Thursday, 13 February 2014

गुमला के सुगाकांटा और काशीटाँड़ गावों के मध्य मिले हैं किम्बरलाईट के चट्टानों के बीच हीरे


गुमला के सुगाकांटा और काशीटांड़ गांवों के मध्य मिले हैं किम्बरलाईट चट्टानों के बीच हीरे ।

हीरे की तराश में भारतवर्ष तो आगे रहा है , अब इसके उत्पादन में भी इसकी हैसियत अचानक बढ़नेवाली है। झारखण्ड प्रान्त के घनघोर उग्रवाद प्रभावित गुमला जिले और सिमडेगा जिले में हीरे के भंडार की खोज के बाद  हीरे के उत्पादन के लिहाज से पहले से ही दुनिया के टॉप 10 देशों में शामिल भारतवर्ष का नाम और भी ऊपर हो गया है। इस खोज का श्रेय भारतवर्ष की जानी - मानी कंपनी जिंदल कंपनी को जाता है।
झारखंड की राजधानी रांची से सटे घोर नक्सल प्रभावित गुमला जिले के पालकोट प्रखंड और गुमला प्रखंड के सीमावर्ती गांवों  के पास जिंदल कंपनी के जियोलॉजिस्टों को हीरे की खोज में सफलता मिली है। यहां हीरे के कण किंबरलाइट चट्टानों के बीच छिपे हैं। सुगाकांटा और काशीटांड़ गांवों के बीच दो वर्ग किलोमीटर में जमीन के थोड़े ही नीचे ये चट्टान फैले हुए हैं।
तीन हजार वर्ग किलोमीटर में हीरे की खोज कर रही कंपनी ने इसकी प्राथमिक पुष्टि कर दी है। रिपोर्ट जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, इंडियन ब्यूरो ऑफ माइंस तथा राज्य सरकार के भूतत्व निदेशालय को सौंप दी गई है। रिपोर्ट में अलग-अलग जगह से लिए गए नमूनों और उनके फिजिकल-केमिकल टेस्ट के रिजल्ट का पूरा ब्योरा है।

उधर गुमला जिले से ही कटकर अलग हुए सीमावर्ती सिमडेगा
जिले के ठेठईटांगर प्रखण्ड के छिंदानाला इलाके में भी कुछ चट्टानों में किंबरलाइट का संकेत देने वाले खनिज मिले हैं। जियो-केमिकल मैपिंग और सिस्टमेटिक थीमेटिक मैपिंग के बाद इसके स्थान और मात्रा की पुष्टि हो सकेगी।

जिंदल कम्पनी के रिसर्च प्रोजेक्ट के प्रमुख एसके सरकार के टीम के अन्य सदस्यों ने हीरे की खोज प्रक्रिया के चरण के सम्बन्ध में बतलाया कि हीरा अमूमन किंबरलाइट चट्टानों के बीच ही भूगर्भीय हलचलों के कारण बनता है। किंबरलाइट चट्टान एक पाइप की तरह होते हैं, जिन्हें सावधानी से तोड़कर डायमंड ग्रेन निकाले जाते हैं। फिर उन्हें अलग-अलग तरीके से तराश कर आभूषण के लायक बनाया जाता है। किंबरलाइट चट्टानों की मौजदूगी धरती के नीचे एक दुर्लभ घटना मानी जाती है। इसे हीरे के मिलने की गारंटी माना जाता है। हालांकि एक ही जगह के हर किंबरलाइट पाइप में डायमंड ग्रेन की उपस्थिति नहीं होती है।

बड़ी सफलता है हीरे की खोज

जिंदल कंपनी की ओर से सौंपी गई रिपोर्ट में किंबरलाइट मिलने की पुष्टि हो गई है। इसी चट्टान के भीतर हीरे पनपते हैं। किंबरलाइट का मिलना हीरे के मिलने की गारंटी है। ऐसे भी इस इलाके में समय-समय पर हीरे के टुकड़े कहीं-कहीं मिलते रहे हैं। अब व्यवस्थित तरीके से इसकी माइनिंग हो सकेगी।- जयप्रकाश सिंह, भूतत्व निदेशक, झारखंड।

रिसर्च प्रोजेक्ट के प्रमुख एसके सरकार और उनकी टीम के अन्य सदस्यों ने एक भेंट में बतलाया कि गुमला जिले के पालकोट और गुमला प्रखंडों के सीमावर्ती क्षेत्रों में सिलम गांव के पास हीरे की कितनी मात्रा होने की संभावना है? यह तो हम नहीं बता सकते , क्यूंकि यह गोपनीयता का मामला है। इस क्षेत्र में  खोज सफल है । अन्वेषण में हीरे होने की पुष्टि हो गई है। जियोकेमिकल मैपिंग हो चुकी है। राज्य सरकार से लाइसेंस मिलने के बाद ही इसके डिटेलिंग की जाएगी। जमीन के नीचे हीरा? ज्यादा गहराई मेंं नहीं है। कहीं-कहीं तो किंबरलाइट चट्टानें सतह के बिल्कुल पास आ गई है। माइनिंग कब से शुरू हो पाने के सम्बन्ध में स्पष्ट जवाब से बचते हुए उन्होंने बतलाया कि कोयले और लोहे की तरह डायमंड के बड़े-बड़े पहाड़ नहीं होते हैं। किंबरलाइट चट्टानों की पाइप में इसके छोटे-छोटे कण होते हैं। एक महीन कण भी नष्ट नहीं हो, इसका ध्यान रखना होता है। इसलिए सबसे पहले खास तरीके से किंबरलाइट पाइप का लोकेशन खोजना होता है। इसके बाद ही उन्हें काफी सावधानी से निकाला जाता है।

Monday, 10 February 2014

वर्षों की संघर्ष के पश्चात झारखंड में तेजाब पीड़िता सोनाली को सरकारी नौकरी

वर्षों की संघर्ष के पश्चात झारखंड में तेजाब पीड़िता सोनाली को सरकारी नौकरी

तेजाब हमले का सामना कर चुकीं सोनाली मुखर्जी को वर्षो की सब्घर्ष के पश्चात् आखिरकार सरकारी नौकरी मिल गई। उन्हें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मंगलवार को बोकारो में नियुक्ति पत्र सौंपा। झारखण्ड सरकार के एक अधिकारी ने बुधवार को बताया कि सोनाली मुखर्जी को झारखंड के बोकारो शहर में एक सरकारी स्कूल में नौकरी दी गई है। मुखर्जी एक रात अपनी घर की छत पर सोई हुई थीं और उसी दौरान उनपर तेजाब हमला किया गया और इसके साथ ही उनकी पूरी जिंदगी की दिशा हमेशा के लिए बदल गई। उस वक्त वह महज 18 वर्ष की थीं।

मुख्यमंत्री हेमंर सोरेन ने कहा, "हम सोनाली का सम्मान करते हैं, क्योंकि वह अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने वाली चंद महिलाओं में से एक हैं। भारतवर्ष में हर कोई उन्हें उनके साहस के लिए जानता है।" मुखर्जी पर 22 अप्रैल, 2003 को तेजाब हमला हुआ था। जिस समय उन पर हमला हुआ वह धनबाद स्थित अपने घर की छत पर सोई हुई थीं। तेजाब से उनका चेहरा, गर्दन और छाती का दााहिना हिस्सा और शरीर का निचला भाग बुरी तरह झुलस गया था।

इस घटना में शामिल तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया और उनमें से दो को दोषी भी करार दिया गया। लेकिन झारखंड उच्च न्यायालय ने बाद में उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया। मुखर्जी और उनके पिता ने इलाज और कानूनी लड़ाई जारी रखने के लिए अपनी पूरी जमीन और परिवार के सारे जेवरात बेच दिए। उन्होंने आरोपियों की जमानत रद्द कराने के लिए लड़ाई लड़ी। उन्हें आरोपी पक्ष की धमकियों का भी सामना करना पड़ा।

तीनों व्यक्ति, जिसमें से एक 40 वर्ष के ऊपर था और एक 18 वर्ष का था, रोजाना मुखर्जी का पीछा करते थे। उस पर अश्लील टिप्पणियां करते और उसे परेशान करते। जब उसने विरोध किया तो उस पर तेजाब से हमला किया गया। नियुक्ति पत्र मिलने के बाद पीड़िता ने कहा, "मैं देश के उन सभी लोगों का शुक्रिया करूंगी जिन्होंने मेरे लिए लड़ाई लड़ी और मुझे सहयोग दिया।"

झारखण्ड में अवस्थित शिव का महत्वपूर्ण तीर्थस्थल - गुमला जिले का टांगी नाथ धाम

झारखण्ड में अवस्थित शिव का महत्वपूर्ण तीर्थस्थल -टांगी नाथ धाम

टांगीनाथ एक आकर्षक, पवित्र और महत्त्वपूर्ण तीर्थधाम है, जो कि भगवान शिव से सम्बन्धित है। यह पवित्र स्थान झारखण्ड राज्य में स्थित है। टांगीनाथ में लगभग 200 अवशेष हैं, जिसमें शिवलिंग और देवी-देवताओं की मूर्तियाँ, विशेषकर दुर्गा, महिषासुर मर्दानि और भगवती लक्ष्मी, गणेश, अर्द्धनारीश्वर, विष्णु, सूर्य देव, हनुमान और नन्दी बैल आदि की मूर्तियाँ प्रमुख हैं। इसके साथ ही साथ पत्थर के जलपात्र, कुम्भ आदि भी यहाँ हैं। इनमें से अधिकांश मूर्तियों एवं लिंगों को उत्खनन से प्राप्त किया गया है। मूर्तियों का नामकरण एवं पहचान स्थानीय पुजारियों की सहायता से की गई है। इनमें से कुछ मूर्तियाँ खण्डित हैं और टुकड़ों में बटीं हुई हैं, जबकि कुछ को उनकी अच्छी हालत में न होने के कारण पहचानना कठिन है। टांगीनाथ की सबसे बड़ी विशेषता एक महाविशाल त्रिशूल है। इससे बड़ा त्रिशूल शायद ही कहीं और दिखाई दे।
लिगों का विभाजन

टांगीनाथ को ‘टांगीनाथ महादेव’ और ‘बाबा टांगीनाथ’ के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ छोटे एवं बड़े कई प्रकार के लगभग 60 शिवलिंग हैं। इन शिवलिगों को प्राय: 5 भागों में विभाजित किया जा सकता है-

वह शिवलिंग, जिन्हें पत्थरों के सहारे से खड़ा किया गया है। इस तरह के शिवलिंग मुख्यत: वर्गाकार आकृति के होते हैं, जो मध्य में अष्टभुजाकार हैं।
वह शिवलिंग, जो सामान्य गोल एवं अर्द्धाकृति में अवस्थित है।
वह शिवलिंग, जो आयताकार या वर्गाकार अर्ध में स्थापित हैं। इनमें से एक लिंग का व्यास 27 इंच तक है।
वह शिवलिंग, जो छोटे वर्गाकार और आयताकार दीवार से बने चेम्बर में स्थापित है।
वह शिवलिंग, जिसमें मानव मुख या शरीर खुदे हुए हैं।

पूजा का स्थान

कई प्रकार के शिवलिंगो और टूटी-फूटी मूर्तियों के अतिरिक्त टांगीनाथ में 5 स्थान प्रमुख हैं, जहाँ पूजा-अर्चना और पाठ आदि किये जाते हैं-

टांगीनाथ मन्दिर या शिवमन्दिर
त्रिशुल- जो कि उत्तरी प्रवेश द्वार के सामने अवस्थित है
शिवमठ या योगी मठ
देवी मन्दिर या देवीमुरी- यह दक्षिण द्वार के सामने अवस्थित है
सूर्य मन्दिर- यह सुदूर पश्चिम के अन्त:भाग में अवस्थित है।

हालांकि यहाँ पर विधिपूर्वक पूजा एवं अनुष्ठान आदि कार्य मुख्य रूप से टांगीनाथ मन्दिर और देवी मन्दिर में ही होते हैं। भक्त पूजा अर्चना परम्परागत पुजारियों की सहायता से इन्हीं दो जगहों पर करते हैं। अपनी इच्छाएँ आदि माँगते हैं, और उनके पूर्ण होने पर कृतज्ञता अर्पित करने के लिए यहाँ आते हैं।
स्थिति एवं इतिहास

टांगीनाथ चैनपुर से 16 मील की दूरी पर गुमला जनपद के डुमरी प्रखण्ड के अन्तर्गत मझगांव नामक गांव में पहाड़ी के सर्वोच्च शिखर पर अवस्थित एक विलक्षण तीर्थस्थली है। यह क्षेत्र बारहवें प्रिंसली राज के अधीन था। आधुनिक समय में यहाँ ईसाई धर्म को स्वीकार करने वाले उरांव जनजाति के लोग सर्वाधिक हैं। ईसाई धर्मावलम्बी इस क्षेत्र में 18 वीं सदी के अन्त में आए थे। मझगांव ग्राम का पश्चिमी भाग एक लम्बी पहाडी से सुरक्षित है, जिसे ‘लुच-पुरपथ’ कहते हैं। इस पहाडी का वह प्रदेश, जो मझगांव की ओर इंगित है। मझगांव पहाड के रुप में विख्यात है। यह पहाडी स्वतन्त्र भारतीय गणराज्य के दो प्रदेश झारखण्ड एवं छत्तीसगढ़ को स्पष्ट विभाजित करती है।
मन्दिर

टांगीनाथ मन्दिर का क्षेत्रफल 11 x 4 फीट है। इसका निर्माण ईंट की दीवार और फूस के छत से किया गया है। इसके प्रवेश द्वार पर पत्थर के दो स्तम्भ लगे हुये हैं। दरवाज़े के बाहरी भाग पर भगवान सूर्य देव की साढे चार फीट की ऊँची मूर्ती है। एक त्रिकोणीय झंडा दरवाज़े के बांयी दिशा में और छत के ऊपर लगा रहता है। मन्दिर के अन्दर एक लिंग है, जिसका व्यास पांच फीट है। यह एक अर्ध के साथ स्थापित है। लिंग को देखने से ऐसा आभास होता है कि यह एक प्रस्तरीकृत वृक्ष के तने की आकृति का है, जो बीच से खंडित है और बहुत जगह से टूटा-फूटा है। इस लिंग के साथ आठ प्रस्तर फलक सजाये हुये हैं, उसके साथ-साथ दो लोहे के त्रिशूल, जो कि क्रमश: दो और चार फीट के हैं, गढे हुये हैं। इसके अलावा लगभग एक दर्जन छोटे-छोटे झंडे लगे हुये हैं। लोगों में ऐसा विश्वास है कि सतयुग में इस सथान पर सुगन्धित वृक्ष लगा हुआ था। जब कलयुग आया, तो लोगों के आपसी वैमनस्य, घृणा, लोभ एवं अन्य कुकृत्य से दुखी होकर भगवान टांगीनाथ उस चन्दन के वृक्ष में प्रवेश कर गये और देखते ही देखते समस्त वृक्ष पत्थर बन गया। समय के प्रवाह के साथ वृक्ष के बहुत से तने टूटकर धरती पर गिर गये और खो गये, किन्तु मुख्य भाग अभी भी बचा हुआ है, जो भगवान टांगीनाथ का सूचक है। इसका नाम शिव मन्दिर होना इस बात का सूचक है कि, टांगीनाथ देवाधिदेव महादेव के एक अवतार हैं। इस मन्दिर का निर्माण जसपुर के राजा के किसी पूर्वज ने 19वीं शताब्दी में किया था।
त्रिशूल

मन्दिर का त्रिशूल, जो कि लोहे का बना हुआ है, बहुत-ही विशालकाय है। त्रिशूल के तीनों फलक टूटे हुए हैं और यह बगल में नीचे रखा हुआ है। दाहिना फलक भी तीन भागों में बंटा हुआ है। एक स्थानीय दंतकथा के अनुसार- एक बार एक लोभी लौहार ने कोई उपयोगी उपकरण बनाकर पैसा कमाने के लिए इस त्रिशूल के तीनों फलक काट दिए। लौहार मझगांव का ही रहने वाला था। उसके इस कुकृत्य से भगवान शंकर कुपित हो गये और एक सप्ताह के अन्दर अपने समस्त परिवारजनों के साथ वह लौहार मर गया। उसके बाद ऐसी धारणा है कि पूरी मझगांव की चौहदी में कोई भी लौहार जिंदा नहीं रह सकता। त्रिशूल की लम्बाई लगभग बारह फीट है। कुछ लोगों की मान्यता है कि त्रिशूल की लम्बाई 17 फीट है और यह लगभग पाँच फीट नीचे गड़ा हुआ है। स्थानीय लोग किसी भी व्यक्ति को इस त्रिशूल को खोदने तथा इसके तह में जाकर इसकी पूरी ऊँचाई को नापने की अनुमति नहीं देते। ऐसी मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं अपने हाथ से इस त्रिशूल का निर्माण करके इसे गाड़ा था। अत: मनुष्य को यह अधिकार नहीं है कि इसके तह में जाकर इसकी लम्बाई मापे। जो कोई भी ऐसा करेगा, उसका सर्वनाश हो जाएगा। पौराणिक मान्यतानुसार त्रेतायुग में सीता स्वयंबर में श्रीराम के हाथों शिव धनुष के टूटने से कुपित परशुराम लक्ष्मण से संवाद के पश्चात् श्रीराम के स्वयं नारायण होने की जानकारी प्राप्त होने पर लज्जित महसूस कर वहां से चलते बने और गहन वनों व सुरम्य वादियों के मध्य स्थित झारखण्ड के इस पवित्र मनोहारी स्थल पर पहुँच अपने परशु अर्थात फरसा को गाड़कर शिवाराधना में जुट गए। कहा जाता है की परशुराम का वह फरसा मौसम की झंझावातों से प्रभावित हुए बगैर आज तक  ज्यों का त्यों सहस्त्राब्दियों से गड़ा पड़ा है।

इस त्रिशूल के उत्तरी भाग की ओर क़रीब दस फीट की दूरी पर एक पवित्र जलकुंड है, जिसका निर्माण ईंट से हुआ है। इसकी लम्बाई 14 फुट 9 इंच तथा चौडाई 14 फुट 5 इंच के लगभग है। यह क़रीब 8 फीट गहरा है। जल प्राप्त करने के लिए पश्चिमी भाग से सीढ़ी बनी हुई है। मान्यता है कि, इस कुंड का सम्बन्ध पाताल जल से है, जो टांगीनाथ मन्दिर से जुड़ा हुआ है। इस कुंड से भक्त चरणामृत लेते हैं। कुंड के पश्चिमी किनारे पर शायद किसी मन्दिर के गुम्बद का शीर्षभाग का विखण्डित रुप पडा है, जो आकृति में घटपल्लव जैसा प्रतीत होता है। जनमानस में ऐसी मान्यता है कि प्रचीन समय में लोगों को एक स्थान पर एकत्रित करने के लिए इसका नगाड़े के रुप में प्रयोग किया जाता था

साभार - http://nootanpuraatan.wordpress.com

श्रद्धा,भक्ति आस्था और असीम अनुकम्पा का प्रतीक है नागफेनी के कोयल नदी तट पर अवस्थित जगनाथ महाप्रभु का मंदिर - अशोक “प्रवृद्ध”

श्रद्धा,भक्ति आस्था और असीम अनुकम्पा का प्रतीक है नागफेनी के कोयल नदी तट पर अवस्थित जगनाथ महाप्रभु का मंदिर
अशोक “प्रवृद्ध”

झारखण्ड के राष्ट्रीय उच्च मार्ग संख्या 23 अब 134 पर गुमला और सिसई प्रखंड की सीमा पर बह रही दक्षिण कोयल नदी के तट पर मुर्गु ग्राम पंचायत के नागफेनी में अवस्थित श्रद्धा,भक्ति ,आस्था और असीम अनुकम्पा के प्रतीक श्री जग्गंनाथ महाप्रभु के पुरातन मन्दिर से प्रतिवर्ष आषाढ़ माह में जगन्नाथ महाप्रभु की रथयात्रा तथा प्रत्येक 14 जनवरी को मकर संक्रांति के अवसर पर मकरध्वज भगवान की रथयात्रा के साथ विशाल मेला का आयोजन किया जाता है। इन पावन अवसरों पर हजारों श्रद्धालु दक्षिणी कोयल नदी की धारा मेंस्नान कर पौराणिक जगन्नाथ मंदिर में भगवान की पूजा -अर्चना करते है और अपनी सुख, शांति व समृद्धि की कामना करते हैं।
दक्षिणी कोयल नदी के तट पर बांस-झुण्ड ऎव्म आम्र बगीचा के मध्य अवस्थित नागफेनी के श्रीजगन्नाथ मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। बताया जाता है कि यह क्षेत्र जब नागवंशी राजाओं की कर्मभूमि थी तब उड़ीसा के जग्गंनाथपुरी से भगवान जगन्नाथ की मूर्ति को लाकर नागफेनी में स्थापित कराया गया था। मंदि र में लगे एक शिल्ला पट के अनुसार श्री जग्गंनाथ मंदिर का निर्माण रातू गढ़ के महाराजा रघुनाथ शाह ने विक्रम सम्बत 1761 में कराया था और मंदिर में विधिवत पूजा -अर्चना हेतु जग्गंनाथपुरी से ही पंडा लाए थे और मंदिर एवं पुजारियों के निर्वाह के लिए धन-दौलत,जमीन-जायदाद आदि प्रदान किये थे। आज भी यहाँ के पुजारी और कई अन्य जातियों के लोग आपसी वार्त्तालाप में ओडिया भाषा का प्रयोग करते हैं।अपने सथापना काल से ही निरंतर यहाँ आषाढ़ माह में भगवान जग्गंनाथ स्वामी की रथयात्रा बड़े ही धूम-धाम व समरोह पूर्वक निकाली जाती है।

श्री जग्गंनाथ महाप्रभु मंदिर नागफेनी में भगवान् जग्गंनाथ अर्थात श्रीकृष्ण ,उनके अगरज बलराम (बलभद्र) एवं बहन सुभद्रा की जग्गान्नाथ्पुरी से लाई गई काष्ट निर्मित विशालकाय प्रतिमाएं प्रतिष्ठापित हैं। बताया जाता है कि इन प्रतिमाओं को महाराजा रघुनाथ शाह ने ओड़िसा के जग्गंनाथपूरी से हाथियों की सवारी क्राकर लाया था। जग्गंनाथ ,बलभद्र एवं सुभद्रा की इन काष्ट-निर्मित मुख्य प्रतिमाओं के अतिरिक्त मंदिर में अनेक बहुमूल्य धातुओं से निर्मित विभिन्न देवी -देवताओं की दर्जनों अन्य मूर्तियाँ भी है। मुख्य मनदिर परिसर में ही भगवान शिव का एक मंदिर है। जग्गंनाथ सवामी के दर्शन, पूजन हेतु आने वाले श्रद्धालु भक्त शिव मन्दिर में भी पूजा करते हैं ।मंदिर परिसर के बाहर किसी जमाने में शायद मुग़ल काल में अपने सतीत्व की रकषा हेतु सती हुई सात बहनों की समाधि सथल हैं। मंदिर से कुछ दुरी पर कोयल नदी के तट पर खुले आसमान के नीचे बाबा अष्ट कमलनाथ सती महादेव विराजमान हैं। सदियों से खुले आसमान के नीचे नदी किनारे अवस्थित बाबा अष्टक्म्लनाथ सती महादेव की यह विशेषता है कि अष्ट कमल दल के ऊपर शिवलिंग अधिष्ठापित हैं।मान्यता अनुसार अष्टकमल दल के ऊपर शिवलिंग की प्रतिस्थापित शिव सथल बिरले ही प्राप्य हैं ।अष्ट कमल दल पर अधिष्ठापित शिवलिंग की आराधना,उपासना,दर्शन -पूजन से शिवभक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसी मान्यता के कारण यहाँ श्रावण मास एवं शिव्रात्री के पावन अवस्रों पर शिवभक्तों की अपार भीड़ उमड़ पडती है। बगल में ही पहाड़ी है जो कई कहानियों व किम्बदंतियों को समेटे है ।समीप ही मंदिर के नागफेनी का श्मशान घाट भी है। सावन महिने में यहाँ पर बहने वाली कोयल नदी की धारा में सनान कर कांवर में जल लेकर मुर्गु के बाबा च्रैयानाथ (चरण नाथ) शिव मन्दिर में जलार्पण किये जाने की परि पाटी है। जिसकी एक अलग कहानी है।
दक्षिणी कोयल नदी के तट पर जग्गंनाथ महाप्रभु मंदिर नागफेनी से आषाढ़ माह में भगवान जग्गंनाथ की रथयात्रा बड़े ही धूम-धाम के साथ समारोहपूर्वक निकाली जाती है।दो चरणों में निकलने वाली जग्गंनाथ महाप्रभु की इस रथयात्रा के क्रम में आषाढ़ शुक्ल द्वितीय को भगवान् जग्गंनाथ अपने अग्रज बलभद्र एवं बहन सुभद्रा के साथ रथ पर सवार होकर मुख्य मन्दिर से करीब एक किलोमीटर दूर अवस्थित मौसी बारी (गुंडीचा गढ़ी) तक जाते हैं। आषाढ़ शुक्ल द्वितीय को मुख्य मन्दिर से मौसी बारी तक निकाली बजाने वाली इस रथयात्रा को चलती रथयात्रा कहते हैं। मौसी बारी अर्थात अपने मौसी के यहाँ भगवान जग्गंनाथ आषाढ़ शुक्ल द्वितीय से नौ दिनों तक विश्राम करते हैं और आषाढ़ शुक्ल एकादशी को मौसी बारी से अपने भाई- बहन के साथ वापस अपने मुख्य मन्दिर वापस लौट आते हैं। इस यात्रा को घूरती -रथयात्रा कहा जाता है।जग्गंनाथ सवामी के इस चलती और घूरती रथयात्रा का अत्यंत पुण्यमयी महत्व होने के कारण हजारों की सन्ख्या में श्रद्धालु गण भगवान् जग्गंनाथ की दर्शन-पूजन और रथ सन्चालन हेतु शामिल होते हैं।ू
इस्केअतिरिक्त नागफेनी में प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के दिन चौदह जनवरी को भी रथयात्रा का आयोजन पिछली शताब्दी केे प्रारंभिक वर्षों से किया जा रहा है। मकर संक्रांति के पावन अवसर पर लगने वाले इस मेले का भी अपना एक विशेष महत्व है। नागफेनी के ऐतिहासिक जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ भाई बलभद्र एवं बहन सुभद्रा सहित भगवान मकर ध्वज की मूर्ति है। मकर संक्रांति के दिन भगवान मकरध्वज की विशेष पूजा होती है और रथ यात्रा निकाली जाती है।

जग्गंनाथ महाप्रभु मन्दिर के वर्तमान सेवक और पुजारी मनोहर पंडा बताते है कि मकर संक्रान्ति के दिन भगवान मकरध्वज की विशेष पूजा होती है। यह बलराम का ही एक रूप है। मकर संक्रान्ति के दिन इनकी रथ यात्रा निकाली जाती है। बताया जाता है कि विगत सदी के प्रारम्भिक व्र्षों में एक रात्रि मंदिर के पुजारी कृपा सिंधु पंडा को एक सपना आया, जिसमें कोयल नदी की धारा में बहकर आ रहे मूर्ति को मंदिर में स्थापित करने और विधि विधान से पूजा करने का निर्देश मिला। पुजारी ने सुबह होते ही मूर्ति की खोज की और इसकी जानकारी रातुगढ़ के छोटानागपुर के महाराजा को दी और मेला लगाने का निर्देश प्राप्त किया। तब से नागफेनी में मकर संक्रान्ति के दिन मेला का आयोजन होता है।

भगवान भास्कर के मकर राशि में प्रवेश करने की तिथि का एक ज्योतिषीय व अध्यात्मिक महत्व है। इस तिथि से सूर्य धीरे-धीरे उतरायण की ओर बढ़ने लगते हैं। दिन बड़ी और रातें छोटी होने लगती हैं।अतः इस तिथि का अपना एक अलग महत्व सनातानधर्मियों में है।
मकर संक्रांति के दिन सरोवरों में स्नान करना, भगवान की पूजा एवं गरीबों के बीच दान करने और दही चूड़ा व तिल से बनी मिठाई खाने का अध्यात्मिक महत्व होता है। यही कारण है कि मकर संक्रान्ति के दिन नागफेनी में होने वाले मेला में काफी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते है और कोयल नदी में स्नान कर मंगल कामना करते हैं। इस दिन श्रद्धालु गरीबों के बीच दान करते हैं। इसके बाद दही चूड़ा, गुड़, तिलकुट आदि का सेवन करते हैं।

साभार - http://pravriddhayan.blogspot.com

मतदाताओं विशेषकर युवाओं को आकर्षित करने में जुटी भाजपा व कांग्रेस सहित अन्य राजनैतिक पार्टियाँ

मतदाताओं विशेषकर युवाओं को आकर्षित करने में जुटी भाजपा व कांग्रेस सहित अन्य राजनैतिक पार्टियाँ

गुमला जिले में अर्थात झारखण्ड प्रदेश की अनुसूचित जनजातियों के लिए पूर्णतः सुरक्षित महत्वपूर्ण संसदीय निर्वाचन क्षेत्र लोहरदगा संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में आगामी लोकसभा चुनाव एवं विधानसभा चुनाव को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी व कांग्रेस दोनों ही राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टियों के साथ ही चुनाव लड़ने की इच्छुक अन्य क्षेत्रीय दल मतदाताओं को विशेषतः युवाओं को अपने-अपने पक्ष में करने की मुहिम में जुट गए हैं। वैसे तो राज्य और देश के अन्य राज्यों की भांति ही आसन्न लोकसभा चुनाव का प्रभाव गुमला जिले अर्थात लोहरदगा संसदीय निरेआचन क्षेत्र के सभी सभी आयु वर्ग अर्थात बड़े - बुजुर्ग , अधेड़ , युवा सभी उम्र समूह के लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है , परन्तु आसन्न लोकसभा चुनाव का युवाओं पर सबसे ज्यादा असर पड़ता हुआ नजर आ रहा है और युवाओं की नब्ज को टटोलने के लिए भाजपा व कांग्रेस के साथ ही अन्य दलों ने अपने युवा परिषदों , युवा शाखाओं , यूथ विंग को इस काम में लगा दिया है।

माना जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमन्त्री पद के घोषित उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की दिन दूनी रात चौगुनी की दर से बढती लोकप्रियता व युवाओं में बढ़ते क्रेज के आगे कांग्रेस राहुल के क्रेज को युवाओं के बीच पहुंचाकर भाजपा की घेराबंदी में लग गई है। वहीं भारतीय जनता पार्टी भी युवाओं के बीच जाकर कांग्रेस की घेराबंदी करती हुई नजर आ रही है। जिला और राज्य स्तर पर विभिन्न आयोजनों से पार्टी के नीति , सिद्धांत व कार्यक्रमों के साथ ही सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रहित के प्रतिकूल कार्यों व असफलताओं को बतलाकर मतदाताओं को अपने पक्ष में जोड़े रखने की कोशिश में लगी हुई है । यहाँ भी नरेन्द्र मोदी के प्रति दीवानगी लोगों के सिर चढ़कर बोलती है। हाल में उनतीस दिसंबर 2013 को झारखण्ड की राजधानी रांची में संपन्न नरेन्द्र मोदी की विजय संकल्प रैली में शामिल होने के लिए गुमला , लोहरदगा जिला के साथ ही झारखण्ड के सभी जिलों सहित पडोसी राज्यों छत्तीसगढ़ , ओड़िसा ,बिहार आदि से भी सैंकड़ों सवारी वाहनों और निजी वाहनों से नमो भक्त रांची पहुंचे थे। लोहरदगा , लातेहार , गुमला, सिमडेगा , पलामू आदि से हजारों लोग मोटर साइकिल से भी रैली में शामिल होने के लिए गए थे । गुमला ,लोहरदगा ,  रांची आदि जिलों से हजारों लोग साइकिल की सवारी कर नमो को सुनने व देखने के लियें गए थे । छत्तीसगढ़ , उड़ीसा , बिहार से भी सैंकड़ों वाहनों पर सवार लोग रांची पहुँचे थे । सचमुच ! उनतीस दिसंबर के दिन तो गुमला , लोहरदगा ,रांची समेत अन्य पडोसी जिलाएँ नमो मय हो रही थी ।

उधर लोहरदगा निर्वाचन क्षेत्र के सांसद सुदर्शन भगत पार्टी और अपनी जीत कों पुनः सुनिश्चित करने के लिए इस दौरान अपने संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के सिसई , गुमला , बिशुनपुर , लोहरदगा और रांची के मांडर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रो में लगातार सक्रिय रहकर लोगों के सामाजिक - सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ ही दुःख - सुख में भी शामिल होकर अपने को जनता से सीधे रूप से जोड़े रहने का भरसक प्रयत्न किया है । उनके समर्थकों का कहना है कि " समूचे संसदीय निर्वाचन क्षेत्र की जनता से जुडी मुद्दों , समस्याओं व मामलो को सांसद सुदर्शन भगत ने संसद के साथ ही अन्य समुचित मंचों पर उठाकर जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने का हरसम्भव प्रयत्न किया है । संसद - मद की राशि को अपने क्षेत्र के सभी विधानसभा क्षेत्रों के सभी प्रखंडों में आवश्यकता के अनुरूप बिना जाति व समुदाय भेद के समान रूप से व्यय कर विकास कार्यों को नवीन गति प्रदान किया है । गुमला जिले के पौराणिक महत्व के प्राचीन धार्मिक पर्यटक स्थलों के बारे में संसद में प्रशन पूछकर जिले को नयी ऊंचाई तक पहुँचाने व लोगों को इस ओर भी आकर्षित करने का भरसक प्रयत्न किया है । उनके इस प्रयास के कारण गुमला के कई पुरातन स्थलों का कायापलट होने की नई उम्मीद जगी है । "

गुमला जिले व लोहरदगा संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत फिलवख्त एकमात्र विधानसभा क्षेत्र गुमला विधानसभा क्षेत्र ही भाजपा के खाते में हैं , जहां से कमलेश उराँव विधायक है । विधायक कमलेश उराँव भी अपने क्षेत्र में नियमित रूप से भ्रमण व जनसंपर्क के माध्यम से भाजपा की नीतियों और सिद्धांतों व कांग्रेस सरकार की खामियों और उनके छाद्म्मधर्म निरपेक्ष कार्यों को रख जनता को सच से अवगत करा पार्टी को मजबूत करने के प्रयास में लगे हुए हैं ।विधानसभा क्षेत्र के एकमात्र नगर पञ्चायत गुमला नगर पंचायत के साथ ही गुमला , डुमरी , रायडीह और चैनपुर प्रखंड क्षेत्रों के लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विधायक निधि की राशि को बेहतर ढंग से निर्विवाद रूप से खर्च करने की ईमानदार कोशिश कमलेश उराँव ने किया है , जिसका लाभ निश्चित रूप से भाजपा को आसन्न लोक व विधानसभा चुनावों में मिलने की संभावना क्षेत्र के राजनितिक विश्लेषकों के द्वारा अभी से ही की जा रही है।

प्रदेश के निर्देशानुसार जिले में भाजपा जहां युवाओं को अपनी तरफ जोड़ने के लिए मतदाता सम्मेलन , युवा मतदाता शिविर आयोजित कर रही है, वहीं कांग्रेस विधानसभाओं में व्यापारी, पत्रकारों, सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों के साथ-साथ युवक  दलों से अपनी नीति को अमलीजामा पहनाने के लिए सुझावों व आकलनों को एकत्रित करने में जुटी है। लोकसभा चुनाव दोनों ही राजनैतिक दलों के लिए मुख्य मुद्दा बना हुआ है और इस चुनाव को जीतने के लिए बिना युवाओं के किसी भी राजनैतिक दल के लिए चुनाव जीतना असंभव नजर आता है। इसी रणनीति के तहत भारतीय जनता पार्टी का युवा मोर्चा जहां प्रदेश की भांति जिले में पंचायत व प्रखंड स्तरीय सम्मेलनों , मतदान केंद्र व्यवस्थापन , मतदाता सूची आदि की तैयारी में जुटा है, वहीं जिला , राज्य व राष्ट्रीय स्तर की विविध कार्यक्रमों के तहत भी युवाओं को जोड़ने की रणनीति तैयार की जा चुकी है। इसके अलावा कतिपय अन्यान्य कार्यक्रमों के माध्यम से जिले सहित सम्पूर्ण लोहरदगा संसदीय क्षेत्र में युवाओं को जोड़ने का कार्यक्रम तय किया गया है।

उधर भाजपा की प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस में सक्रियता के नाम पर भूतपूर्व सांसद रामेश्वर उराँव की क्षेत्र में सक्रियता पूर्व की तरह ही वर्तमान में भी कम ही है । चुनाव हारने के पश्चात् वे अब अनुसूचित जनजाति आयोग के केन्द्रीय चेयरमैन बन बैठे हैं और उनका पुलिस अफसरी रूतबा उनकी सरकारी सेवाकाल की तरह आज भी बदस्तूर कायम है । जिसके कारण उनकी पांच वर्षों की सांसदी काल के बाद पांच वर्ष के करीब की अवधि पुनः बीत जाने के बाद भी गिने - चुने कांग्रेसी कार्यकर्ता के अतिरिक्त कोई अन्य उनके समक्ष फटक तक नहीं पाता। स्वयं कांग्रेस पार्टी के ही कुछ पुराने कांग्रेसी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि " वे सरकारी वाहनों के काफिले से जिला मुख्यालय में यदा - कदा आते हैं , अनुसूचित जनजाति आयोग से सम्बंधित मामलों को निबटाते हैं , अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद् की बैठक में भाग लेते हैं । उन कार्य्क्रमों में उनकी अगवानी के लिए आये आये आदिवासी कांग्रेसियों से मिलते हैं और सरकारी वाहन से फिर चले जाते हैं । "

लोहरदगा विधानसभा क्षेत्र के भूतपूर्व विधायक अब कांग्रेस के झारखण्ड प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत प्रदेश अध्यक्षत्व के कार्य में मशगुल हैं तो  सिसई विधानसभा क्षेत्र की विधायक शिक्षा मंत्री गीता श्री उराँव अपने राजनौतिक क्रिया - कलापों के कारण स्वयं अपनी ही पार्टी की कोपभाजन बनने की डर से सहमी हुई हैं । बताया जा रहा है कि राज्य सरकार के समन्वय स्मिति के प्रमुख और केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री ने भी उनकी कार्य प्रणाली के प्रति नाराजगी जतलाई है और शिक्षक भर्ती परीक्षा के बारे में उनकी भाषा सम्बन्धी टिपण्णी पर कांग्रेस के राज्य समिति के रूख सेनझारखंडी शिक्षा मंत्री की शिट्टी -पिट्टी गुम है ।

झारखण्ड की शिक्षा मंत्री गीता श्री उराँव के उस तर्क  को आखिर झारखण्ड खाङ्ग्रेस कमिटी ने ख़ारिज कर उनकी राजनैतिक शैली को गहरा झटका दिया जिसमे श्री उराँव ने कहा था कि भोजपुरी और मगही भाषाएँ नहीं बल्कि बोलियाँ हैं तथा समिधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं हैं । इसलिए भोजपुरी व मगही को शिक्षक पात्रता परीक्षा (टेट) में शामिल करना असंवैधानिक है । शिक्षा मत्री के वयान अनुशासन हीनता मानते हुए खाङ्ग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत नें मगलवार को कहा कि नीतिगत मामालों पर पहले पार्टी और सरकार ले स्तर पर मामला सुलझा लें इसके बाद कोई वयान दें । शिक्षा मंत्री के वयानबाजी से खाग्रेस को क्षति हो रही है। उनकी इस पार्टी विरोधी रवैये की जानकारी आलाकमान को दी जाएगी ।हो सके तो उनपर कारवाई भी होगी । उधर पार्टी के इस रूख से गीताश्री उराँव की शिट्टी - पिट्टी गुम हो जाने की खबर है और अपने विधानसभा क्षेत्र सिसई में लगातार सक्रियता दिखलाने वाली अब वहाँ आने से कतराने लगी हैं । कहा जा रहा है कि उनके विधानसभा क्षेत्र में निवास करने वालें भोजपुरी व मगही बोलने वाले तथा अन्यान्य सदान कांग्रेसियों से आँखें मिलाने से शिक्षा मंत्री कतरा रही हैं ।उनकी कमी को क्षेत्र के प्रखंड अथवा जिलास्तरीय कार्यकर्त्ता पूरी करने की कोशिश कर रहे हैं । कांग्रेस में चुनावों को लेकर वैसी कोई विशेष सक्रियता भी दिखाई नहीं दे रही , मानो लोकसभा चुनाव उनके लिए मेज पर तशतरी में सजा कर रखी कोई खाने की वस्तु है , जिसे जब चाहे आदेश दे वे अपनी इच्छानुसार सेवन कर सकते हैं  ।

वहीं आसन्न लोकसभा व विधानसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक ऑल झारखण्ड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) , झारखण्ड मुक्ति मोर्चा , झारखण्ड विकास मोर्चा आदि अन्य राजनितिक दल भी अपनी युवा शाखाओं अर्थात यूथ ब्रिगेड के माध्यम से अपनी पार्टी के झंडे के नीचे विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों के माध्यम से अपनी दल के प्रति युवाओं के झुकाव , युवाओं की भावनाओं का पत्ता लगाने अर्थात युवाओं का फीडबैक लेने के प्रयास में जुटी हुई है।