल जी ने झारखंड को उसका हक दिया। झारखंड के लिए बिहार में बैठे कुछ नेताओं ने कहा था कि इस प्रदेश का जन्म मेरी लाश पर होगा। बिहार के वे नेता आज कहां हैं? मोदी ने कहा, आदिवासी समाज का इतिहास बहुत पुराना है। आदिवासियों का मंत्रालय वाजपेयी जी ने बनाया। अगर आदिवासियों का कोई कल्याण कर सकता है, तो वह सिर्फ भारतीय जनता पार्टी है। झारखंड अमीर लेकिन यहां के लोग गरीब, झारखंड के लोगों को रोजगार के लिए प्रदेश के बाहर जाना पड़ता है। शिक्षा का अभाव है, पानी तक नहीं मिलता। इस राज्य के किसानों को पानी नहीं मिलता। इस प्रदेश की मिट्टी ऐसी है कि यहां के किसान भाईयों को पानी मिले, तो मिट्टी सोना उगल सकती है। प्रदेश में इतना कोयला, इतना लोहा होने के बाद भी यह दशा क्यों हुई है? प्राकृतिक संपदा के बाद भी झारखंड गरीब है। इस प्रदेश के कुछ नेता कोयला और लोहा की भी चोरी कर रहे हैं। भ्रष्टाचार पर हमला बोलते हुए मोदी ने कहा, भारत भ्रष्टाचार पर विजय चाहता है। भारत माताओं-बहनों का सम्मान चाहता है। भारत बेरोजगारी पर विजय चाहता है। इसलिए हम यह भारत विजय रैली कर रहे हैं। झारखंड के गुमला में रैली के दौरान मोदी ने एक बार फिर कांग्रेस पर जम कर निशाना साधा। उन्होंने कहा, नेहरू ने झारखंड की मांग का मजाक उड़ाया था

Saturday, 15 March 2014

15 साल बाद फिर शिबू सोरेन-बाबूलाल मरांडी आमने-सामने




15 साल बाद फिर शिबू सोरेन-बाबूलाल मरांडी आमने-सामने



झारखण्ड के दुमका लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र  से झारखंड विकास मोर्चा ने अपने सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी को अपना उम्मीदवार बनाया  है. वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा  ने भी अपने सुप्रीमो  शिबू सोरेन को प्रत्याशी बनाया है. करीब 15 वर्ष के बाद झारखंड दो दिग्गज आपस में भिड़ेंगे. यह संयोग ही है कि दोनों ही झारखंड के मुख्यमंत्री व केंद्र में मंत्री भी रह चुके हैं. 

यानी यह टकराव न केवल दो पारंपरिक प्रतिद्वंद्वियों के बीच होगी, बल्कि राजनीति के दो शीर्ष व्यक्तियों की भी होगी. बाबूलाल जहां झाविमो के केंद्रीय अध्यक्ष हैं, वहीं शिबू सोरेन भी झामुमो के केंद्रीय अध्यक्ष हैं. दोनों ही अपने स्तर से अपनी स्थानीय पार्टी को संभाल रहे हैं. नेतृत्व प्रदान कर रहे हैं. अंतर सिर्फ इतना है कि झामुमो 40 वर्ष पुरानी पार्टी है, तो झाविमो केवल आठ वर्ष पुरानी पार्टी है. 1973 में झामुमो का गठन हुआ था और 2006 में भाजपा से अलग होकर बाबूलाल मरांडी ने झाविमो बनाया था. 

1998 में पहली बार बाबूलाल मरांडी को मिली थी सफलता
शिबू सोरेन पहली बार 1980 में दुमका से सांसद बने. 1984 में उन्हें कांग्रेस के पृथ्वीचंद किस्कू ने मात दी. 1989 में शिबू फिर जीते. फिर तो 1998 तक वह थमे नहीं. 1991 में पहली बार बाबूलाल मरांडी को दुमका से भाजपा ने टिकट दिया था. बाबूलाल को शिबू सोरेन ने हरा दिया. 1996 में बाबूलाल फिर शिबू से भिड़े. इस बार भी हार मिली. 

1998 के चुनाव में बाबूलाल को पहली बार सफलता मिली. वह शिबू सोरेन को हराने में सफल हुए, पर केंद्र में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार 13 माह में ही गिर गयी. 1999 के चुनाव में शिबू सोरेन की जगह उनकी पत्नी रूपी सोरेन किस्कू खड़ी हुईं. बाबूलाल ने इस चुनाव में भी जीत दर्ज की. बाबूलाल को केंद्र में वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री बनाया गया. 15 नवंबर 2000 को झारखंड अलग हुआ. बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बने. बाबूलाल मरांडी ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. तकनीकी वजहों से विलंब के कारण मई 2002 में दुमका में उप चुनाव हुआ. शिबू सोरेन ने भाजपा के रमेश हेंब्रम को हराया. इसके बाद से वर्ष 2009 तक शिबू सोरेन का रथ रुका नहीं है. 

2006 में बाबूलाल ने झाविमो बनाया
वर्ष 2006 में बाबूलाल मरांडी ने भाजपा छोड़ कर अपनी अलग पार्टी झारखंड विकास मोरचा बनायी. हालांकि, 1999 के बाद बाबूलाल मरांडी ने लोकसभा चुनाव कोडरमा सीट से ही लड़ा. उनका टकराव फिर शिबू सोरेन के साथ नहीं हो सका. अब लंबे अंतराल के बाद वह दुमका में शिबू सोरेन के साथ भिड़ेंगे. राजनीतिक  विश्लेषक इस चुनाव को रोचक मान रहे हैं. कारण है कि दोनों का झारखंड का दिग्गज होना और एक-दूसरे का घोर राजनीतिक विरोधी होना .

भारत , भारतीय व भारतीयता तभी तक सुरक्षित है, जब तक सुरक्षित है हिंदू समाज व संस्कृति



राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघसंचालक मोहन भागवत राँची में 



" भारत , भारतीय व भारतीयता तभी तक सुरक्षित है, जब तक सुरक्षित है हिंदू समाज व संस्कृति "- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत 

 "वनवासी किसी जाति का नाम नहीं है. हिंदुस्तान का 30 करोड़ समाज वनवासी है. ये वनवासी सहनशीलता से मानव बम हो गये हैं. इनके विस्फोट से जो रोशनी होगी, उससे समाज रोशन होगा. राम लला का मंदिर बाद में बनेगा, पहले 30 करोड़ लोगों के चेहरे पर हम मुस्कान लायेंगे. - एकल अभियान के केंद्रीय संगठन प्रभारी श्यामजी गुप्त 


" भारत , भारतीय व भारतीयता तभी तक सुरक्षित है, जब तक हिंदू समाज व संस्कृति सुरक्षित है. इसी सुरक्षित व शुद्ध स्वरूप में वनों में रहने वाले 30 करोड़ वनवासियों को हमें जगाना है. हमें सबको जोड़ना है, हम सबको जोड़ेंगे . " गत 25 वर्षो से चल रहे एकल अभियान के तहत दूरदराज के गांवों में चलने वाले  विद्यालयों , एकल विद्यालयों में कार्यरत्त एकमात्र शिक्षकों के एकल समारोह में भाग लेने के लिए राज्य के कोने-कोने से हजारों की संख्या में पहुंचे शिक्षकों , सम्बंधित अभ्यागत्तों को बिरसा मुंडा फुटबॉल स्टेडियम, मोरहाबादी में आयोजित एकल संगम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने ये बातें कहीं .
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के  के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि झारखंड प्रान्त में जब एकल विद्यालय की कल्पना हो रही थी, उस वक्त मैं बिहार-झारखंड इलाके में ही था. तब यह एक कल्पना थी. एक प्रयोग था. आज मैं कह सकता हूं कि जैसा सोच था, वैसा ही हो रहा है. एकल अभियान के 25 वर्ष पूर्ण होने पर यह आयोजित इस एकल संगम में उन्होंने कहा कि जहां धर्म है वहीं विजय है. वनवासियों को जगाये बगैर भारत विश्व गुरु नहीं हो सकता. उन्होंने कहा कि "इनको जगाने के लिए जमीन पर काम करना होगा. श्री भागवत ने कहा कि यह काम हमें विरोध या किसी प्रतिक्रिया में नहीं करना है ." एक कहानी सुना कर वह बोले कि "करते वक्त चिढ़ाने, डराने व तिरस्कार से घबराना नहीं चाहिए. ऐसा करने वाले करेंगे, पर अपने लक्ष्य की ओर लगातार बढ़ते रहने से ही सफलता मिलेगी. संघ के सौ साल पूरे होने तक भारत माता का वैभव लौटाना है." कार्यक्रम के अध्यक्ष विकास भारती के सचिव अशोक भगत ने कहा कि "गरीबों के लिए संघर्ष को कुछ लोगों ने अपनी बपौती बना ली थी. पर एकल अभियान के तहत युवाओं ने सकारात्मक भूमिका निभायी है. हम घृणा व नफरत नहीं फैलाते, हम वनवासियों को उनकी ताकत का अहसास कराते हैं. धीरे-धीरे यह समाज आगे बढ़ रहा है." एकल अभियान के केंद्रीय संगठन प्रभारी श्यामजी गुप्त ने कहा कि "वनवासी किसी जाति का नाम नहीं है. हिंदुस्तान का 30 करोड़ समाज वनवासी है. ये वनवासी सहनशीलता से मानव बम हो गये हैं. इनके विस्फोट से जो रोशनी होगी, उससे समाज रोशन होगा." श्री गुप्त ने कहा कि राम लला का मंदिर बाद में बनेगा, पहले 30 करोड़ लोगों के चेहरे पर हम मुस्कान लायेंगे. श्रोता के रूप में निवर्तमान लोकसभा उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा, पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, सीपी सिंह, रवींद्र राय, दीपक प्रकाश सहित अन्य भाजपा नेता तथा राज्य भर से आये एकल विद्यालय व एकल अभियान से जुड़े हजारों कार्यकर्ता  उपस्थित थे.

उल्लेखनीय है कि गत 25 वर्षो से चल रहे एकल अभियान के तहत दूरदराज के गांवों में चलने वाले उन  विद्यालयों को एकल विद्यालय कहा जाता है, जहां एक शिक्षक होते हैं. ये शिक्षक ग्रामीण बच्चों को पंचमुखी शिक्षा (पारंपरिक शिक्षा, स्वास्थ्य शिक्षा, समृद्धि शिक्षा, संस्कार की शिक्षा व स्वाभिमान जागरण) देते हैं. देश में एकल विद्यालय की शुरुआत झारखंड के रतनपुर टुंडी में 1989 में हुई थी. तब यहां के 60 गांवों में एकल विद्यालय शुरू किये गये थे. आज इनकी संख्या लगभग 60 हजार हो गयी है. अगले कुछ वर्षो में यह संख्या एक लाख करने का लक्ष्य है. एकल अभियान के तहत गांव के वयस्कों को जैविक खेती तथा अन्य तकनीकी जानकारी दी जाती है.कार्यक्रम के दौरान वनवासी कल्याण, एकल विद्यालय व एकल अभियान से जुड़े समर्पित कार्यकर्ताओं को सम्मानित भी किया गया. सरसंघचालक मोहन भागवत ने उन्हें खुद अपने हाथों से तिलक लगा कर, श्री फल देकर व शॉल ओढ़ा कर सम्मानित किया. सम्मानित होने वालों में मेहरंग उरांव, योगेश्वर गिरि, विष्णु उरांव, संजय साहु, देवकी नंदन यादव, जीतू पाहन, लाल मोहन महतो, विरेंद्र सोरेन, सुमित्र बड़ाइक व दुबराज हेंब्रम शामिल हैं. कार्यक्रम को दौरान एकल विद्यालय के बच्चों ने पंचमुखी शिक्षा पर आधारित लघु नाटिका पेश की.


Thursday, 13 March 2014

झारखण्ड प्रदेश में आठ सीटों पर प्रत्याशी उतारेगी भाकपा (माले)



झारखण्ड प्रदेश में आठ सीटों पर प्रत्याशी उतारेगी भाकपा (माले)


भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले लिबरेशन) ने आगामी लोकसभा चुनावों में झारखंड की आठ सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने की घोषणा की है। पार्टी ने कहा है कि वह शेष छह सीटों पर वामपंथी दलों और अन्य दलों को समर्थन देगी।










भाकपा माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपांकर भटटाचार्य ने आज संवाददाता सम्मेलन में यह घोषणा की। पार्टी रांची से बहादुर उरांव, लोहरदगा से लालशाही भगत, पलामू से सुषमा मेहता, चतरा से रामनरेश सिंह, हजारीबाग से जावेद इस्लाम, कोडरमा से राजकुमार यादव, गोडडा से गीता मंडल और दुमका से बेटिया मांक्षी को अपना उम्मीदवार बनायेगी । इससे यह साफ हो गया है कि रांची में माकपा और भाकपा माले चुनाव मैदान में आमने सामने होंगे।

राजनीति में आने के लिए नौकरी त्याग रहे नौकरशाह

झारखण्ड का नक्शा 


राजनीति में आने के लिए नौकरी त्याग रहे नौकरशाह 

झारखण्ड प्रदेश में नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों में राजनीति के प्रति रूझान बढ़ता दिखाई दे रहा है। राजनीति में अपनी पारी खेलने के लिए पिछले कुछ महीनों में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के कई अधिकारी नौकरी को अलविदा कह चुके हैं। मुख्य सचिव स्तर के एक अधिकारी विमलकीर्ति सिंह ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन दिया है। विमलकीर्ति सिह के नजदीकी सूत्रों की मानें तो वे अपने गृह जिला बिहार के सिवान से लोकसभा का चुनाव लड़ सकते हैं।  सिह ने अबतक राजनीति से जुड़ने की बात न तो स्वीकार की है और न ही इनकार किया है।

उन्होंने कहा, "मेरे पास लोकसभा चुनाव लड़ने का विकल्प खुला है। अभी तक मैंने पार्टी और क्षेत्र के बारे में फैसला नहीं लिया है। मैं यह साफ करता हूं कि मैं झारखंड से चुनाव लड़ूंगा।"  अधिकारी ने कहा, "मैं एक वकील हूं और दिल्ली में लॉ फॉर्म खोलूंगा।" पुलिस में महानिरीक्षक स्तर के अधिकारी अरुण उरांव ने भी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन दिया है।

उरांव पंजाब काडर के अधिकारी हैं और वे यहां पांच वर्ष के लिए पदस्थापन पर आए हुए हैं। उनकी पत्नी गीताश्री उरांव झारखंड की शिक्षा मंत्री हैं। उरांव के पिता बंडी उरांव भी आईपीएस अधिकारी थे और बाद में विधायक बने थे। ओरांव के नजदीकी सूत्रों की मानें तो वे भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी के रूप में लोहरदगा से लोकसभा का चुनाव लड़ सकते हैं।

अतिरिक्त महानिदेशक स्तर के आईपीएस अधिकारी अमिताभ चक्रवर्ती ने पिछले साल चुनाव लड़ने के लिए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी। वे फिलहाल झारखंड क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। वे रांची से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। झारखंड में नौकरशाहों का नौकरी छोड़कर चुनाव में आना कोई नई बात नहीं है।


भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा भी आईएएस अधिकारी थे। अतिरिक्त महानिदेशक स्तर के आईपीएएस अधिकारी रामेश्वर उरांव ने भी 2004 लोकसभा चुनाव के पहले नौकरी छोड़ी थी। कांग्रेस के टिकट पर वो लोहरदगा सीट से जीते और बाद में मंत्री भी बने। एक और सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक वी. डी. राम भाजपा में शामिल हुए हैं और वे विधानसभा का चुनाव कांके विधानसभा क्षेत्र से लड़ सकते हैं।

Wednesday, 12 March 2014


गुमला को नगर परिषद का दर्जा दिए जाने की मांग

गुमला को नगर परिषद का दर्जा दिए जाने की मांग 


 गुमला नगर पंचायत कब गुमला नगर परिषद बनेगा ? कहा जाता है कि गुमला को नगर परिषद बनाने की औपचारिकता केवल शेष है। झारखंड सरकार के उपसचिव शशिभूषण मेहरा ने गुमला उपायुक्त को इस संबंध में पत्र भेजा है। पत्र के अनुसार वर्ष 2011 की जनगणना को आधार मानकर गुमला शहरी क्षेत्र को नगर परिषद का दर्जा दिया गया है। औपचारिकता के रूप में उपायुक्त का पत्र नगर विकास को भेजा जाना बाकी है। तो,फिर प्रश्न उत्पन्न होता है कि उपायुक्त के स्तर से इस संबंध में विलम्ब क्यूँ की जा रही है ?

जानकारी के अनुसार इससे पूर्व वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार गुमला शहर की जनसँख्या 39700 थी और प्रावधान के अनुसार चालीस हजार से कम जनसँख्या वाले स्थानों को नगर पंचायत का ही दर्जा प्राप्त हो सकता है , परन्तु वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार गुमला शहरी क्षेत्र की आबादी 51264 हो गई है। नियमानुसार 40 हजार से एक लाख के बीच की आबादीवाले शहरों को नगर परिषद वर्ग ख तथा एक लाख से एक लाख 50 हजार आबादी वाले शहवर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार गुमला शहरी क्षेत्र की आबादी 51 हजार 264 है।रों को नगर परिषद वर्ग क के रूप में उत्क्रमित करने का प्रावधान है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार गुमला शहरी क्षेत्र की आबादी 51 हजार 264 है। वर्ष 2011 की जनगणना को आधार मानते हुए नगर परिषद की सूची में गुमला के साथ-साथ सिमडेगा, मिहीजाम, विश्रामपुर, चिरकुंडा, पाकुड़, गोड्डा व गढ़वा को भी शामिल किया गया है। इन आठ नगर पंचायत को झारखंड सरकार द्वारा नगर परिषद का दर्जा मिलेगा। 

गुमला नगर पंचायत को नगर परिषद के रूप में दर्जा प्राप्त होने पर पर वार्डो का सीमांकन में परिवर्तन के साथ-साथ वार्डो की संख्या भी बढ़ेगी। राज्य निर्वाचन आयोग झारखंड सरकार के पत्रांक 291/17.02.14 एवं 301/18.02.14 द्वारा नगर पालिका निर्वाचन 2015 को मद्देनजर नगर पालिका क्षेत्रों का गठन, नगरपालिका क्षेत्रों का वर्गीकरण व पार्षदों की संख्या के संबंध में नगर विकास को अवश्यक कार्रवाई का निर्देश था। इसी आलोक में 26 फरवरी 2014 को सरकार के उपसचिव ने आठ नगर पंचायतों को नगर परिषद में परिवर्तित संबंधी कार्रवाई की।

गुमला को नगर परिषद का दर्जा मिलने से नगर पंचायत उपाध्यक्ष ,वार्ड पार्षदगण, विभिन्न राजनीतिक व सामाजिक संगठन के लोगों ने हर्ष व्यक्त करते हुए गुमला नगर पंचायत को शीघ्रातिशीघ्र नगर पार्षद का दर्जा दिए जाने हेतु आवश्यक कारर्वाई करने की मांग उपायुक्त गुमला और झारखण्ड सरकार के शहरी विकास मंत्रालय से  किया और कहा कि इससे गुमला का चहुंमुखी विकास होगा। 

Saturday, 8 March 2014

तिलेश्वर साहु की गोली मारकर हत्या

 ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) और छोटनागपुरिया तेली उत्थान परिषद के नेता तिलेश्वर साहू की आज जिले के बरही में गोली मारकर हत्या कर दी गई.खबर है कि 10.30 बजे तिलेश्वर साहू कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे.
11.30 बजे तिलेश्वर साहू अन्य नेताओं और अतिथियों के साथ स्टेज पर पर विराजमान हुए . 2.25 बजे भाषण दिया.  भाषण के बाद लोकनाथ महतो स्टेज छोड़कर चले गए. 2.45 बजे सांस्कृतिक कार्यक्रम चल रहा था. साहू स्टेज छोड़कर नीचे उतरे.2.50 बजे मंच से लगभग 20 फीट की दूरी पर नाटे कद के तिलेश्वर साहु पर युवक ने गोली चला दी .3.10बजे बॉडीगार्ड और स्थानीय लोगों की मदद से उन्हें बुलेट प्रूफ गाड़ी पर रखा और हजारीबाग के लिए रवाना हुए.

उपसंभागीय पुलिस अधिकारी अविनाश कुमार ने बताया कि कथित  हत्यारों में से एक को घटना के बाद गिरफ्तार कर लिया गया. कुमार ने कहा, ‘‘साहू को बेहद करीब से उनके सीने में तीन गोलियां दागी गईं और उन्हें सदर अस्पताल में मृत घोषित कर दिया गया.’’  साहू महिलाओं के सम्मेलन को संबोधित करने के बाद पार्टी स्थल से बाहर निकल रहे थे जब कुछ लोगों से उनका सामना हुआ. उसके बाद उन्हें गोली मार दी गई.एसडीपीओ ने कहा कि साहू के समर्थकों ने उनमें से एक को पकड़ लिया. उसकी पहचान सूरज कुमार के तौर पर की गई है और उसे पुलिस को सौंप दिया.हज़ारीबाग के पुलिस अधीक्षक मनोज कौशिक ने इस घटना की पु्ष्टि की है. कथित नक्सली संगठन पीएलएफआई ने इस घटना की ज़िम्मेदारी ली है. झारखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष स्व. लकड़ी व्यवसाय से विद्यार्थी जीवन से ही जुड़े हुए थे . महत्वाकांक्षी इतना कि इंटर मीडिएट के अंतिम वर्ष तक में अपनी लकड़ी व्यवसाय से कमाई करके बुलेट मोटरसाईकल से घूमने लगे थे . बाद में तो बसिया - कामडारा इलाके में उनकी तूती बोलती थी . हमेशा हथियार बंद लोगों के मध्य रहकर इलाके की सभी सरकारी विकास योजनाओं को हथियाना उनका मुख्य शगल बन गया था . साहू हाल में ही सुदेश महतो नीत आजसू में शामिल हुए थे.तिलेश्वर साहु गुमला जिले के बसिया प्रखण्ड के रामपुर तिलईडीह ग्राम के निवासी थे .
आजसू उपाध्यक्ष प्रवीण प्रभाकर ने कहा कि साहू पार्टी के महासचिव थे और वह आगामी विधानसभा चुनाव में बरही विधानसभा सीट से टिकट के आकांक्षी थे.
      
आजसू प्रवक्ता देव शरण भगत ने रांची में संवाददाताओं से कहा कि पार्टी साहू की हत्या के विरोध में कल झारखंड बंद करेगी. हालांकि, मेडिकल सेवाओं और परीक्षा जैसी आवश्यक सेवाओं को इससे अलग रखा जाएगा. भगत ने कहा, ‘‘साहू जन समर्थक नेता थे. हाल में दो बार वह जानलेवा हमले में बचे थे. इसके बावजूद पुलिस उनकी सुरक्षा करने में विफल रही.’’ 

कार्यक्रम में क्या कहा था तिलेश्वर साहू ने 
तिलेश्वर ने अपने अंतिम कार्यक्रम में कहा, हम महिलाओं को आगे बढ़ाने का प्रयास करेंगे. हमारा प्रयास होगा कि गरीब महिलाओं को आगे बढ़ाया जाए. सरकार योजनाओं के जरिये इनके उत्थान में मदद करे. महिलाओं के लिए सरकार को अलग फंड की व्यवस्था करनी चाहिए.
 तिलेश्वर साहु को हार्दिक श्रद्धांजलि 

Sunday, 2 March 2014

सादगी से ओत-प्रोत और अतीव मिलनसार लोकसभा उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा




सादगी से ओत-प्रोत और अतीव मिलनसार लोकसभा उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा 

सादगी से ओत-प्रोत और अतीव मिलनसार . ये कोई साधारण किसान नहीं वरण भारतीय लोकसभा के उपाध्यक्ष माननीय कड़िया मुंडा जी हैं .कड़िया मुंडा जी झारखण्ड प्रान्त के खूंटी संसदीय निर्वाचन से सातवीं बार निवाचित होकर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व संसद में कर रहे हैं . कड़िया मुंडा झारखण्ड ही नहीं प्रत्युत पूर्ववर्ती संयुक्त बिहार प्रांत के समय से ही भारतीय जनता पार्टी के सर्वाधिक पुराने सांसदों में से एक हैं . वे सात बार सांसद , चार बार केन्द्रीय मंत्री तथा दो बार विधायक के पदों को सुशोभित कर चुके हैं. फिर भी मन में न कोई गुरूर ,न कोई दिखावा न ही कोई आडम्बर .आने- जाने वालों से सबसे खुले मन से मिलते हैं, सबका दुःख - दर्द सुनते हैं और समस्याओं का समाधान का हर संभव प्रयास करते हैं .उनका दिल्ली का सरकारी आवास क्षेत्र के लोगों के साथ ही सीमावर्ती लोहरदगा और रांची संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के लोगों के लिये भी सदैव खुला रहता है .वे वहाँ आ रह सकते हैं , खा सकते हैं ,अपने कार्य के निष्पादनार्थ सहयोग ले सकते हैं ,लेकिन आने के पूर्व उनको सुचना देना तथा रात के आठ बजे के पूर्व आवास में प्रवेश आवश्यक शर्त के साथ .अपने इन्हीं गुणों के कारण अपने ससदीय निर्वाचन क्षेत्र के सर्वाधिक प्रिय नेता बने हुए हैं और क्षेत्र की जनता उन्हें आठवीं बार चुनकर भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्रित्व वाली संसद में भेजने के लिए लालायित , उतावली और दीवानी है .

इस बदहाली का गुनहगार कौन?

इस बदहाली का गुनहगार कौन?

एक लंबा संघर्ष अनगिनत कुर्बानियां और जनान्दोलन की कोख से उपजा झारखंड अपने जन्म के साथ ही राजनीतिक अस्थिरता का शिकार रहा है। 15 नवंबर 2000 में बिहार से अलग होकर झारखंड एक अलग राज्य बना और भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता संभाली। बाबूलाल मरांडी राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने, मगर 27 महीने बाद मंत्रीमंडल में कुछ मंत्रियों के विरोध के बाद मरांडी को रूखसत होना पड़ा। झारखंड के गठन को 13 वर्ष का लंबा अर्सा बीत चुका है। लेकिन इतने लंबे अर्से के बाद भी राज्य में राजनीतिक अस्थिरता आज तक बनी हुई है। यहां की राजनीति में छोटे–छोटे राजनीतिक दलों और निर्दलियों की भूमिका को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। सच तो यह है कि यह हमेशा किंग मेकर की भूमिका में रहे हैं। झारखंड राज्य का अति पिछड़ा होने का सबसे बड़ा कारण यहां की राजनीतिक अस्थिरता ही है। झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता का सबसे बड़ा अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बिहार से विभाजन के बाद राज्य में तीन बार राष्ट्रपति शासन लग चुका है।

राज्य में जो भी पार्टी सत्ता में आयी, उसकी गिद्ध जैसी दृष्टि राज्य के विकास पर न होकर अपार संसाधनों को लूटने पर टिकी रही। राजनीतिक अस्थिरता का सबसे बड़ा ख़ामियाज़ा यहां की जनता को उठाना पड़ रहा है। झारखंड के साथ अस्तित्व में आए उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ विकास की दृष्टि से कहीं आगे निकल गए। वास्तव में जिन सिद्धांतों और मूल्यों को लेकर झारखंड आंदोलन चला थाए शहादतें दी गई थी, उसे ज़मींदोज़ कर दिया गया। एक बार फिर झारखंड के विकास को गति देने के लिए झारखंड को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने का मुद्दा पिछले दिनों समाचार पत्रों की सुर्खियां बना रहा। सवाल यह उठता है कि राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने के बाद क्या राज्य में विकास की गति तेज़ हो पाएगी। झारखंड को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग कई राजनीतिक पार्टियां भी कर रहीं हैं। कुछ राजनीतिक दल तो इसके लिए सड़कों पर भी उतर आए हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि जब यही राजनीतिक दल सत्ता में थे तो राज्य के विकास के लिए इन राजनीतिक दलों की नींद उस वक्त क्यों नहीं खुली?

सुरेश तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट के अनुसार, 39.96 फीसदी के साथ गरीब राज्यों में झारखंड दूसरे नंबर पर है। झारखंड में बढ़ती गरीबी का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य के 35 लाख परिवार गरीबी रेखा से नीचे अपनी जिंदगी गुज़र बसर कर रहे हैं। राज्य के 75.3 फीसदी लोग दैनिक वेतन भोगी श्रमिक हैं। इनमें से बहुत से परिवार ऐसे हैं कि अगर घर का मुखिया एक दिन काम पर न जाए तो शाम को इनके परिवार का चूल्हा नहीं जलता है। आज भी राज्य की तकरीबन 92.3 प्रतिशत आदिवासी परिवार कच्चे घरों में रहते हैं। जनजातीय इलाकों में विकास की दर महज़ 55 प्रतिशत है। सर्वशिक्षा अभियान की लाख कोशिशों के बावजूद भी राज्य में महिला शिक्षा दर 52 प्रतिशत से ऊपर नहीं जा सका। ऐसे में जिस घर में मां ही पढ़ी लिखी नहीं होगी तो हम बच्चों के उज्जवल भविष्य की कामना कैसे कर सकते हैं। इसके अलावा 43 प्रतिशत लोग कभी स्कूल ही नहीं गए। 7 प्रतिशत लोगों को ही पाइप से पानी की सप्लाई मिल पाती है। चिकित्सा सुविधाओं की हालत भी खस्ताहाल ही है। इस बात का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य में 3700 चिकित्सकों की कमी है। ऐसे में दूरदराज़ इलाकों से लोगों को इलाज के लिए शहर आना पड़ता है जिसमें वक्त और पैसा दोनों बर्बाद होते हैं। यह वे आंकड़े हैं जो पिछले 13 सालों में राज्य में बनी बिगड़ी सरकारों के ज़रिए किए गए विकास की कहानी की इबारत खुद-ब-खुद लिख रहे हैं। राजनीतिक अस्थिरता की वजह से केंद्र सरकार से आने वाले डेवलपमेंट फंड का इस्तेमाल भी राज्य सरकारें नहीं कर पाईं। पिछले नौण् दस वर्षों की बात करें तो केंद्र सरकार से विकास के नाम पर आने वाले फंड की एक बड़ी राशि राज्य सरकार के ज़रिए केंद्र सरकार को लौटा दी गई। वर्ष 2008-09 में 931.99 करोड़ रुपए वर्ष 2009.10 में 1686.72 करोड़ रुपये और वर्ष 2010-11 में 8442.18 करोड़ रुपए केंद्र सरकार को वापस कर दिया गया। ऐसे में सवाल यह उठता है कि झारखंड को विशेष राज्य का दर्जा मिलने से राज्य सरकार के हाथ में ऐसा कौन सा रामबाण हाथ लग जाएगा जिससे वह विकास की गंगा बहा देगी। समझ से परे है, क्योंकि विकास जो काम पिछले तेरह साल में नहीं हो पाया, वह विशेष राज्य का दर्जा मिलने के बाद क्या एक दम हो पाएगा। इसके अलावा एक सवाल यह भी उठता है कि विशेष राज्य का दर्जा मिलने के बाद क्या झारखंड की राजनीति में व्यापक राजनीतिक अस्थिरता और प्रशासनिक अक्षमता दूर हो जाएगी? क्या राज्य की मुख्य समस्या राजनीतिक अस्थिरता का समाधान हो पाएगा?

इधर, भाजपा के पीएम इन वेटिंग नरेन्द्र मोदी ने अपनी झारखंड रैली में इस राजनीतिक अस्थिरता और प्रशासनिक अक्षमता के लिए कांग्रेस को जिम्मेवार बतलाया। सच्चार्इ है कि मघु कोड़ा को सामने कर कांग्रेस ने लूट का एक साम्राज्य खड़ किया, पर यह याद रखना मोदी के लिए एक दुखद सत्य है कि 13 बरसों का झारखंड के जीवनकाल में 8 बर्ष भाजपा ही शासन की मलाइयां काटी हैं। आज वे विधानसभा में सीटों की संख्या का कम होना राजनीतिक अस्थिरता का कारण बता रहे हैं, पर इसका गठन तो अटल वाजपेयी के शासनकाल में ही हुआ था, तब इस ओर ध्यान क्यों नहीं दिया गया। दरअसल, कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों ही राजनीतिक पार्टियां यहां एक स्वच्छ और टिकाऊ शासन देने में असफल रही है और दोनों ही पार्टियों ने निर्दलियों और क्षेत्रीय दलों से गठबंठन कर इस राज्य को दुर्गति के कगार पर खड़ा कर दिया है। ये सवाल हैं जिनको लेकर झारखंड का हर एक व्यक्ति सोचने को मजबूर है। अतीत से उठकर झारखंड के लोगों को अपनी सोच बदलकर एक ऐसी सरकार को चुनना होगा जो विकास को पहले तरजीह दे। अगर हम पिछले तेरह सालों से सीख न लेकर उसी रास्ते पर चलते रहेंगे, तो झारखंड भी विकास से दूर होता जाएगा। हमें सोच-समझकर ऐसी स्थिर सरकार चुननी है जो विकास करने के लिए स्वतंत्र हो, न कि सरकार बचाने के लिए छोटे-छोटे राजनीतिक दलों पर निर्भर हो।